MP में खाद संकट के पीछे क्या है बड़ी वजह? समझिए, DAP की पूरी ABCD

Fertilizer Crisis in MP- मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में डाय-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) जैसी खाद के लिए परेशान किसानों की कई तस्वीरें आईं. इसे लेकर राजनीति भी तेज है. आखिर MP में खाद संकट के पीछे क्या है बड़ी वजह?

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मध्य प्रदेश में खाद संकट

Fertilizer Crisis in MP- मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में डाय-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) जैसी खाद के लिए परेशान किसानों की कई तस्वीरें आईं, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और कृषि मंत्री ऐंदल सिंह कंसाना पर खाद की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित न करने का आरोप लगाया है. उनके अनुसार, इससे कृषि क्षेत्र में एक बड़ा संकट पैदा हो गया है, जिससे किसान डीएपी जैसी महत्वपूर्ण खाद पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

वहीं कृषि मंत्री, ऐंदल सिंह कंसाना ने पलटवार किया. कांग्रेस पर झूठ बोलने का आरोप लगाया और कहा कि यूक्रेन, इज़राइल में चल रहे युद्ध से आपूर्ति चेन में रुकावट आई है.

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कृषि मंत्री का दावा- राज्य में खाद की कोई कमी नहीं

उन्होंने कहा कि राज्य में खाद की कोई कमी नहीं है और विपक्षी नेताओं पर किसानों को भ्रमित करने के लिए गलत जानकारी फैलाने का आरोप लगाया. कंसाना ने यह आश्वासन दिया कि सरकार ने खरीफ सीजन के दौरान आवश्यक मात्रा में खाद उपलब्ध कराई थी और रबी फसलों के लिए भी ऐसा ही करेगी. उन्होंने डीएपी की आपूर्ति में अस्थायी देरी का कारण वैश्विक घटनाओं, विशेष रूप से यूक्रेन-इज़राइल युद्ध को बताया, जिसने अंतरराष्ट्रीय व्यापार मार्गों और लागतों को बुरी तरह प्रभावित किया है. 

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हालांकि उनके इस बयान पर खूब चुटकी ली गई... लेकिन क्या ये बयान ग़लत है? इसके लिये देश में खाद आपूर्ति के रूट को समझना होगा.

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वैश्विक प्रभाव: भू-राजनीतिक तनाव और खाद की कीमतें

यूक्रेन-इज़राइल युद्ध ने वास्तव में स्थिति को और जटिल बना दिया है, विशेष रूप से डीएपी की आपूर्ति चेन पर असर पड़ा है. भारत की डीएपी की आपूर्ति का अधिकांश हिस्सा आयात पर निर्भर करता है, जिसमें लगभग 90% अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से आता है. रॉक फॉस्फेट, जो डीएपी का एक प्रमुख घटक है, ज्यादातर दक्षिण अफ्रीका जैसे क्षेत्रों से आता है. युद्ध की वजह से स्वेज नहर के माध्यम से सामान्य शिपिंग रूट पर असर पड़ा है, जिससे जहाजों को लंबे और महंगे वैकल्पिक मार्गों जैसे दक्षिण अटलांटिक या भूमध्य सागर का उपयोग करना पड़ रहा है, जिससे परिवहन लागत दोगुनी हो गई है.
इन युद्धक्षेत्रों से गुजरने वाले जहाजों के लिए बीमा की लागत भी बढ़ गई है, जिससे डीएपी की कीमत और भी अधिक हो गई है.  इसके अलावा, चीन, जो भारत को डीएपी की आपूर्ति करता था उसने अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के नाम पर निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे भारत पर और दबाव बढ़ गया.

फॉस्फेट रॉक, सिंथेटिक खाद उत्पादन का एक अहम घटक है, मोरक्को, जिसके पास दुनिया के 72% फॉस्फेट भंडार हैं, इस मामले में भारत का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, लेकिन वर्तमान भू-राजनीतिक अस्थिरता, विशेष रूप से रेड सी और स्वेज नहर के आसपास, ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में खासी दिक्कत पैदा की है, यमन के संघर्ष के कारण पहले से ही तनाव में रहे इस क्षेत्र में, इज़राइल-फिलिस्तीन युद्ध के बाद से वाणिज्यिक जहाजों पर हमलों में वृद्धि देखी गई है. रेड सी के माध्यम से नेविगेट करने वाले जहाजों को अब कई हफ्तों की देरी का सामना करना पड़ता है, और बीमा और वैकल्पिक मार्गों के कारण माल ढुलाई की लागत भी बढ़ गई है. 

क्यों ज़रूरी है मोरक्को, फॉस्फेट और, समंदर का रूट? 

फॉस्फेट चट्टान, जिसे सफेद पाउडर के रूप में जाना जाता है, एक बहुमूल्य और महत्वपूर्ण वस्तु है. इसके बिना, दुनिया की बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराना मुश्किल हो जाता. फॉस्फेट, नाइट्रोजन के साथ, सिंथेटिक उर्वरक के दो सबसे जरूरी घटकों में से एक है, लेकिन नाइट्रोजन के विपरीत, जो वायुमंडल में 78% है, फॉस्फेट एक सीमित संसाधन है, जिसे बनाया नहीं जा सकता. रॉक फॉस्फेट डीएपी (डायमोनियम फॉस्फेट) और एनपीके (नाइट्रोजन-फॉस्फोरस-पोटेशियम) उर्वरक बनाने में एक महत्वपूर्ण घटक है. 

रेड सी शिपिंग मार्ग पर चल रहे संकट के कारण उर्वरक आपूर्ति में भी दिक्कतें आई हैं. यमन स्थित हूती विद्रोहियों द्वारा नवंबर 2023 से वाणिज्यिक जहाजों पर हमले शुरू हुए, जिससे कंपनियों को केप ऑफ गुड होप के लंबे मार्ग का सहारा लेना पड़ा, जिससे ट्रांजिट समय और लागत दोनों बढ़ गए. भारत 30% डीएपी सऊदी अरब से, 60% रॉक फॉस्फेट जॉर्डन और मिस्र से, और 30% फॉस्फोरिक एसिड जॉर्डन से आयात करता है. रेड सी मार्ग पर संकट के कारण उर्वरक आपूर्ति में महीनों की देरी हो रही है, जिससे माल ढुलाई की लागत में भी वृद्धि हो गई है. 

खाद अर्थशास्त्र: सरकारी सब्सिडी की भूमिका

केन्द्र सरकार खाद पर भारी सब्सिडी देती है, जिससे इसे किसानों के लिए किफायती बनाया जाता है. उदाहरण के लिए, एक डीएपी के बैग की कीमत सरकार को लगभग ₹2,200 पड़ती है, जिसे किसानों को लगभग ₹1,250 में दिया जाता है. इन सब्सिडियों के बावजूद, भू-राजनीतिक तनाव के कारण आयात लागत बढ़ने से आपूर्ति बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है. सरकार का सब्सिडी दरों पर खाद की खरीद और वितरण का प्रयास लगातार एक चुनौती बना हुआ है. 

मध्य प्रदेश का परिदृश्य: लॉजिस्टिक्स और मांग 

मध्य प्रदेश को रबी सीजन के लिए लगभग 7 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से ग्वालियर और चंबल जैसे क्षेत्रों में बुवाई के दौरान इसकी मांग चरम पर होती है. बुवाई के समय, डीएपी की जरूरत सबसे अधिक होती है, और इसके बाद सिंचाई के बाद यूरिया की जरूरत बढ़ जाती है. 

मध्य प्रदेश के ग्वालियर, चंबल, और मालवा जैसे क्षेत्रों में सरसों और चने की बुवाई पहले होती है, जबकि रीवा और जबलपुर जैसे इलाकों में धान और अन्य फसलों की बुवाई देर से होती है. इस असमान बुवाई प्रक्रिया के कारण डीएपी की मांग भी अलग-अलग समय पर होती है. 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक बुवाई की अवधि है, इस दौरान लगभग 2 लाख मीट्रिक टन खाद की ज़रूरत होती है. रीवा संभाग में 15 नवंबर के आसपास धान की बुवाई शुरू होगी. ग्वालियर-चंबल में धान नहीं सरसों-चने की बुवाई पहले शुरू हो जाती है. मध्यप्रदेश में डीएपी उत्तर से दक्षिणी हिस्से, फिर पश्चिम से पूर्व की ओर मांग बढ़ेगी. अब खाद की मांग मालवा में शुरू होगी. यहां पर आलू जल्दी बोलना शुरू करते हैं इंदौर के इलाके में तो अब उनको डीएपी की जरूरत पड़ेगी, तो वहां पर डीएपी के रेक लगने लगे हैं, अफसर मानते हैं कि आवक से बड़ा मुद्दा लॉजिस्टिक का होगा. 

क्या कहती है सरकार? 

वैसे सरकार का कहना है रबी 2024-25 के लिए उसके पास पर्याप्त खाद है- फिलहाल कुल 16.43 लाख मीट्रिक टन उर्वरक उपलब्ध है, जिसमें 6.88 यूरिया, 1.38 डीएपी, 2.70 एनपीके, 4.08 डीएपी+एनपीके, 4.86 एसएसपी और 0.61 लाख मीट्रिक टन एमओपी उर्वरक उपलब्ध है. प्रदेश में रबी फसलों के अंतर्गत मुख्य रूप से चंबल एवं ग्वालियर संभागों में सरसों 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक, उज्जैन, इंदौर, भोपाल, सागर संभागों में चना, मसूर 20 अक्टूबर से 10 नवंबर तक, उज्जैन, इंदौर, भोपाल, चंबल, सागर, नर्मदापुरम में गेहूं 1 नवंबर से 30 नवंबर तक तथा जबलपुर, रीवा एवं शहडोल संभागों में गेहूं एवं चना की फसलों की बोनी 15 नवंबर से 31 दिसंबर तक की जाती है.

हालांकि ये भी तय है कि जब तक यूक्रेन-इज़राइल युद्ध का समाधान नहीं होता तब तक हर सीजन में ऐसी दिक्कत बनी रह सकती है. 

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