295 रुपए की लड़ाई, 7 साल का संघर्ष, उपभोक्ता ने Bank को सिखाया सबक, कंज्यूमर कोर्ट ने ये कहा

Consumer Forum: देश के एक बड़े नेशनल बैंक ने जबलपुर के निशांत ताम्रकार के अकाउंट से बेवजह 295 रुपए काट लिए थे. इसके बाद निशांत ने अपने साथ हुए इस नुकसान को जिला उपभोक्ता फोरम में चुनौती दी थी. आखिरकार लंबे इंतजार के बाद फैसला उपभोक्ता के पक्ष में आया.

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Consumer Court Jabalpur: मध्यप्रदेश के जबलपुर (Jabalpur) में एक साधारण से मामले ने उपभोक्ता अधिकारों (Consumer Rights) के प्रति जागरूकता की मिसाल कायम की है. यहां पनागर निवासी निशांत ताम्रकार ने 295 रुपये की गलत कटौती के खिलाफ सात साल तक संघर्ष करते हुए उपभोक्ता फोरम (Consumer Forum) में बैंक (National Bank) को अपनी गलती मानने पर मजबूर किया. यह घटना न सिर्फ उनके अदम्य साहस को दर्शाती है, बल्कि उपभोक्ता अधिकारों (Consumer Rights in India) के प्रति प्रेरणा भी देती है.

छोटा मामला, बड़ा सबक

मामला 2017 का है, जब निशांत ने एक फाइनेंस कंपनी के माध्यम से वॉशिंग मशीन खरीदी. ईएमआई (EMI) भुगतान के लिए उनका खाता एक बड़े राष्ट्रीयकृत बैंक से जुड़ा था, लेकिन एक दिन, जब ईएमआई काटी गई, तो बैंक ने 295 रुपये अतिरिक्त काट लिए.

निशांत ने बैंक से इसकी वजह पूछी, तो इसे "चेक डिडक्शन चार्ज" बताया गया, जबकि उनके खाते में पर्याप्त राशि थी और कोई चेक बाउंस नहीं हुआ था. संतोषजनक जवाब न मिलने पर निशांत ने इसे अन्याय मानते हुए कानूनी लड़ाई का रास्ता चुना.

295 रुपये के लिए हजारों का खर्च

निशांत ने अपने वकील रोहित पैगवार से परामर्श किया. वकील ने बताया कि उपभोक्ता फोरम में केस दायर किया जा सकता है, लेकिन इसमें समय और पैसा दोनों लगेंगे. वकील की फीस और कानूनी खर्च मिलाकर 3,000 रुपये से ज्यादा का खर्च था, लेकिन निशांत पीछे नहीं हटे. उन्होंने कहा, "यह पैसे की बात नहीं है, यह न्याय की बात है."

7 साल का संघर्ष, फिर बैंक सिखाया सबक

मामला उपभोक्ता फोरम पहुंचा, लेकिन बैंक ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और सुनवाई में टालमटोल करती रही. आखिरकार 7 साल की लंबी प्रक्रिया के बाद उपभोक्ता फोरम ने निशांत के पक्ष में फैसला सुनाया. फोरम ने बैंक की गलती स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि बैंक निशांत को 295 रुपये लौटाए. मानसिक पीड़ा और कानूनी खर्च के लिए 4,000 रुपये का मुआवजा दे. यदि यह राशि 2 महीने के भीतर नहीं दी गई, तो संबंधित बैंक अधिकारी पर 10,000 रुपये जुर्माना और 3 साल की सजा का प्रावधान होगा.

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"लड़ाई पैसे की नहीं, न्याय की थी"

फैसले के बाद निशांत ने कहा, "यह लड़ाई सिर्फ मेरे 295 रुपये की नहीं थी, बल्कि उन अनगिनत उपभोक्ताओं के लिए थी जिनसे बिना वजह पैसा वसूला जाता है. मेरा मकसद न्याय को जीतते देखना था, न कि मुआवजा लेना."

उपभोक्ताओं के लिए संदेश

इस घटना ने साबित कर दिया कि छोटे से छोटे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना कितना महत्वपूर्ण है. निशांत ताम्रकार ने दिखा दिया कि यदि इरादे पक्के हों, तो कोई भी बड़ी संस्था उपभोक्ता के अधिकारों को अनदेखा नहीं कर सकती. यह कहानी हर उपभोक्ता को उसके अधिकारों के प्रति जागरूक और हिम्मत देने वाली है. कभी-कभी छोटी लड़ाईयां भी बड़ी जीत का सबक बन जाती हैं.

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