Dussehra 2023: देश भर में मंगलवार को दशहरा (Dussehra) मनाया जा रहा है. शक्ति की प्रतीक देवी दुर्गा के उपासना का पर्व नवरात्रि अब समाप्त हो चुका है. दशहरा यानी दशानन के अंत का दिन आ चुका है. देश भर में दशहरे की धूम है और अलग-अलग तरह से या त्योहार मनाया जाता है. हर जगह एक समानता जरूर रहती है कि इस दिन रावण के पुतले का का अंत किया जाता है. बात करें आगर मालवा (Agar Malwa) की तो, यहां पर 51 फीट ऊंचा रावण दहन होगा. इसे लेकर तमाम तैयारियां जोरों पर है. स्टेडियम ग्राउंड दशहरा मैदान (Stadium Ground Dussehra Ground) पर रावण दहन की तैयारी पूरी तरह से कर ली गई है. लोग सुबह से ही यहां पर लगे रावण के पुतले को देखने के लिए आ रहे हैं क्योंकि इस पुतले की ऊंचाई 51 फिट है. आसपास के इलाके में संभवतः इतना ऊंचा रावण दहन कहीं नहीं होता.
दशहरा मैदान में तैयारी के तमाम इंतज़ाम
बता दें कि रावण दहन की पूरी व्यवस्था नगर पालिका परिषद की तरफ से किया जाता है. नगर पालिका के अध्यक्ष निलेश पटेल ने NDTV को बताया कि राम बारात परंपरागत रूप से शहर के अलग-अलग हिस्सों से होती हुई यहां पर दशहरा मैदान में पहुंचेगी. इसके बाद यहां राम बारात में शामिल हनुमान जी परिक्रमा करेंगे और गांव के बुराई के प्रति रावण के पुतले का दहन किया जाएगा.
दशहरे के मौके पर होगी रंगारंग आतिशबाजी
पटेल ने आगे बताया कि कई सालों से एक सामान्य परंपरा चली आ रही थी कि रावण दहन के लिए आम जनता से चंदा किया जाता था. मगर अब आम लोगों की सहूलियत के लिए पालिका परिषद ने यह फैसला किया है. इसी कड़ी में रावण दहन को लेकर होने वाला तमाम खर्च परिषद उठाती है. रावण दहन के पहले रंगारंग आतिशबाजी होगी. जिसे निहारने के लिए आसपास के इलाके के करीब पच्चीस हजार लोग शामिल होंगे.
रावण के पुतले में होगी यह खासियत
कई सालों से नगर पालिका की तरफ से 51 फीट ऊंचे रावण का पुतला तैयार कराया जाता है. इसे बनाने के लिए खास तौर पर उत्तर प्रदेश से कारीगर आते हैं.विशेष बात यह है कि पुतले का निर्माण में जो कारीगर है आते है वो सब मुस्लिम समाज से है.रावण का निर्माण करने वाले कारीगर कदीर अहमद ने NDTV को बताया कि " हम रावण के पुतलों का निर्माण पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. हमारी रोजी-रोटी का साधन इस तरह के पुतलों के निर्माण से चलता है. हमारे परिवार का गुर्जर बसर होता है. आगर मालवा के अलावा इसके आसपास की जो शहर है.हम वहां पर भी रावण के पुतलों का निर्माण करने जाते हैं.
'जब से होश संभाला मैंने अपने पिताजी को यह काम करते हुए देखा कभी उन्होंने भी यह नहीं कहा कि यह हिंदुओं का त्योहार है. यह तो एक रोजगार का साधन है और एक सामाजिक कार्य है. यह धर्म या जाति वाली बात नहीं है हम सिर्फ अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं और यही हमारी रोजी-रोटी का साधन है'- कारीगर
बुराई पर अच्छाई की जीत है दशहरा
कदीर के अलावा करीब 8 से 10 और लोग भी इस काम में शामिल होते हैं. सालों से सभी अपने काम को बदस्तूर कर रहे हैं. इन्हें आमतौर पर रावण का एक पुतला तैयार करने में करीब 15 दिन का वक़्त लगता है. कदीर यह भी कहते हैं कि 'रावण के जो 10 चेहरे हैं वह इस बात का प्रतीक है कि वह अलग-अलग रूप से बुराई लेकर आता है लेकिन चाहे 51 फीट का हो या 100 फीट का हो या कितनी ही बड़ी बुराई हो. उसको अंत में खत्म होना ही पड़ता है. अच्छाई की हमेशा जीत होती है.'
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