Cough Syrup Deaths: तमिलनाडु में 24 घंटे में जांच; दवा बैन, MP में 9 बच्चों की मौत के बाद भी रिपोर्ट का इंतजार

Cough Syrup Case: परिजनों का आरोप है कि बच्चों को दी गई खांसी की दवाइयाँ कोल्ड्रिफ और नेक्स्ट्रोस डीएस ही इन मौतों की वजह बनीं. लगभग हर बच्चे को पहले बुखार आया, फिर उल्टियां, दस्त और फिर अचानक पेशाब बंद हो जाना शुरू हुआ. यह वही क्लासिक लक्षण हैं जो डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) ज़हरखुरानी से होते हैं. यही जहर 2022 में गाम्बिया में बच्चों की मौत का कारण बना था.

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Cough Syrup Deaths: तमिलनाडु ने 24 घंटे में जांच; दवा बैन, MP में 9 बच्चों की मौत के बाद भी रिपोर्ट का इंतजार

Cough Syrup Deaths: छिंदवाड़ा के परासिया में शिवम, विधि, अदनान, उसैद, ऋषिका, हेतांश, विकास, चंचलेश और संध्या की मासूम हंसी अब हमेशा के लिए खामोश हो गई. नौ छोटे-छोटे सपनों के बुझ जाने के बाद भी सरकार रिपोर्टों का इंतज़ार कर रही है. उधर तमिलनाडु में, छुट्टियों के बावजूद, महज़ 24 घंटे में जांच पूरी हुई और साफ पाया गया कि कोल्ड्रिफ सिरप के बैच SR-13 में 48.6% डाईएथिलीन ग्लाइकॉल जैसा जानलेवा ज़हर मिला है. वहां तुरंत अलर्ट जारी हुआ, उत्पादन रोका गया, कार्रवाई की गई. लेकिन मध्यप्रदेश में, जहां नौ बच्चों की लाशें सवाल बनकर पड़ी हैं, स्वास्थ्य मंत्री अब भी दावा कर रहे हैं कि दवा में कुछ नहीं मिला. एक तरफ सबूत और रिपोर्टें हैं, दूसरी तरफ़ सत्ता का इनकार. सवाल यह है कि जब ज़िंदगी दांव पर है, तो मौतों पर भी इंतज़ार क्यों?

क्या है मामला?

परिजनों का आरोप है कि बच्चों को दी गई खांसी की दवाइयाँ कोल्ड्रिफ और नेक्स्ट्रोस डीएस ही इन मौतों की वजह बनीं. लगभग हर बच्चे को पहले बुखार आया, फिर उल्टियां, दस्त और फिर अचानक पेशाब बंद हो जाना शुरू हुआ. यह वही क्लासिक लक्षण हैं जो डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) ज़हरखुरानी से होते हैं. यही जहर 2022 में गाम्बिया में बच्चों की मौत का कारण बना था. मध्य प्रदेश में हुई किडनी बायोप्सी रिपोर्ट भी इसी दिशा में इशारा कर चुकी है. लेकिन जहाँ तमिलनाडु ने 24 घंटे के भीतर जाँच कर बैच को ज़हरीला घोषित कर पाबंदी लगा दी, वहीं मध्य प्रदेश अब भी “रिपोर्ट का इंतज़ार” कर रहा है.

विरोधाभास साफ है. 1 अक्टूबर 2025 को तमिलनाडु के ड्रग्स कंट्रोल विभाग को मध्य प्रदेश से बैच SR-13 (कोल्ड्रिफ सिरप) को लेकर पत्र मिला. यह बैच कांचीपुरम ज़िले की श्रीसन फ़ार्मास्युटिकल्स द्वारा बनाया गया था. 1 और 2 अक्टूबर सरकारी छुट्टियाँ थीं, फिर भी उसी शाम निरीक्षक टीम फैक्ट्री पहुँच गई. जाँच में 39 गंभीर खामियाँ और 325 बड़ी गड़बड़ियाँ पाई गईं. फैक्ट्री में उपलब्ध कोल्ड्रिफ और अन्य चार सिरप के सैंपल तुरंत सीज़ कर चेन्नई की सरकारी लैब भेज दिए गए.

छुट्टी के दिन भी वैज्ञानिकों ने फौरन जाँच की और 24 घंटे में रिपोर्ट आ गई. सरकारी विश्लेषक ने फ़ॉर्म-13 जारी कर साफ लिखा ... कोल्ड्रिफ सिरप बैच SR-13 "मानक गुणवत्ता का नहीं" है और इसमें 48.6% डायथिलीन ग्लाइकॉल मिला है.
जानकार कहते हैं डीईजी पेंट उद्योग में इस्तेमाल होने वाला ज़हरीला सॉल्वेंट है और किडनी फेल कर देता है. रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि दवा एथिलीन ग्लाइकॉल टेस्ट में भी फेल हुई. हालाँकि बाकी चार सिरप मानक गुणवत्ता के पाए गए.

तमिलनाडु की रिपोर्ट में क्या है?

रिपोर्ट में कहा गया है कि तमिलनाडु की दवा नियंत्रण विभाग की टीम ने कोल्ड्रिफ सिरप के संदिग्ध बैच SR-13 की गहन जांच में कई बड़ी खामियाँ पकड़ीं. जांच में सामने आया कि दवा बनाने में सही क्वालिटी का केमिकल नहीं बल्कि घटिया स्तर का प्रोपाइलीन ग्लाइकोल इस्तेमाल हुआ, जो खतरनाक डायथिलीन ग्लाइकोल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकोल से दूषित था. ये दोनों ज़हरीले रसायन हैं जो किडनी को बुरी तरह नुकसान पहुंचाते हैं.

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कार्रवाई के तहत कोल्ड्रिफ सिरप (बैच SR-13) के अलावा चार और दवाओं रेस्पोलाइट डी, रेस्पोलाइट जीएल, रेस्पोलाइट एसटी और हेप्सैंडिन के नमूने लिए गए.

इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने पल भर भी बर्बाद नहीं किया. पूरे राज्य में अलर्ट जारी कर दिया गया. सभी ड्रग इंस्पेक्टरों को वितरण सूची भेजकर आदेश दिया गया कि थोक और खुदरा स्तर पर स्टॉक तुरंत फ्रीज़ कर दिए जाएं. इंटर-स्टेट वितरण रिकॉर्ड के आधार पर ओडिशा और पुडुचेरी को भी तुरंत चेतावनी भेजी गई. 3 अक्टूबर को कंपनी पर स्टॉप प्रोडक्शन ऑर्डर लगाया गया, लाइसेंस रद्द करने का शो-कॉज़ नोटिस जारी हुआ और जनता से अपील की गई कि इस सिरप का कोई भी बैच मिलने पर तुरंत अधिकारियों को सूचना दें. तमिलनाडु के उप निदेशक एस. गुरुभारती ने इसे भारत का पहला मामला बताया जिसमें छुट्टियों के बावजूद 48 घंटे के भीतर निरीक्षण, सैंपलिंग, परीक्षण और उत्पादन बंदी का आदेश जारी किया गया.

MP में इतना लंबा इंतजार क्यों?

इसके उलट, मध्य प्रदेश में जहाँ नौ मासूम अपनी जान गंवा चुके हैं, वहाँ सरकार का रुख ढीला और प्रशासन से विरोधाभासी दिख रहा है.

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स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा जो सैंपल भेजे गये उसमें कोई इस प्रकार के तत्व नहीं मिले जिससे कहा जा सके मौत इन दवाओं की वजह से हुई है, जो बाकी बची दवाएं हैं उनकी रिपोर्ट बाकी है ये बात सही है कि बच्चों की मौत हुई है लेकिन उसका कारण क्या है भारत सरकार के जो लैब्स है उनकी रिपोर्ट प्राप्त करने के प्रयास कर रहे हैं

जबकि परासिया के एसडीएम शुभम यादव ने कहा बायोप्सी से साफ हो गया है किडनी इंफेक्शन ही है, सारे बच्चे छोटे हैं 5 साल के करीब, कॉमन बीमारियों के कारण है गंदा पानी, चूहे, मच्छर ,से फैली बीमारी सबकी जांच कराई है लेकिन उसमें कुछ नहीं मिला ... कॉमन कॉज निकल कर आ रहा था, 2022 में ऐसी बात निकलकर आई थी सेंट्रल फॉर डिसिस कंट्रोल की रिपोर्ट थी गाम्बिया में सिरप इंपोर्ट की गई था ... लक्षण भी वैसे थे जैसे हमारे यहां फीवर, उल्टी, दस्त, बुखार बाद में किरेटिनिन बढ़ रहा था बाद में पेशाब रूकने की समस्या आ रही थी, यही पैटर्न हमारे यहां देखऩे को मिल रही है, जब वहां गहन जांच हुआ था 2022 में डायथिलीन ग्लायकॉल का कॉन्टैमिनिशेन मिला था वो भारत में बनी थी.कार्रवाई तब होगी जब सिद्ध होगा गलती उनकी थी ... अभी हम बचाव के मोड में हैं हमने दवा की बिक्री रोक दी है सैंपल जांच के लिये भेजा है ... दवा काफी समय से चल रही है अचानक बैच तो कार्रवाई करेंगे.

वहीं वरिष्ठ संयुक्त संचालक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन डॉ प्रभाकर तिवारी ने कहा ये प्रतीत हो रहा किडनी फेल्योर से बच्चों की मौत हुई है, एक तो बच्चों की रीनल बॉयोप्सी हुई है जिससे पता लगा है टॉक्सिक सब्सटेंस के कारण किडनी फेल हुई है ... एक कॉमन चीज सामने आई है कफ सिरप जिसमें एक इंडस्ट्रियल सॉल्वेंट सामने आया है.

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यानी एक तरफ मंत्री लगातार “कोई सबूत नहीं” कह रहे हैं, वहीं राज्य के अपने स्वास्थ्य अधिकारी मौतों का कारण ज़हरीला तत्व मान रहे हैं. और यही विरोधाभास सबसे बड़ा सवाल बन गया है.

शिवम, विधि, अदनान, उसैद, ऋषिका, हेतांश, विकास, चंचलेश और संध्या की मौतें अब केवल आँकड़े नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुस्ती और राजनीतिक इनकार की कठोर गवाही हैं. जब तमिलनाडु 24 घंटे में जाँच पूरी कर सच सामने ला सकता है, तो मध्य प्रदेश क्यों अटका है? डॉक्टरों और बायोप्सी रिपोर्ट्स की सच्चाई को मंत्री का इनकार क्यों दबा रहा है?

छिंदवाड़ा की हर शोकाकुल मां यही पूछ रही है, जब सबूत जहर की ओर इशारा कर रहे हैं, तो सरकार को और कितनी रिपोर्टों और कितनी मौतों की ज़रूरत है कार्रवाई करने के लिए?

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