Ganesh Chaturthi Puja : परंपरा और पूजा का अनूठा संगम, 364 वर्षों से MP का ये परिवार ऐसे तैयार करता है ये खास प्रतिमा

Ganesh Chaturthi Puja Vidhi at Home: गणेश चतुर्थी को लेकर मध्य प्रदेश समेत देशभर में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है.वहीं, बैतूल जिले के रावत परिवार ने इस शुभ अवसर पर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. जानें ये परिवार कैसे परंपरा और विरासत को सदियों से आगे बढ़ा रहा है. 

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Ganesh Chaturthi 2024: भगवान गणेश की उपासना और पूजा-पाठ करने के लिए गणेश चतुर्थी का अवसर काफी शुभ माना जाता है.इस बीच प्रकृति की रक्षा और ईश्वर की भक्ति का अनूठा संगम देखने को मिलता है बैतूल के रावत परिवार की गणेश प्रतिमा में, जो पिछले 364 वर्षों से पूरी तरह ईको-फ्रेंडली तरीके से बनाई जाती है. इस परंपरा की शुरुआत 1660 में हुई थी. आज भी रावत परिवार के सदस्य इस परंपरा को पूरी श्रद्धा के साथ निभाते आ रहे हैं.

देखने के लिए लगती है लोगों भीड़

रावत परिवार के गणेश प्रतिमा की खासियत इसमें उपयोग की जाने वाली विशेष हरी मिट्टी, फलों और सब्जियों से बने रंगों, और सोने-चांदी के साढ़े तीन सदी पुराने जेवरातों में निहित है. गणेशोत्सव के दौरान स्थापित की जाने वाली इस प्रतिमा को देखने के लिए हजारों लोग उमड़ते हैं.विशेषकर, यह प्रतिमा पूरी तरह से ईको-फ्रेंडली होती है, जो अन्य प्रतिमाओं से अलग होती है जिनमें केमिकल युक्त रंग और प्लास्टिक या कांच की सजावट का इस्तेमाल होता है.

रावत परिवार के पूर्वज लगभग 400 साल पहले उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले से बैतूल आए थे और उन्होंने यहां गणेश उत्सव के दौरान सौ फीसदी ईको-फ्रेंडली प्रतिमा बनाने की परंपरा की शुरुआत की थी. एक महीने की कठिन मेहनत के बाद, इस खास गणेश प्रतिमा को तैयार किया जाता है.

ऐसे तैयार किए जाते हैं रंग

इसमें इस्तेमाल की जाने वाली हरी मिट्टी विशेष पहाड़ी से लाकर तैयार की जाती है और रंग भिंडी, अभ्र्क, सिंदूर, कुमकुम और अन्य प्राकृतिक फूल-पत्तियों से तैयार किए जाते हैं. सजावट के लिए केवल कागज का उपयोग किया जाता है, जबकि सोने-चांदी के पुराने जेवरात प्रतिमा को सजाने में चार चांद लगा देते हैं.

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छह पीढ़ियों के इतिहास से जुड़ी है ये परंपरा

रावत परिवार के सदस्य इस परंपरा को अपने छह पीढ़ियों के इतिहास से जोड़ते हैं और परिवार के युवाओं से उम्मीद करते हैं कि वे इसे आगे भी इसी तरह बनाए रखें. यह अनूठी परंपरा न केवल उनकी धार्मिक श्रद्धा को दर्शाती है, बल्कि प्रकृति के प्रति उनके स्नेह और जिम्मेदारी का भी प्रमाण है.

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