नीमच: भारत में चीतों के लिए एक नया ठिकाना तैयार किया जा रहा है. मध्य प्रदेश में कूनो के बाद चीतों को अब मंदसौर नीमच के गांधी सागर अभ्यारण में लाए जाने की तैयारी है. इसके लिए बाड़े बनाकर वायर फेंसिंग किए जाने का काम तेजी से चल रहा है लेकिन आस पास के गांवों के किसानों का वन विभाग पर आरोप है कि वन विभाग ने गलत तरीके से सीमांकन कर उनके पशुओं के चारागाह को कब्जे में ले लिया है. आइए आपको पूरा मामला बताते हैं:
गांव के किसान हुए परेशान
खबर के मुताबिक, नीमच जिले के गांधीसागर अभ्यारण से सटे गांवो के किसानों का कहना है कि वन विभाग गलत तरीके से सीमांकन कर उनके पशुओं के चारागाह को कब्जे कर रहे है. उनके अनुसार चीता प्रोजेक्ट उनके लिए मुसीबत बन गया है. इसी कड़ी में ग्रामीणों ने सोमवार को नीमच कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन कर अपनी मांगे रखी.
चीतों के लिए नया ठिकाना
बता दें कि भारत में चीतो का एक और नया ठिकाना मंदसौर का गांधीसागर अभ्यारण बनेगा. दरअसल, चीतों के बाड़े बनाए जाने के लिए सीमा से सटे इलाकों में भूमि अधिग्रहण कर बाड़े तैयार किए जा रहै है. बाड़े के लिए की जा रही वायर फेंसिंग में इलाके के कई किसानों के पशुओं के चारागाह आ रहे है. इसी बात का विरोध करते हुए जिले के चेनपुरिया ब्लॉक ग्राम पंचायत के ग्रामीण प्रभावित क्षेत्र से सोमवार को नीमच कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचे. जहां उन्होंने कलेक्टर के नाम एक ज्ञापन दिया.
जानें क्या है मामला?
ज्ञापन में प्रभावितों ने आरोप लगाया की वन विभाग द्वारा गलत तरीके से सीमांकन कर अधिक भूमि को अधिग्रहित किया जा रहा है. वन विभाग द्वारा आरक्षित कंपाउंड क्रमांक 35,36,40,41,42,43 है जो कि पहले ही चरनोई के लिये वनविभाग रामपुरा द्वारा आरक्षित किये गए है. इन कम्पाउंडो को भी चीता प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया गया हैं, जिसके चलते इलाके के गोवंश के जीवन के लिए खतरा है क्योंकि इलाके के पशु इन्ही इलाको मे विचरण कर अपना भोजन करते है.
पेयजल की भी समस्या
ग्रामीणों ने यह भी मांग की है की इलाके में पेयजल और सिंचाई के लिए पानी का भी अभाव है इसलिए इन इलाको के ग्रामीणों को गांधीसागर झील से पानी दिया जाए ताकि ग्राम चेनपुरिया के 452 परिवारों के 2078 लोगो को राहत मिल सके. ग्रामीणों ने उनके कब्जे की जमीनों के भू-अधिकार पट्टे दिए जाने की भी मांग की ताकि वे शासकीय योजनाओं का लाभ ले सके.
गोरतलब है की 1961-62 में गांधीसागर बांध के निर्माण के समय इन ग्रामीणों को डूब क्षेत्र से विस्थापित किया था तभी से ये इन कृषि भूमियों पर काबिज होकर कृषि कार्य और दुग्ध व्यवसाय कर अपना जीवन यापन कर रहे है.
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