'सफेद सोने' के खदान में घमासान, चिलचिलाती गर्मी में भी घंटों लाइन में लगने को मजबूर किसान

मध्यप्रदेश में सफेद सोने की खदान यानी खरगोन में कपास (Cotton of Khargone) के बीज के वितरण के लिए बनाई गई टोकन व्यवस्था किसानों ( (Farmers of Khargone))के लिये परेशानी का सबब बनती जा रही है. 42-43 डिग्री तापमान में उन्हें घंटों इंतज़ार करना पड़ रहा है. वो भी महज दो बैग कपास के बीज के लिए.

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Madhya Pradesh News: मध्यप्रदेश में सफेद सोने की खदान यानी खरगोन में कपास (Cotton of Khargone) के बीज के वितरण के लिए बनाई गई टोकन व्यवस्था किसानों (Farmers of Khargone) के लिये परेशानी का सबब बनती जा रही है. 42-43 डिग्री तापमान में उन्हें घंटों इंतज़ार करना पड़ रहा है. वो भी महज दो बैग कपास के बीज के लिए. हालात कुछ ऐसे हैं कि गुरूवार को तो नाराज़ किसानों ने चक्का जाम तक कर दिया. इसके बाद प्रशासन की नींद खुली अब शुक्रवार को पुलिस के कड़े बंदोबस्त के बीच बीज बांटे जा रहे हैं. प्रशासन ने महिलाओं और पुरुषों की अलग लाइन लगाई है लेकिन वो लाइन भी इतनी लंबी है कि किसी भी भले-चंगे आदमी की तबीयत खराब हो जाए. 

बता दें कि गुरुवार को खरगोन में नाराज़ किसानों ने भुसावल-चित्तौड़गढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग (Bhusaval-Chittaurgarh National Highway) पर चक्काजाम कर दिया था. इससे दो घंटे से अधिक वक्त तक गाड़ियों के पहिए थम गए थे. दरअसल गुरुवार को सुबह 4 बजे से किसान टोकन के लिए लाइन में लगे थे लेकिन कर्मचारियों ने 5 घंटे बाद ही किसानों को टोकन देने से मना कर दिया. इसी से गुस्साए किसानों ने हंगामा खड़ा कर दिया. आगे बढ़ने से पहले खरगोन में कपास की खेती को भी समझ लेते हैं.  

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कृषि भवन पहुंचे किसानों का कहना है कि पैसे देने के बाद भी एक पर्ची पर सिर्फ 2 पैकेट बीज का टोकन दिया जा रहा है. जिसका इंतजाम अनाज मंडी और बीज निगम ने किया है. किसानों का कहना है कि एक तो बाहर बीज महंगे हैं दूसरा वहां उपलब्धतता भी कम है. वहीं प्रशासन का कहना है कि पर्याप्त बीज आए हैं लेकिन किसान एक कंपनी के बीज की जिद कर रहे हैं.कृषि विभाग के उपसंचालक एमएल चौहान का कहना है कि किसान केवल कपास के 659 किस्म के बीज की मांग कर रहे हैं जबकि हम उन्हें समझा रहे हैं कि दूसरी वैरायटी भी अच्छा उत्पादन देगी. हमने सबसे ज्यादा डिमांड वाली वैरायटी के 47 हजार पैकेट दिए हैं. हमारी कोशिश है कि जैसे ही और पैकेट आएंगे हम उसे भी किसानों को दे दें. अब देखना ये है कि किसानों को इस चिलचिलाती गर्मी में इस लंबी लाइन से छुटकारा कब मिलता है.

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