भोपाल गैस त्रासदी मामले में आज सुनवाई, 39 साल बाद भी पीड़ितों को नहीं मिला मुआवजा

Bhopal Gas Tragedy: भोपाल गैस त्रासदी पूरी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी मानी जाती है, इसके बावजूद 39 साल बाद भी मुआवजे के लिए पीड़ितों के संघर्ष करना पड़ रहा है. 

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भोपाल गैस त्रासदी मामले में 25 नवंबर को भोपाल जिला न्यायालय में सुनवाई होगी.

भोपाल गैस त्रासदी मामले (Bhopal Gas Tragedy) में शनिवार, 25 नवंबर को मुआवजे को लेकर भोपाल जिला न्यायालय में सुनवाई होगी. विधान महेश्वरी की कोर्ट में यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) के मालिक डाव केमिकल की पेशी होगी. ये याचिका गैस कांड मामले में पीड़ितों ने लगाई है.

39 साल से पीड़ित कर रहे न्याय का इंतजार

बता दें कि गैस हादसे के 39 साल बाद विश्व की सबसे बड़े औद्योगिक हादसे के लिए जिम्मेदार एक भी विदेशी अभियुक्त और विदेशी कंपनी को आज तक सजा नहीं हुई है. वहीं कोर्ट में भोपाल ग्रुप फॉर इन्फोर्मेशन एंड एक्शन और CBI डाउ केमिकल अमरीका के दायित्व के संबंध में तर्क पेश करेंगे. दरअसल, भोपाल में दो-तीन दिसंबर 1984 को हुए गैस कांड की जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड कंपनी को द डाव केमिकल्स ने खरीद लिया था. इसी खरीदी प्रक्रिया के बाद पहली बार उक्त कंपनी 3 अक्टूबर, 2023 को कोर्ट में पक्ष रखने के लिए पेश हुई थी.

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अधिवक्ताओं ने कहा था- भोपाल कोर्ट के क्षेत्राधिकार के दायरे में नहीं आती

सुनवाई के दौरान कंपनी की ओर से अधिवक्ताओं ने कहा था कि कंपनी विदेशी है इसलिए भोपाल कोर्ट के क्षेत्राधिकार के दायरे में नहीं आती. जिसपर कोर्ट ने कहा था कि इस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में न होना, उनके कंपनी के द्वारा रखे जाने वाले पक्ष का एक भाग हो सकता है. उनके पक्ष का क्या विस्तार होगा, ये पूर्णत: उनका विवेकाधिकार है. वहीं कोर्ट ने कंपनी को कारण बताओ नोटिस का जवाब पेश करने और तर्क करने के लिए आज यानी 25 नवंबर की तारीख तय की थी. 

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 39 साल बाद भी मुआवजे के लिए करना पड़ रहा है संघर्ष 

2-3 दिसंबर, 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड के कारखाने से लगभग 40 टन 'मेथायिल अयिसोसायिनेट' गैस का रिसाव हुआ था. इस हादसे में यूनियन कार्बाइड के कारखाने के आस पास के इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी. वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस हादसे में मरने वालों की संख्या 5 हजार 295 के करीब थी. बता दें कि भोपाल गैस त्रासदी पूरी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी मानी जाती है, इसके बावजूद 39 साल बाद भी मुआवजे के लिए पीड़ितों के संघर्ष करना पड़ रहा है. 

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