Gwalior: गिद्धों की गणना के लिए हुई सर्वे रिपोर्ट में खुलासा, 3 सालों में इतनी बढ़ गई संख्या

Revealed in survey report: जंगलों के कटने और विशालकाय पुराने पेड़ों के लगातार घटने से गिद्दों की लगातार घटती संख्या ने देश के पर्यावरणविद बहुत चिंतित हैं. इसको लेकर अनेक प्रोजेक्ट भी चल रहे हैं. लेकिन लंबे समय बाद ग्वालियर - चम्बल अंचल से अच्छी खबर आई है कि यहां बीते तीन सालों में गिद्दों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है. उनकी संख्या दोगुनी हो गई है. 

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The number of vultures doubled: देश में गिद्धों की घट रही संख्या के बीच ग्वालियर-चंबल (Gwalior-Chambal) क्षेत्र से एक अच्छी रिपोर्ट सामने आई है. इस इलाके में पिछले 3 सालों में गिद्धों (vultures) की संख्या दोगुनी हो गई है. हाल ही में हुए एक सर्वे रिपोर्ट में इसका खुलासा होने के बाद वन विभाग के अफसर-कर्मी ही नहीं, बल्कि देशभर के प्राणी विशेषज्ञ भी बेहद खुश हैं. 

ग्वालियर जिले में 337 गिद्ध 

दरअसल, बीते 16 से 18 फरवरी तक पूरे अंचल में  गिद्धों की गणना का अभियान चला था. अब इसके आंकड़े आ गए हैं. ताज़ा आंकड़े में यह संख्या बढ़कर 337 हो गई है, जबकि साल  2021 की गणना में ग्वालियर क्षेत्र में गिद्धों की संख्या महज 162 थी. इनमें सबसे ज्यादा तिघरा के जंगलों में पाए गए. ग्वालियर जिले की छह रेंज में से ग्वालियर रेंज में 20, बेहट रेंज में 7, उत्तर घाटीगांव में 29 , दक्षिण घाटीगांव में 70, गेम रेंज तिघरा में 168 और गेम रेंज घाटीगांव में 43  गिद्ध पाए गए हैं. 

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सबसे कम भिंड जिले में 

गणना के आंकड़े बताते हैं कि संभाग में भिण्ड जिले में सबसे कम गिद्ध पाए गए हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार श्योपुर में 129, मुरैना में 111, दतिया में 48 जबकि भिण्ड में सिर्फ आधा दर्जन गिद्ध ही जीवित बचे हैं. गणना से पता चला है कि भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर , दतिया और श्योपुर के जंगल में गिद्धों के 124 आबाद घर (घोंसले) हैं. वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि गिद्धों की गणना ठंड के मौसम में की जाती है, क्योंकि इस सीजन में गिद्द घोंसलों में रहकर अंडे दे चुके होते हैं . ऐसे में नवजातों की भी गिनती हो जाती है. लेकिन, यह काम वन्य प्राणी विशेषज्ञ करते हैं. 

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इसलिए मौजूदगी जरूरी 

इस अभियान से जुड़े ग्वालियर के DFO मनोज कुमार ने बताया कि हमारी गिद्द गणना साल में फरवरी और अप्रैल में में होती है, फरवरी में इसलिए क्योंकि अभी प्रवासी गिद्ध भी है, लेकिन अप्रैल में जो गणना होती है. उसमें प्रवासी गिद्ध वापस चले जाएंगे. अभी तीन दिनों की संख्या में 717 वयस्क हैं और 94 अवयस्क हैं. इसके लिए 44 स्पॉट पर काम किया. धरती के इकोसिस्टम को व्यवस्थित रखने के लिए गिद्धों की मौजूदगी को महत्वपूर्ण माना जाता है. इसीलिए इसे सफाई दरोगा का खिताब भी दिया गया है. DFO मनोज कुमार कहते हैं गिद्ध प्रकृति का सफाईकर्मी है. वह आसपास मृत पशुओं को खाकर सफाई करते हैं . इन मृत पशुओं की सड़ी हुई बॉडी में जो जहरीला एसिड होता है उसे पचाने की क्षमता सिर्फ गिद्ध में ही होती है. मनोज कुमार का यह भी कहना है कि अगर गिद्ध कम होंगे तो प्रकृति में गंदगी बढ़ेगी और कुत्तों की संख्या भी बढ़ेगी. बढ़ती डॉग बाइट और  सड़क एक्सीडेंट के बढ़ने की असल वजह भी गिद्ध समूह की घटती संख्या ही है. 

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इंजेक्शन पर रोक लगी तो बढ़ने लगे गिद्ध

मनोज कुमार का कहना है कि पहले पशुओं में सूजन कम करने के लिए डाइक्लोफेनिक (Diclofenac) नामक इंजेक्शन लगाया जाता था. फिर उस मृत पशु का मांस खाने से गिद्ध की मौत हो जाती थीं. हम लोगों की मांग और प्रयास से सरकार ने इस दवा को प्रतिबंधित कर दिया. हमने गौशाला संचालकों के साथ कार्यशाला कर भी उन्हें जागरूक किया था. इन सबके नतीजे अच्छे आये . हमारे यहां गिद्ध की संख्या अपेक्षा से बहुत ज्यादा बढ़ गई . 

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