Madhya Pradesh में वन विभाग की गलती का खामियाजा भुगत रहे वनरक्षक, विभाग वसूल रहा अधिक वेतन

Forest Department MP: वन आरक्षकों को वन विभाग ने अलग-अलग नोटिस जारी किया है. वन विभाग अब इनसे ब्याज समेत सैलरी वापस लेगी. इस प्रस्ताव का वित्त विभाग ने भी परीक्षण किया.

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Forest Guards in Madhya Pradesh: अजब मध्य प्रदेश की गजब कहानी है. आए दिन प्रदेश से अजीब मामले सामने आते रहते हैं. अब मध्य प्रदेश वन विभाग (Madhya Pradesh Forest Department) से नया कारनामा सामने आया है. यहां 6592 फॉरेस्ट गार्डों (Forest Guards) को गलती से 165 करोड़ से ज्यादा का पेमेंट कर दिया गया... अब सरकार इस पैसे को ब्याज (Interest) समेत वसूलने वाली है. इसके लिए सभी वन आरक्षकों को नोटिस भी जारी किया जा चुका है. बता दें कि वन विभाग के इस प्रस्ताव का वित्त विभाग (Finance Department) ने परीक्षण किया. इसमें वन रक्षक भर्ती नियम उल्लंघन का खुलासा हुआ है. इसको लेकर वित्त विभाग ने वेतन बैंड में सुधार के लिए कहा है. 

क्या है पूरा मामला

दरअसल, कोषालय की गलती के चलते फॉरेस्ट गार्ड्स को लगभग 165 करोड़ रुपये से अधिक का वेतन दे दिया गया. यह पूरा मामला सितंबर 2014 से पहले हुई फॉरेस्ट गार्ड की भर्ती से जुड़ा है. पे बैंड की गलत गणना के कारण ऐसी स्थिति बनी. भर्ती नियम के मुताबिक पे बैंड 5200 देना था, लेकिन इन वन आरक्षकों को 5680 पे बैंड के हिसाब से भुगतान कर दिया गया. वेतन भुगतान संबंधी प्रस्ताव का वित्त विभाग ने परीक्षण किया. तब जाकर इस गड़बड़ी का खुलासा हुआ और वित्त विभाग के निर्देश के बाद वन विभाग ने वेतन बैंड में सुधार के निर्देश भी दे दिए हैं. इसके साथ ही जो वसूली की भी तैयारी शुरू हो गई है.

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ब्याज के साथ पैसे वापस लेगी सरकार

प्रदेश के कुल 6592 वन आरक्षकों से वन विभाग अब वसूल दिया गया अधिक वेतन वसूल रहा है. वन विभाग सभी से 12 हजार 273 रुपये ब्याज के साथ उनको दी गई सैलरी वापस ले रहा है. बीते दिन गड़बड़ी पाए जाने के बाद वनरक्षकों से कुल 165 करोड़ रुपये की वसूली की तैयारी की गई थी. दरअसल, वन विभाग ने वनरक्षकों को 5680 मूलवेतन देने का प्रस्ताव सरकार को भेजा था. प्रस्ताव का वित्त विभाग ने परीक्षण किया. परीक्षण में वन रक्षक भर्ती नियम उल्लंघन का खुलासा हुआ. जहां भर्ती नियम के अंतर्गत 5200 मूलवेतन देने दिया जाना था, वहां 6592 वनरक्षकों को 5680 मूलवेतन दिया गया. वन विभाग ने वेतन की गलत गणना की और कोषालय भी उन्हें बढ़ा हुआ वेतन जारी करता रहा. 

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