शिवपुरी की 'मदर इंडिया' का सपना हुआ पूरा, पीएम जनमन आवास योजना में मिला मकान तो खिल उठा चेहरा

ममता अपनी जिंदगी से काफी नाराज चल रही थी लेकिन एक दिन उसकी झोपड़ी में गांव का सेक्रेटरी आया, उसने ममता से कहा, ' ममता यहां अंगूठा लगाओ, तुम्हें प्रधानमंत्री ने जनमन आवास योजना के तहत मकान आवंटित किया गया है और अब जल्दी ही तुम्हें एक पक्का मकान मिलेगा.' ममता की आंखें इस बात को सुनकर खिल गई

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
ममता आदिवासी को मिला मकान

Madhya Pradesh News: आप में से बहुत सारे लोगों ने फिल्म मदर इंडिया फिल्म देखी होगी, शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस फिल्म में नरगिस द्वारा मां के निभाए किरदार को देखकर प्रभावित नहीं हुआ होगा. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक मां संघर्ष करके अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करती है. इसी तरह की एक मां रियल लाइफ में भी है जी हां ये मां भी मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने में लगी हुईं हैं. फिल्मी कहानी से अलग ये रियल कहानी ममता आदिवासी की है. 

आदिवासी महिला का नाम ममता है

अपनी टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने वाली 40 साल की विधवा आदिवासी महिला जिसका नाम ममता है. जीवन के सफर में इसके जीवन साथी ने उम्र के आधे पड़ाव से पहले ही इसका साथ छोड़ दिया. ममता आदिवासी के तीन बच्चे हैं, दो बेटे और एक बेटी. इनतका एक बेटा नौवीं क्लास में पढ़ता है वहीं दूसरा चौथी क्लास में पढ़ता है, इनकी बेटी ने अभी-अभी स्कूल में दाखिला लेकर पहली कक्षा में पढ़ना शुरू किया है. पहले ममता ने अपने पति की बीमारी में अपने हैसियत से ज्यादा पैसा लगाया उसे बचाने की हर संभव कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो पाई.

Advertisement

ममता ने एक सपना अपनी आंखों में बुन लिया...

ममता अपनी जिंदगी से काफी नाराज चल रही थी लेकिन एक दिन उसकी झोपड़ी में गांव का सेक्रेटरी आया, उसने ममता से कहा, ' ममता यहां अंगूठा लगाओ, तुम्हें प्रधानमंत्री ने जनमन आवास योजना के तहत मकान आवंटित किया गया है और अब जल्दी ही तुम्हें एक पक्का मकान मिलेगा.' ममता की आंखें इस बात को सुनकर खिल गई उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. ममता को लगा कि अब पक्के मकान में जाकर उसका जीवन पहले से बेहतर होगा और वह अपने बच्चों को पहले से ज्यादा सुविधाजनक तरीके से पालने में सक्षम होगी. इसे लेकर ममता ने एक सपना अपनी आंखों में बुन लिया और अब वह दिन-रात मजदूरी करके अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहती है वह चाहती है कि उसका कोई बेटा कलेक्टर बने तो कोई बेटा मास्टर बच्ची भी खूब पड़े और दुनिया में अपने पैरों पर खड़ी हो सके.

Advertisement

ये भी पढ़ें Balrampur: राशन कार्ड नवीनीकरण के काम में लापरवाही बरतने पर दो PDS एजेंसियों को किया गया निलंबित

Advertisement

इस साहसी महिला से जब एनडीटीवी ने बात की तो उसके शब्द भले ही शर्म से और कम पढ़े-लिखे ना होने की वजह से पूरे वाक्य के साथ सामने ना आते हो लेकिन उसका आत्मविश्वास साफ तौर पर दिख रहा था. ममता आदिवासी जी तोड़ मेहनत करते हुए अपने बच्चों की बेहतर भविष्य के लिए काम कर रही हैं.

ये भी पढ़ें Valentine's Day 2024: पार्टनर को खुश करने के लिए आज के दिन करें ये काम, गिफ्ट की भी नहीं पड़ेगी जरूरत

Topics mentioned in this article