Former CJI BR Gavai Interview: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई (BR Gavai) ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस के साथ साक्षात्कार में अपने कार्यकाल, संविधान, सोशल मीडिया, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और देश की मौजूदा चुनौतियों पर बेबाक जवाब दिए. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व सीजेआई बीआर गवई ने संविधान की भूमिका पर बेहद स्पष्ट और सारगर्भित विचार रखा. उनके जवाबों ने न सिर्फ संवैधानिक ढांचे की मजबूती पर विश्वास जताया, बल्कि देश की तीनों संस्थाओं के बीच संतुलन और जिम्मेदारी की भावना को भी रेखांकित किया. यहां पेश हैं इंटरव्यू के कुछ अंश.
सवाल: क्या आपको लगता है कि संविधान खतरे में है?
जवाब: मैं नहीं मानता कि संविधान खतरे में है. 1973 का केशवानंद भारती जजमेंट एकदम क्लियर है. उस जजमेंट में साफ कहा गया है कि संसद संविधान की 'बेसिक स्ट्रक्चर' में बदलाव नहीं कर सकती. संविधान बदला ही नहीं जा सकता."
सवाल: बाबा साहेब के सपने और संवैधानिक मूल्यों पर आपका दृष्टिकोण क्या है?
जवाब: बाबा साहेब ने सिर्फ राजनीतिक न्याय का नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय का सपना देखा था. उनका मानना था कि लोकतंत्र तभी सही तरह से काम करेगा जब राजनीतिक लोकतंत्र के साथ सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र भी हो, इसलिए हमारी तीनों संस्थाएं (विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) को मिलकर काम करना चाहिए. न्याय देश के आखिरी नागरिक तक कम खर्च में पहुंचना चाहिए. यही बाबा साहेब को मेरी श्रद्धांजलि है.
सवाल: क्या सरकार का न्यायपालिका में हस्तक्षेप होता है?
जवाब: नहीं, यह बात गलत है. सरकार का ज्यूडिशियरी में कोई हस्तक्षेप नहीं होता है. हां, जब कॉलेजियम कोई निर्णय लेता है तो कई तरह के फैक्टर्स पर विचार किया जाता है. उस समय एग्जीक्यूटिव, आईबी, लॉ मिनिस्ट्री, संबंधित चीफ जस्टिस, जिनका ट्रांसफर हो रहा है, चीफ मिनिस्टर और गवर्नर सभी की राय ली जाती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कॉलेजियम किसी दबाव में काम करता है.
सवाल: सोशल मीडिया पर आपके खिलाफ किए गए ट्रोलिंग और भगवान विष्णु वाले विवाद पर क्या कहेंगे?
जवाब: मैं सोशल मीडिया नहीं देखता. मैंने भगवान विष्णु के बारे में ऐसा कुछ कहा ही नहीं था, लेकिन बात को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया. मैं मानता हूं कि जज को निर्णय सोशल मीडिया की पसंद-नापसंद देखकर नहीं देना चाहिए. जब सामने तथ्य और सबूत होते हैं तो फैसला कानून के आधार पर ही होना चाहिए.
सवाल: क्या सोशल मीडिया का गलत उपयोग हो रहा है?
जवाब: हां, सोशल मीडिया का मिसयूज हो रहा है. इससे एग्जीक्यूटिव, लेजिस्लेटिव और ज्यूडिशियरी सब प्रभावित हैं. सबको ट्रोल किया जा रहा है. टेक्नोलॉजी वरदान है, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल भी बड़ा खतरा है. इसके लिए संसद को कानून बनाना चाहिए. सभी को मिलकर इस समस्या से निपटना होगा.
सवाल: क्या जजों को पर्सनल टारगेट करके ट्रोल करना ठीक है?
जवाब: नहीं, जज को व्यक्तिगत रूप से टारगेट करके ट्रोल करना सही नहीं है.
सवाल: क्या दिल्ली के प्रदूषण पर ज्यूडिशियल इंटरवेंशन समाधान है?
जवाब: नहीं. न्यायपालिका सिर्फ आदेश दे सकती है, लेकिन उसे लागू करना कार्यपालिका का काम है.
सवाल: जस्टिस यशवंत वर्मा मामले पर आप क्या कहेंगे?
जवाब: इस मामले में संसद के स्पीकर ने सुप्रीम कोर्ट के एक जज की अध्यक्षता में जांच समिति बनाई है, जिसकी प्रक्रिया जारी है. इसलिए इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा.
सवाल: आप अपने कार्यकाल से कितने संतुष्ट हैं?
जवाब: मैं अपने कार्यकाल से पूरी तरह संतुष्ट हूं, खुश हूं. मुझे नहीं लगता कि कोई ऐसा काम था जिसे मैं करना चाहता था और नहीं कर पाया.
सवाल: रिटायरमेंट के बाद पद लेने पर आपकी राय?
जवाब: मैंने कभी नहीं कहा कि रिटायरमेंट के बाद पद लेना गलत है.
सवाल: नक्सलवाद पर आपके क्या विचार हैं?
जवाब: मुझे खुशी है कि आज नक्सलवाद कई क्षेत्रों से खत्म हो रहा है. कभी महाराष्ट्र का गढ़चिरौली बहुत बड़ा केंद्र था, लेकिन आज यह सब बहुत कम हो गया है.
सवाल: रिटायरमेंट के बाद आपकी क्या योजना है?
जवाब: फिलहाल मेरी राजनीति में आने की कोई योजना नहीं है. अभी मैंने तय नहीं किया कि आगे क्या करूंगा. फिलहाल, बस आराम कर रहा हूं.
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