Indian National Congress: हार दर हार का सामना कर रही मध्य प्रदेश कांग्रेस (Madhya Pradesh Congress) ने अब पार्टी के काम करने के तरीके में बड़ा बदलाव करने का फैसला किया. दरअसल, पार्टी ने तय कर लिया है कि अब मंच का झंझट खत्म किया जाए. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के ऐलान के बाद एक तरफ जिला अध्यक्षों को तो ताकत देने की बात हो रही है. इसके साथ ही ‘मंच-मचान' का युग भी विदा होगा. यानी सब कुछ ठीक रहा तो कांग्रेस (Congress) के जलसों में अब 'डायस सिस्टम' दिखाई देगा, यानी सीधी सादी व्यवस्था, न ऊंच-नीच का झंझट, न कुर्सी की लड़ाई.
जिस कांग्रेस ने 'वक्त है बदलाव' का नारा देकर कभी सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की कोशिश की थी. वही, अब खुद को संभालने के लिए अपनी पुरानी आदतें बदलने पर मजबूर हो गई है. अब से पहले पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच मंच एक नशा रहा है. हर नेता को मंच डिमांड होती थी. भोपाल में पिछले तीन महीनों में कांग्रेस ने दो बड़े आंदोलन किए. पहला आयोजन स्मार्ट सिटी रोड के चौराहे पर विधानसभा घेराव का हुआ था. इस दौरान, इतने नेता उमड़े कि मंच को तीन मंजिला बनाना पड़ा. जैसे-तैसे यह मंच टिका था. दूसरा जलसा रंगमहल चौराहे पर हुआ था. वहां इतनी भीड़ पहुंच गई कि मंच बुरी तरह धड़ाम हो गया. इस दौरान कांग्रेस नात राजीव सिंह, मानक अग्रवाल, महेंद्र सिंह चौहान और संतोष कंसाना मंच से गिरने की वजह से घायल हो गए. अब हालत यह है कि मंचों के खिलाफ कांग्रेस में खुद नेताओं ने बगावत कर दी है.
कार्यक्रम को लेकर बनाई गई ये नीतियां
कांग्रेस पार्टी ने तय किया है कि अब हर कार्यक्रम में महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर की फोटो अनिवार्य होगी. कार्यक्रम की शुरुआत ‘वंदे मातरम्' से और समापन ‘जन-गण-मन' के साथ होगी. जिला स्तरीय कार्यक्रम में 12x12 फीट का मंच होगा और यह मात्र 3 फीट ऊंचा होगा. बीच में एक डायस होगा, उसी से नेता भाषण देंगे और फिर नीचे उतरकर कार्यकर्ताओं के साथ जमीन पर बैठेंगे. सबसे ऊपर राहुल गांधी की फोटो, साथ में तीन राष्ट्रीय नेता, दो पूर्व मुख्यमंत्री, दो पूर्व पीसीसी चीफ, पूर्व नेता प्रतिपक्ष, सांसद, राष्ट्रीय सचिव की तस्वीरें होंगी. नीचे की पंक्ति में जिला अध्यक्ष,जिला प्रभारी, सह प्रभारी, सेवा दल, युवा कांग्रेस, एनएसयूआई, महिला कांग्रेस, सोशल मीडिया प्रमुख की तस्वीरें होंगी.
ऐसा होगा राष्ट्रीय स्तर का मंच
कांग्रेस की ओर से जो गाइडलाइन जारी की गई है. उसके मुताबिक जहां तक संभव हो, सूत की माला से स्वागत हो और फूलों की माला से इस्तेमाल करने से बचा जाए. स्वागत का क्रम वरिष्ठता के अनुसार तय होगा, पुराने नेता पहले और नए नेताओं के स्वागत बाद में की जाएगी. इस दौरान, ब्लॉक अध्यक्ष, मोर्चा संगठन, सोशल मीडिया प्रभारी जैसे सभी नेताओं का स्वागत सुनिश्चित किया जाएगा. मंच पर दो कॉडलेस माइक जरूर रखे जाएं, ताकि संवाद सुचारु रूप से हो सके. इसके साथ ही भाषणों के लिए भी टाइमलाइन तय कर दी गई है. जिला अध्यक्ष, प्रभारी, सह प्रभारी, संगठन मंत्री, प्रदेश पदाधिकारी, पीसीसी और एआईसीसी डेलीगेट्स 7-8 मिनट तक ही भाषण दे पाएंगे.वहीं, विशिष्ट अतिथियों को 10 मिनट का समय दिया जाएगा. वहीं, मुख्य वक्ताओं के समय का निर्धारण उपलब्ध समय के अनुसार किया जाएगा. वहीं, जिला स्तर पर कौन बोलेगा, ये जिला अध्यक्ष और प्रभारी तय करेंगे. प्रदेश स्तर पर किसे बैठाया जाएगा, ये भी प्रदेश प्रभारी और कांग्रेस अध्यक्ष तय करेंगे. सेवादल के कार्यकर्ता अनुशासन समिति के वालंटियर बनकर निगरानी करेंगे. हर कार्यक्रम में अनुशासनहीनता करने वालों की बाकायदा सूची बनेगी.
पार्टी को नई नीति पर है पूरा भरोसा
कांग्रेस पार्टी में होने वाले इस बदलाव पर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता शैलेंद्र पटेल ने कहा कि पार्टी समय समय पर बदलाव करती रहती है. अब पार्टी ने ये नया फैसला किया है, तो सभी नेता इसे मानेंगे. उन्होंने कहा कि प्रोटोकॉल का पालन जिस तरीके से होना चाहिए, वैसे नहीं हो पा रहा है.वहीं, पार्टी के इस नए प्रयोग पर कार्यकर्ता अलग-अलग राय दे रहे हैं. कुछ को इसमें अनुशासन की सुगंध आ रही है, तो कुछ को घुटन की बू आ रही है.
'मंच टूटने से बचा सकते हैं, पार्टी टूटने से कैसे बचेंगे?'
इधर, बीजेपी ने कांग्रेस के इस फैसले पर चुटकी ली है. बीजेपी के पूर्व सांसद आलोक संजर ने कहा कि जब जरूरत से ज्यादा लोग बैठेंगे, तो मंच टूटेगा ही. उन्होंने आगे कहा कि अब तो कांग्रेस ही टूट रही है, तो फिर कोई क्या करेगा. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस में वरिष्ठता का कोई क्रम और मान सम्मान नहीं है.
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माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस ने जो गाइडलाइन बनाई है, उस पर दिल्ली से ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) की भी सहमति मिल गई है. अब प्रदेश स्तर पर 20 अप्रैल की बैठक में इस पर अंतिम फैसला लिया जाएगा. नेताओं से कहा गया है कि अगर कोई सुझाव हो, तो 19 अप्रैल तक भेज दें, वरना बाद में मत कहना कि हमें पूछा नहीं गया.
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