Ganesh Chaturthi 2024: इस पेशवाकालीन मंदिर में उल्टा बनाया जाता है स्वास्तिक, चिंतामन गणेश हैं विराजमान

Ganesh Chaturthi Celebration : सिद्धिविनायक गणेश मंदिर में भगवान कि वर्तमान स्वरूप में दिखने वाली मूर्ति वास्तव में धरती में कमर तक धंसी प्रतिमा का बाहरी रूप है. कहा जाता है कि साक्षात प्रतिमा कमर से नीचे तक जमीन में धंसी हुई है. प्राचीन काल में उसे खोजने के भी प्रयास किए गए लेकिन सफल नहीं हो सके.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

Ganesh Chaturthi 2024: भगवान गणेश (Lord Ganesh) की पूजा के बिना किसी भी देवी-देवताओं को नहीं पूजा जाता है. आज से पूरे देश में गणेशोत्सव (Ganeshotsav 2024) की धूम शुरू हो गई  है. यूं तो इस समय भगवान गणेश (Bhagwan Ganesh) के हर मंदिर (Ganesh Mandir) पर ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है, लेकिन मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सीहोर ज़िले के ऐतिहासिक सिद्धिविनायक गणेश मंदिर के दर्शन ज़रूर करें, सीहोर (Shree Chintaman Ganesh Temple, Sehore) स्थित सिद्धिविनायक गणेश मंदिर (Siddhivinayak Ganesh Mandir) देश के चार स्वयंभू पीठों में से एक हैं. आइए जानते हैं मध्यप्रदेश के इस मंदिर के इतिहास के बारे में..

2000 साल पुराना है मंदिर

मध्य प्रदेश के सीहोर स्थित सिद्धिविनायक गणेश मंदिर का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पुराना है. विक्रमादित्य के दौर में बने इस मंदिर को पेशवा क़ालीन में संवारा गया है. सीहोर के पश्चिमी उत्तर छोर पर वायव्य कोण पर स्थित यह मंदिर अपनी कलित-कीर्ति के लिए दूर-दूर तक प्रचलित है.

यहां के लोग बताते हैं कि सिद्ध गणेश मंदिर की वजह से इस जगह को सिद्धपुर कहा जाने लगा. देश के चार स्वयंभू प्रतिमा में से ये एक है. राजा विक्रमादित्य हर बुधवार सिद्धपुर सीहोर आते थे. विक्रम संवत 155 में यहां गर्भ गृह का निर्माण हो गया था.

भगवान गणेश की चार सिद्ध प्रतिमाएँ देश के चार स्थानों पर विराजित स्वयंभू पीठ मानी जाती हैं. इनमें राजस्थान के सवाई माधोपुर रणथंभौर गणेश मंदिर, उज्जैन में चिंतामन गणेश, गुजरात में सिद्धपुर और सीहोर की सिद्धि विनायक गणेश प्रथम स्वयंभू पीठ माने जाते हैं. सीहोर के गणेश मंदिर की कहानी बेहद रोचक है. मान्यता है कि इस चिंतामन गणेश मंदिर के सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा ने करवाया था, मंदिर का स्तूप श्रीयंत्र के कोण पर स्थित है.

मूर्ति की है ख़ास विशेषता

सिद्धिविनायक गणेश मंदिर में भगवान कि वर्तमान स्वरूप में दिखने वाली मूर्ति वास्तव में धरती में कमर तक धंसी प्रतिमा का बाहरी रूप है. कहा जाता है कि साक्षात प्रतिमा कमर से नीचे तक जमीन में धंसी हुई है. प्राचीन काल में उसे खोजने के भी प्रयास किए गए लेकिन सफल नहीं हो सके. आमतौर पर मंदिरों में भगवान श्री गणेश की सूंड बाई ओर रहती है लेकिन सिद्धि विनायक गणेश मंदिर में भगवान की सूंड दायीं ओर है, इसीलिए भगवान सिद्ध और स्वयंभू कहलाते हैं.

Advertisement

भक्त बनाते हैं उल्टा स्वस्तिक

मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है. दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामना पूरी करवाने के लिए गणपति की शरण में आते हैं. वैसे तो हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार, मांगलिक कार्यों में सीधा स्वास्तिक मंगल और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है लेकिन जब ये ही स्वास्तिक उल्टा कर दिया जाए तो अमंगल का प्रतीक माना जाता है. जबकि सिद्धि विनायक गणेश मंदिर में भगवान गणेश की पार्श्व भाग पर भक्तगण मंगल के लिए अमंगल का प्रतीक उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि उल्टा स्वास्तिक बनाने से मनोकामना पूरी हो जाती है. मान्यता है कि जब मनोकामना पूरी हो जाती है तो भक्त उसके बाद सीधा स्वास्तिक बनाकर भगवान का धन्यवाद भी करते हैं.

यह भी पढ़ें : Ganesh Chaturthi 2024: यहां अर्जी वाले गणेश जी पूरी करते हैं हर मनोकामना, श्रद्धालुओं का लगता है तांता

Advertisement

यह भी पढ़ें : Ganesh Chaturthi Puja : परंपरा और पूजा का अनूठा संगम, 364 वर्षों से MP का ये परिवार ऐसे तैयार करता है ये खास प्रतिमा

यह भी पढ़ें: Vinayak Chaturthi 2023: साल की अंतिम विनायक चतुर्थी है इस दिन, जानिए- पूजा विधि और मुहूर्त का सही समय

Advertisement

यह भी पढ़ें : 39वां चक्रधर समारोह: CM आज होंगे मौजूद, 10 दिनों में हेमा मालिनी समेत देश के बड़े कलाकारों की प्रस्तुति