Vidisha Lok Sabha Seat: देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) जितने प्रिय भारतीय जनता पार्टी में थे, उतने ही प्रिय विपक्षी पार्टी के नेताओं में भी थे. अटल बिहारी वाजपेयी ने दलगत राजनीति से उठकर विपक्षी नेताओं के दिलों में भी अपनी खासा जगह बनाई थी. यही वजह थी कि अटल जी भाजपा (BJP) के साथ अन्य दलों के चहेते नेता कहे जाते थे. साल 1991 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा संसदीय क्षेत्र (Vidisha Lok Sabha constituency) से चुनाव लड़ने का इरादा किया तो उस समय इस सीट से कांग्रेस (Congress) से प्रताप भानु (Pratap Bhanu Sharma) मैदान में थे. हालांकि इस सीट से वाजपेयी ने शानदार जीत दर्ज की.
दरअसल, अटल वाजपेयी और प्रताप भानु शर्मा आमने सामने थे. तब अचानक पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Former Prime Minister Rajiv Gandhi) ने अपने ही उम्मीदवार प्रताप भानु शर्मा को विदिशा सीट (Vidisha Seat) से चुनाव न लड़ने की सलाह देते हुए से दूसरे सीट का ऑफर दिया था.
नामांकन के दौरान प्रताप ने अटल बिहारी से पैर छूकर लिया था आशीर्वाद
वहीं दोपहर करीब दो बजे अपने कार्यकर्ताओं के साथ कांग्रेस उम्मीदवार प्रताप भानु शर्मा जैसे ही विदिशा लोकसभा सीट से नामांकन भर कर बाहर निकले तो उनका सामना अटल बिहारी वाजपेयी से हुआ. इस दौरान उनके साथ भाजपा के तमाम नेताओं और कार्यकर्ता मौजूद थे. तब प्रताप भानु शर्मा अटल बिहारी वाजपेयी का पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया. इस दौरान वाजपेयी ने प्रताप भानु शर्मा को आशीर्वाद देते हुए कहा था, 'मैं अपनी पार्टी के आदेश मानकर विदिशा आया हूं.'
क्यों राजीव गांधी वाजपेयी के खिलाफ विदिशा सीट से नहीं उतारना चाहते थे उम्मीदवार?
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जानते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी के सामने कोई भी उम्मीदवार नहीं टिक सकता. यही वजह थी कि राजीव गांधी ने प्रताप भानु शर्मा को विदिशा लोकसभा सीट की जगह भोपाल और बैतूल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था. हालांकि प्रताप भानु अपनी बातों पर अड़े रहे और विदिशा लोकसभा से वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ा.