'लापरवाही' ने निगला बायपास ! 100 मीटर सड़क धंसी, घटिया निर्माण के साथ किसान भी ज़िम्मेदार.।

भोपाल ईस्टर्न बायपास पर सड़क धंसने के मामले में सरकार की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में हादसे की वजह केवल घटिया निर्माण गुणवत्ता नहीं बताई गई, बल्कि उसमें किसानों को भी ज़िम्मेदार ठहराया गया है. अधिकारियों के मुताबिक, खेतों के लिए की गई इस खुदाई से सड़क किनारे बना ड्रेनेज सिस्टम बाधित हो गया, जिससे वर्षा का पानी embankment (तटबंध) के भीतर जमा होता गया

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Bhopal Bypass Collapse: सोमवार दोपहर भोपाल ईस्टर्न बायपास पर सूखी सेवनिया रेलवे ओवरब्रिज (ROB) के पास करीब 100 मीटर लंबा हिस्सा अचानक धँस गया, जिससे सड़क पर करीब 30 फुट गहरा गड्ढा बन गया. गनीमत यह रही कि उस वक्त कोई गाड़ी वहाँ से नहीं गुजर रही थी. सरकार की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में हादसे की वजह केवल घटिया निर्माण गुणवत्ता नहीं बताई गई, बल्कि उसमें किसानों को भी ज़िम्मेदार ठहराया गया है. अधिकारियों के मुताबिक, खेतों के लिए की गई इस खुदाई से सड़क किनारे बना ड्रेनेज सिस्टम बाधित हो गया, जिससे वर्षा का पानी embankment (तटबंध) के भीतर जमा होता गया. धीरे-धीरे यह पानी मिट्टी को कमजोर करता गया और नतीजतन सड़क का हिस्सा धँस गया. यानी जहां पानी बहकर निकलना था, वहीं वह ठहर गया और ज़मीन ने जवाब दे दिया.

तीन साल के लिए कंपनी हो गई ब्लैकलिस्ट

घटना के तुरंत बाद मध्यप्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (MPRDC) ने इलाके को बैरिकेड कर ट्रैफिक दूसरी लेन में डायवर्ट कर दिया, जिससे वाहनों की आवाजाही सामान्य बनी रही.यह चार लेन वाला भोपाल ईस्टर्न बायपास राज्य की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक है, जो इंदौर, होशंगाबाद, जबलपुर, जयपुर, मंडला और सागर जैसे प्रमुख शहरों को जोड़ता है. इसका निर्माण एम/एस ट्रांसट्रॉय प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद ने Build-Operate-Transfer (BOT) मॉडल के तहत किया था। परियोजना 2012–13 में पूरी हुई थी, जिसके लिए 2010 में 15 साल की रियायत अवधि वाला अनुबंध साइन हुआ था.लेकिन साझेदारी ज़्यादा दिन नहीं चली. 2020 में सरकार ने अनुबंध रद्द कर दिया क्योंकि कंपनी ने शर्तों का पालन नहीं किया. इसके बाद कंपनी को तीन साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया और बायपास की ज़िम्मेदारी सीधे MPRDC के अधीन आ गई, जो ज़रूरत पड़ने पर छोटे-मोटे मरम्मत कार्य आउटसोर्स करती रही. 

जांच रिपोर्ट में कई खामियां उजागर

तकनीकी जांच रिपोर्ट में कई गंभीर खामियां उजागर हुई हैं. रिइनफोर्स्ड अर्थ (RE) वॉल, जो सड़क के तटबंध को सहारा देती है, स्वीकृत तकनीकी मानकों के अनुसार निर्मित नहीं की गई थी. इस्तेमाल की गई मिट्टी की गुणवत्ता घटिया थी और पत्थर की पिचिंग (stone pitching) जो जल निकासी और मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए आवश्यक होती है, वह भी नहीं की गई थी. जांच में यह भी सामने आया कि किसानों ने दीवार के पास मिट्टी खोदी, जिससे ड्रेनेज की प्राकृतिक राह अवरुद्ध हो गई. इससे बरसात का पानी तटबंध के भीतर ही फँस गया और मिट्टी की पकड़ ढीली पड़ गई। जब दबाव बढ़ा, तो दीवार और सड़क दोनों एक साथ धराशायी हो गए. MPRDC के प्रबंध निदेशक बी.एस. मीना ने घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय तकनीकी समिति बनाई है, जिसमें मुख्य अभियंता बी.एस. मीना, महाप्रबंधक मनोज गुप्ता और महाप्रबंधक आर.एस. चंदेल शामिल हैं. यह समिति सात दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट देगी. रिपोर्ट आने के बाद निर्माण एजेंसी, कंसल्टेंट या विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी.

10 दिनों में पूरी होगी मरम्मत

इस बीच, क्षतिग्रस्त हिस्से की मरम्मत शुरू कर दी गई है, जिसे दस दिनों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. साइट की मिट्टी के नमूने जांच के लिए लोक निर्माण विभाग की केंद्रीय प्रयोगशाला में भेजे गए हैं. MPRDC की डिविजनल मैनेजर सोनल सिन्हा ने एनडीटीवी से कहा, “करीब 100 मीटर सड़क धँस गई है, जिससे लगभग 30 फुट गहरा गड्ढा बन गया. जांच के लिए टीम गठित कर दी गई है. प्रारंभिक जांच से पता चला है कि रिटेनिंग वॉल ध्वस्त हुई.विस्तृत रिपोर्ट आने के बाद सटीक कारण सामने आएगा.”

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पुराने सवाल फिर उठे

यह घटना एक बार फिर राज्य में सड़क निर्माण की गुणवत्ता और निगरानी पर सवाल खड़े करती है. 2020 के बाद से इस बायपास की देखरेख बिना स्थायी एजेंसी के की जा रही है. इंजीनियरों ने पहले भी चेताया था, वैसे हादसे के बाद लोगों को लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह की तीन महीने पुरानी टिप्पणी भी याद आ रही है- “अब तक ऐसी कोई तकनीक नहीं बनी है जो गारंटी दे सके कि सड़कें सुरक्षित रहेंगी.”

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