Dhak music: भगवान भोलेनाथ के रौद्र स्वरूप श्री काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए बुंदेलखंड में सदियों पुरानी परंपरा आज भी जीवित है. यहां विशेष अवसरों पर ‘ढॉक संगीत' बजाकर भैरव बाबा की आराधना की जाती है. बीती रात सागर में आयोजित भैरव पूजा में देर रात तक ढॉक की अनोखी धुनें गूंजती रहीं. भक्तगण भैरव भक्ति में लीन होकर वीर रस से ओत-प्रोत भजन गाते रहे, जिन्हें स्थानीय भाषा में वीरोठा कहा जाता है.
ढॉक संगीत में मटके का उपयोग
ढॉक संगीत के जानकार उमाशंकर सोनी ने बताया कि यह संगीत भगवान कालभैरव को प्रसन्न करने का माध्यम है. ढॉक में एक विशेष प्रकार के मटके का उपयोग होता है, जिसे काली मिट्टी से पकाया जाता है. इस मटके के ऊपर कांसे की थाली रखी जाती है. थाली रखने से पहले मटके के भीतर दीपक प्रज्ज्वलित कर पूजन सामग्री रखी जाती है और मंत्रोच्चार के साथ इसकी विधि पूरी की जाती है. आयोजन की समाप्ति तक थाली नहीं हटाई जाती.
ढॉक संगीत की खासियत
ढॉक बजाने के लिए लोहे के कड़े का उपयोग किया जाता है, जिससे थाली पर थाप देकर संगीत उत्पन्न किया जाता है. यह कार्य केवल कुछ चुनिंदा लोगों द्वारा किया जाता है, लेकिन भजन गाने में सभी भक्त शामिल होते हैं.
दुर्लभ ‘ढॉक' संगीत से प्रसन्न होते हैं बाबा कालभैरव
डॉ. उमाशंकर सोनी के अनुसार, ढॉक संगीत की परंपरा अत्यंत प्राचीन है- इसे ध्यानू भगत, आल्हा-उदल, हाला हरदौल, बेहना शाहसंग, करुवादेव और राजा जगदेव जी के काल से बजाया जाता आ रहा है. भैरव भक्ति में रचा-बसा यह संगीत केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि श्रद्धा, शक्ति और वीरता की अभिव्यक्ति है. भैरव आराधना की यह प्राचीन विधा आज भी बुंदेलखंड की संस्कृति और भक्ति का जीवंत प्रतीक बनी हुई है.
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