Cough Syrup Death: छिंदवाड़ा जिले में कोल्ड्रिफ कफ सिरप पीने से 22 मासूमों की मौत के मामले में शनिवार को स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने दो टूक जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि मामले में तमिलनाडु की श्रीसन फार्मास्युटिक्लस कंपनी का दायित्व है, जहां जहरीली कोल्ड्रिफ सिरप बनी है, उसकी जिम्मेदारी है कि वो उसकी गुणवत्ता की जांच करें.
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'जिस स्टेट में दवा बनती है, सर्टिफिकेट ऑफ एनालिसिस जारी करना उसका दायित्व होता है'
बकौल मंत्री, एक प्रक्रिया है कि जिस स्टेट में दवा बनती है, उस उसका दायित्व होता है कि उसे सर्टिफिकेट ऑफ एनालिसिस जारी करना होता है. इसमें यह बताना होता है कि दवा बाजार में जाने लायक है. यह दायित्व तमिलनाडु सरकार का था और तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों की इसमें चूक हुई है, जिसका दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम मध्य प्रदेश में हुआ.
तमिलनाडु सरकार ने कप सिरप से बच्चों की मौत केस में ड्रग अधिकारियों पर कार्रवाई की है
मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल शनिवार को आत्म निर्भर भारत एवं जीएसटी रिफार्म को लेकर हुई चर्चा के दौरान एक बयान में कहा कि इस बात का संतोष है कि तमिलनाडु सरकार के समक्ष यह विषय रखा है और तमिलनाडु सरकार ने ड्रग अधिकारियों पर कार्रवाई की है. उन्होंने कहा सिरप से प्रभावित सभी बच्चों का इलाज प्रदेश सरकार करा रही है.
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छिंदवाड़ा जिले में 22 बच्चों की मौत ने मध्य प्रदेश के ड्रग कंट्रोल सिस्टम की खोल दी है पोल
जहरीला कफ सिरप पीने से एक के बाद हुई 22 बच्चों की मौत ने मध्य प्रदेश के ड्रग कंट्रोल सिस्टम की पोल खोल दी थी. राम भरोसे चल रहा मध्य प्रदेश के ड्रग कंट्रोल सिस्टम में एक जांच रिपोर्ट को तैयार करने में 10 घंटे से अधिक का वक्त लगता है. छिंदवाड़ा में 22 बच्चों के जान गंवाने के पीछे इसी सिस्टम का हाथ बताया जा रहा है.
मध्य प्रदेश में एक रिपोर्ट को तैयार करने में लगते हैं ड्रग कंट्रोल सिस्टम को करीब 10 घंटे
उल्लेखनीय है दवाइयों का नियंत्रण और उनकी जांच पड़ताल कोई मामूली काम नहीं है. एक दवा सैंपल को पूरी तरह परखने और उसकी गुणवत्ता को साबित करने के लिए करीब 10 घंटे का लंबा वक्त लगता है.यही वजह है कि एमपी में अभी भी 5000 दवा सैंपलों की जांच रिपोर्ट पेंडिंग हैं. ऐसे में हर महीने 100 सैंपेल की जांच ही संभव है.
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मध्य प्रदेश की जांच लेबोरेटरी में अभी भी 5000 से ज्यादा दवाइयों की जांच रिपोर्ट है पेंडिग
रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में ड्रग इंस्पेक्टर के पद 96 हैं 79 भरे हैं 17 खाली हैं. ऐसे में कई ड्रग इंस्पेक्टर के पास अपने से अलग जिले का भी अधिभार है.यही वजह है कि प्रदेश में मौजूद तीन लैब पर कार्य भार अधिक है, जिसकी तस्दीक पेंडिंग 5000 से अधिक सैंपेल करते हैं.
मध्य प्रदेश के ड्रग कंट्रोल सिस्टम में है कर्मचारियों का टोटा, अभी रिक्त पड़े हैं 17 पद
मध्य प्रदेश में अमानक दवाइयों पर प्रतिबंध लगाने के लिए डाक्टर्स आंदोलन तक कर चुके हैं, लेकिन प्रदेश का ड्रग कंट्रोल सिस्टम इतना लाचार है कि एक जांच रिपोर्ट को तैयार करने में उसके पसीने छूट जाते हैं. वजह है ड्रग कंट्रोल सिस्टम में कर्मचारियों का टोटा, जहां आज भी करीब 17 पद रिक्त पड़े हुए हैं.