'जज को कानून का ज्ञान नहीं, उन्हें ट्रेनिंग की जरूरत', सिविल जज की योग्यता पर हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी

Gwalior High Court: अक्सर मीडिया पर टिप्पणी को लेकर सुर्खियां बटोरनी वाली उच्च न्यायलय ने यह पहला मौका हे जब एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने एक न्यायधीश की योग्यता को लेकर टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि जज क़ो कानून का ज्ञान नहीं है. इन्हें ट्रेनिंग की आवश्यकता है.

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MP HIGH COURT'S GWALIOR BENCH MADE A HARSH COMMENT CIVIL JUDGE'S ELIGIBILITY

MP High Court: MP हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने बुधवार को एक सिविल जज की योग्यता को लेकर तल्ख़ टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि जज को ट्रेनिंग की जरूरत है. यह पहला मौका है जब हाईकोर्ट ने किसी जज की योग्यता पर सवाल उठाए हैं. उच्च न्यायालय न केवल जज की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, बल्कि उनके कानूनी ज्ञान क़ो लेकर तल्ख टिप्पणी की हैं.

अक्सर मीडिया पर टिप्पणी को लेकर सुर्खियां बटोरनी वाली उच्च न्यायलय ने यह पहला मौका है जब एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने एक न्यायधीश की योग्यता को लेकर टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि जज क़ो कानून का ज्ञान नहीं है. इन्हें ट्रेनिंग की आवश्यकता है.

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6वीं सिविल जज सीनियर डिवीजन की कार्यप्रणाली पर जताई नाराजगी

रिपोर्ट के मुताबिक हाईकोर्ट ने सिविल जजों की योग्यता को लेकर अपने आदेश की कॉपी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार और ट्रेनिंग सेंटर के संचालक क़ो भेजनें की बात अपने फैसले में लिखी है. एमपी हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने यह आदेश 6वीं सिविल जज सीनियर डिवीजन वर्षा भलावी की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताते हुए दिया है.

हाई कोर्ट ने कहा, जज को कानूनी ज्ञान नहीं है, उन्हें ट्रेनिंग की जरूरत

कोर्ट ने कहा कि पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि सिविल जज को कानून का ज्ञान नहीं है, उन्हें प्रशिक्षण की आवश्यकता है. यही नहीं हाई कोर्ट ने आदेश की कॉपी संबंधित प्रधान जिला न्यायाधीश के साथ ही ट्रेनिंग सेंटर के निदेशक को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भी भेजने का निर्देश दिया है.

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हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने अपने आदेश में लिखा कि वादी की मृत्यु के बाद जब कोई प्रतिनिधि नहीं पहुंचता तो वाद खारिज करना चाहिए था, लेकिन सिविल जज ने केस गवाही के लिए लगा दिया. हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि जब वादी की मृत्यु हो गई तो गवाही कैसे होगी ?

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ग्वालियर जिले के ग्राम बिल्हेटी की एक जमीन से जुड़ा है मामला

दरअसल, वादी मुन्नीदेवी ने एक सिविल सूट दायर किया था, जिसमें पैतृक संपत्ति में एक तिहाई हिस्सा देने की मांग की गई थी. सुनवाई शुरू होती और केस गवाही की प्रक्रिया तक पहुंचता, इससे पहले गत 12 मई 2024 को उनकी मृत्यु हो गई. गत 4 मई को एक संशोधित वसीयत में उन्होंने अपने बेटे को केस में वारिस उत्तराधिकारी बनाया गया था.

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वसीयत का हवाला देकर बेटे ने पक्षकार बनाने का दिया था आवेदन

वादी मुन्नी देवी की मृत्यु के बाद वसीयत का हवाला देकर बेटे ने सिविल जज कोर्ट ने आवेदन खारिज कर दिया और केस गवाही के लिए लगा दिया. तर्क दिया गया कि आवेदक के अतिरिक्त मृतक के अन्य वारिसान भी हैं, जिनका उल्लेख आवेदनकर्ता द्वारा दिए गए आवेदन में नहीं किया गया था.

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दरअसल, एक सिविल सूट वादी मुन्नीदेवी ने पैतृक संपत्ति में एक तिहाई हिस्सा देने की मांग की थी, लेकिन सुनवाई पहले वादी की मौत हो गई. मौत से पहले एक संशोधित वसीयत में वादी ने बेटे को केस में वारिस बनाया गया था, लेकिन सिविल कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया.

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सुनवाई के बाद 8 जनवरी 2025 को पीड़ित का निरस्त हुआ आवेदन

सिविल कोर्ट ने पीड़ित का आवेदन गत 8 जनवरी 2025 को निरस्त किया गया था, जिसके खिलाफ एडवोकेट अनिल श्रीवास्तव ने हाई कोर्ट में याचिका दायर किया. हाई कोर्ट ने सिविल जज का आदेश निरस्त कर बेटे को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया है और सिविल जज की कार्यप्रणाली और योग्यता दोनों पर सवाल उठा दिए.

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