Bhopal Utsav Mela: भोपाल उत्सव मेला शुरू; CM मोहन ने कहा- मेले शहर की पहचान, जानिए क्या कुछ है खास

Bhopal Utsav Mela: भोपाल उत्सव मेला अब एक ‘ब्रांड’ बन गया है. मेले का उद्देश्य राजधानी के उपभोक्ताओं एवं व्यापारियों को एक मंच पर लाना था. धीरे-धीरे भोपाल के अतिरिक्त आसपास के कस्बों-शहरों के लोग भी मेले से जुड़ते चले गये. आज ‘भोपाल उत्सव मेला’ इतना लोकप्रिय हो चुका है कि निकटवर्ती राज्यों के व्यापारी भी इस मेले में शामिल होने लगे हैं.

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Bhopal Utsav Mela: भोपाल उत्सव मेला शुरू; CM मोहन ने कहा- मेले शहर की पहचान, जानिए क्या कुछ है खास

Bhopal Utsav Mela: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने टीटी नगर के दशहरा मैदान में 33वें भोपाल उत्सव मेले (Bhopal Utsav Mela) का शुभारंभ कर दिया है. उन्होंने आयोजन समिति को बधाई देते हुए आशा व्यक्त की कि यह मेला इस वर्ष भी व्यापार, मनोरंजन और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनेगा. सीएम मोहन यादव ने कहा कि भोपाल और मेले एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं. शहर में जिधर भी नजर जाए, मेलों की जीवंतता दिखाई देती है. इसी वजह से भोपाल को मेला संस्कृति की दृष्टि से देश के बेहतर शहरों में शामिल किया जाता है. उन्होंने कहा कि ये मेले शहर की पहचान को मजबूत करने के साथ ही स्थानीय समाज, परंपराओं और सामुदायिक संबंधों को भी जीवित रखते हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि मेला संस्कृति को प्रदेश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक समरसता बढ़ाने में सहायक है. ऐसे आयोजन स्थानीय कलाकारों, कारीगरों और उद्यमियों के हुनर को मंच प्रदान करते हैं.

‘भोपाल उत्सव मेला' का बीज आज विशाल वट वृक्ष : सीएम मोहन यादव

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि झीलों की नगरी और देश के ह्रदय प्रदेश की राजधानी में शुरू हो रहे भोपाल उत्सव मेला आज 32 वर्ष की लंबी यात्रा को सफलतापूर्ण पार करते हुए 33 वे वर्ष में प्रवेश कर रहा है. वर्ष 1991–92 में स्व. रमेशचन्द्र अग्रवाल द्वारा लगाया गया ‘भोपाल उत्सव मेला' का बीज आज विशाल वट वृक्ष हो चुका है, जिसका लाभ भोपालवासियों के साथ ही दूर-दराज से आने वाले सैलानियों को हो रहा है.

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि मेले प्राचीन समय से ही हमारी सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहे हैं, ये व्यापार को विस्तार देने का साधन थे, साथ ही हमारे धर्म, परंपरा, और संस्कृति के भी वाहक थे. उन्होंने कहा कि जो समाज अपनी परंपरा और संस्कृति को भूल जाता है, वह राह से भटक जाता है या नष्ट हो जाता है. इसलिए जरूरी है कि हम अपनी मेला संस्कृति को जीवित रखें. संस्कृति, परंपरा, विरासत किसी भी समुदाय की पहचान और स्मृति के प्रमुख घटक हैं.

सांस्कृतिक प्रथाएं, परंपराएं समुदायों को एक साथ लाती हैं. सामाजिक एकता के लिए ये आवश्यक हैं, इसलिए मेलों को जीवित बनाये रखें.

ऐसे हुई थी शुरूआत

भोपाल उत्सव मेला समिति के अध्यक्ष मनमोहन अग्रवाल ने कहा कि वर्ष 1991-92 में मात्र 70 स्टाल-दुकानों से प्रारंभ हुआ यह मेला, पिछले 3 दशकों से लगातार अपने ध्येय वाक्य ‘उत्सव, व्यापार, मनोरजंन एवं सेवा' को सार्थक कर रहा है.

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भोपाल उत्सव मेला अब एक ‘ब्रांड' बन गया है. मेले का उद्देश्य राजधानी के उपभोक्ताओं एवं व्यापारियों को एक मंच पर लाना था. धीरे-धीरे भोपाल के अतिरिक्त आसपास के कस्बों-शहरों के लोग भी मेले से जुड़ते चले गये. आज ‘भोपाल उत्सव मेला' इतना लोकप्रिय हो चुका है कि निकटवर्ती राज्यों के व्यापारी भी इस मेले में शामिल होने लगे हैं.

मेले में फर्नीचर, ब्रान्डेड इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप, मीना बाजार, फूड, आधुनिक झूले, आटोमोबाइल, कपड़े, हैण्डलूम, होम एप्लाइंसेस आदि के स्टॉल लगते हैं. भोपाल उत्सव मेला लोगों को रोजगार और व्यापार के अवसर उपलब्ध कराने के साथ ही कलाकारों को मंच उपलब्ध कराने में एक सेतु की भूमिका निभा रहा है. इस मेले में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है. भोपाल मेला उत्सव समिति समाज कल्याण की दिशा में भी प्रभावी काम कर रही है. मेला समिति द्वारा प्रतिवर्ष शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सद्भाव से जुड़े कई कार्य किए जा रहे हैं.

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