छत्तीसगढ़ के 'दानवीर'! दाऊ कल्याण सिंह ने दान की थी 1700 एकड़ जमीन; उनके नाम पर राज्य अलंकरण देने की मांग

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध दानवीर दाऊ कल्याण सिंह ने शिक्षा-चिकित्सा और कृषि शिक्षा के लिए 1,700 एकड़ से ज्यादा जमीन दान की. उनके इस अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए अब उनके नाम पर राज्य सरकार द्वारा state honour demand की जा रही है.

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Dau Kalyan Singh Donation: छत्तीसगढ़ के इतिहास में अगर किसी एक व्यक्ति को सबसे बड़ा दानवीर कहा जाए, तो वह नाम दाऊ कल्याण सिंह है. उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा समाज, शिक्षा और स्वास्थ्य के उत्थान में समर्पित कर दिया. कहा जाता है कि दाऊ कल्याण सिंह ने छत्तीसगढ़ की जनता की भलाई के लिए लगभग एक हजार एकड़ से ज्यादा जमीन दान कर दी थी. उनके नाम से बने कई संस्थान आज भी लोगों की सेवा कर रहे हैं. यही कारण है कि अब उनके नाम पर राज्य अलंकरण (सम्मान) देने की मांग उठ रही है. ये मांग भाजपा के पूर्व सह मीडिया संयोजक अनुराग अग्रवाल ने सरकार से की है. 

आइए दाऊ कल्याण सिंह के बारे में जानते हैं...

1876 में हुआ था जन्म

दाऊ कल्याण सिंह का जन्म 4 अप्रैल 1876 को तरेंगा में हुआ था. उस समय तरेंगा, बिलासपुर जिले का हिस्सा था और वहां की तहूतदारी (जमींदारी) की स्थापना 1828 में हुई थी. उनके पिता बिसेसर नाथ और माता पार्वती देवी थे. पिता के दूरदर्शी प्रयासों से निर्जन क्षेत्रों में गांव बसाकर तहूतदारी का विस्तार हुआ. बचपन से ही दाऊ कल्याण सिंह ने प्रशासन और जनसेवा के संस्कार घर से ही सीखे थे.

कम उम्र में संभाली जिम्मेदारी

जब दाऊ कल्याण सिंह सिर्फ 27 वर्ष के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया. इस कम उम्र में ही उन्हें तरेंगाराज की पूरी तहूतदारी संभालनी पड़ी. उन्होंने बखूबी इस जिम्मेदारी को निभाया. उनकी निष्ठा और कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें ब्रिटिश शासन की ओर से कई उपाधियां मिलीं. 1911 में राय साहब, 1918 में राम बहादुर और 1944 में दीवान बहादुर की उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया गया. दशहरे के अवसर पर जब अन्य रियासतों में राजकुमार धूमधाम से उत्सव मनाते थे, तब दाऊ कल्याण सिंह भी सफेद घोड़ों से सजी बग्घी में सवार होकर जनता से मिलते थे, लेकिन उनका रुतबा सत्ता से नहीं सेवा से जुड़ा था.

दानवीरता की मिसाल

दाऊ कल्याण सिंह का नाम छत्तीसगढ़ में दान और सेवा की पहचान बन चुका है. आज डीकेएस सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, जो राज्य के प्रमुख स्वास्थ्य संस्थानों में गिना जाता है, उसी भूमि पर बना है जिसे दाऊ कल्याण सिंह ने दान किया था. पहले यही स्थान डीके अस्पताल के नाम से जाना जाता था, जहां जरूरतमंदों को निःशुल्क इलाज की सुविधा दी जाती थी. बाद में यही भवन रायपुर सचिवालय के रूप में उपयोग हुआ और आज फिर उसी स्थान पर अस्पताल बनकर जनता की सेवा कर रहा है.

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समाज के लिए किए सैकड़ों निर्माण कार्य

दाऊ कल्याण सिंह ने अपने जीवनकाल में कई जनकल्याणकारी निर्माण कराए. उन्होंने अपनी माता पार्वती देवी की स्मृति में टूरी हटरी स्थित जगन्नाथ मंदिर और श्री राम-जानकी मंदिर बनवाया. 1948 में अपनी बहन कुंती बाई के नाम पर रायपुर के कालीबाड़ी में एक विद्यालय भवन का निर्माण कराया. इसके अलावा, भाटापारा में अपनी पत्नियों जनकनंदिनी और सरजावती देवी के नाम पर धर्मशाला बनवाई. उन्होंने नक्खी तालाब, कल्याण सागर तालाब, राम सागर तालाब, माता मंदिर और दाऊ राम सिंह पशु चिकित्सालय जैसी कई परियोजनाएं भी जनहित में शुरू कीं.

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कृषि शिक्षा के लिए भूमि दान

दाऊ कल्याण सिंह ने कृषि क्षेत्र में भी बड़ा योगदान दिया. उन्होंने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 1729 एकड़ भूमि दान में दी थी. इतना ही नहीं, कॉलेज के निर्माण के लिए 1,12,000 रुपये नकद भी दान किए थे, जो उस समय एक बहुत बड़ी राशि थी. आज यह विश्वविद्यालय पूरे देश में अपनी उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है और हर वर्ष हजारों छात्र यहां से कृषि शिक्षा प्राप्त कर समाज के विकास में योगदान दे रहे हैं.

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दान से अमर हुई विरासत

दाऊ कल्याण सिंह ने कुल मिलाकर लगभग 1784 एकड़ जमीन समाज कल्याण के कार्यों के लिए दान में दी. यह सिर्फ भूमि का दान नहीं था, बल्कि मानवता और सेवा की भावना का प्रतीक था. उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी छत्तीसगढ़ की पहचान हैं. उनके दान से विकसित हुई संस्थाएं आज भी उनकी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. समाज के विभिन्न वर्गों से यह मांग उठना स्वाभाविक है कि दाऊ कल्याण सिंह के नाम पर राज्य सरकार उन्हें राज्य अलंकरण से सम्मानित करे, ताकि आने वाली पीढ़ियां इस सच्चे दानवीर के योगदान को याद रख सकें.