ये है 'मौत का हाईवे', टोल की लालच में अधर में लटका फोर-लेन, ऐसे उजागर हुआ कोविड काल की वसूली का सच

Bhind–Gwalior NH 719: टोल कंपनी ने अनुबंध बढ़ाने के लिए कोविड काल में वाहनों की संख्या घटने का तर्क दिया था. कहा गया कि लॉकडाउन के कारण टोल वसूली प्रभावित हुई, इसलिए समय बढ़ाया जाना जरूरी है, लेकिन RTI के जरिए सामने आए दस्तावेजों ने इस दावे की पोल खोल दी.

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Bhind–Gwalior National Highway 719: भिंड–ग्वालियर राष्ट्रीय राजमार्ग 719 का टू-लेन हिस्सा आज जिले के लिए “मौतों का हाईवे” बन चुका है. लगातार हो रही सड़क दुर्घटनाओं और जानलेवा हादसों के बावजूद पीएनसी द्वारा संचालित टोल प्लाजा पर न तो कोई संवेदनशीलता दिख रही है और न ही समय पर बुनियादी सुधार... टोल कंपनी का अनुबंध पूरा होने के बाद भी राजनीतिक दबाव और कोविड काल का बहाना बनाकर इसे 2 साल 9 माह 18 दिन तक बढ़ा दिया गया. इस फैसले ने हाईवे को फोर-लेन बनाने की वर्षों पुरानी मांग को अधर में लटका दिया, जिसका खामियाजा आम जनता को अपनी जान देकर चुकाना पड़ रहा है.

कोविड का हवाला, लेकिन कमाई में बढ़ोतरी

टोल कंपनी ने अनुबंध बढ़ाने के लिए कोविड काल में वाहनों की संख्या घटने का तर्क दिया था. कहा गया कि लॉकडाउन के कारण टोल वसूली प्रभावित हुई, इसलिए समय बढ़ाया जाना जरूरी है, लेकिन RTI के जरिए सामने आए दस्तावेजों ने इस दावे की पोल खोल दी. RTI कार्यकर्ता राजेन्द्र परिहार द्वारा मांगी गई जानकारी में खुलासा हुआ कि बरेठा और बरही टोल प्लाजा पर कोविड के दौरान भी रिकॉर्ड वसूली हुई.

वर्ष 2020-21 में औसतन 13.50 लाख रुपये प्रतिदिन

वर्ष 2021-22 में औसतन 13.86 लाख रुपये प्रतिदिन टोल टैक्स के रूप में वसूले गए. यह राशि कोविड से पहले के वर्षों की तुलना में अधिक रही. यानी जिस अवधि को घाटे का आधार बनाकर अनुबंध बढ़ाया गया, उसी अवधि में टोल कंपनी ने मोटी कमाई की.

14 साल में 544 करोड़ की वसूली

RTI दस्तावेजों के अनुसार, टोल कंपनी पिछले 14 वर्षों में लगभग 544 करोड़ रुपये का टोल टैक्स वसूल चुकी है. इसके बावजूद राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण पर कुल कितना खर्च हुआ, कितनी बार और किस मद में मेंटिनेंस किया गया—इसका स्पष्ट विवरण नहीं दिया गया.

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सबसे अहम बात यह कि फास्टैग के माध्यम से कितनी राशि वसूली गई, इसका भी पूरा ब्यौरा साझा नहीं किया गया. टोल प्रबंधन ने जानकारी देने से बचने के लिए “सूचना के दुरुपयोग” का बहाना बनाया, जिससे पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं.

अनुबंध विस्तार बना सबसे बड़ी बाधा

केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा बरेठा और बरही—दोनों टोल प्लाजा के अनुबंध का समय बढ़ाया गया. वहीं दूसरी ओर मंत्री स्वयं दो बार NH-719 को फोर-लेन बनाने की घोषणा कर चुके हैं. लेकिन टोल का बढ़ा हुआ अनुबंध फोर-लेन चौड़ीकरण की राह में सबसे बड़ी अड़चन बन गया. जब तक अनुबंध समाप्त नहीं होता, तब तक चौड़ीकरण का काम शुरू नहीं हो सकता. नतीजतन, टू-लेन सड़क पर बढ़ता ट्रैफिक और भारी वाहन हादसों को न्योता दे रहे हैं.

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बढ़ता ट्रैफिक, बढ़ती दुर्घटनाएं

NH-719 पर ग्वालियर, भिंड और इटावा की ओर जाने वाले भारी वाहनों की आवाजाही लगातार बढ़ रही है. टू-लेन सड़क, जगह-जगह कट, सर्विस रोड की कमी और ओवरटेकिंग के कारण दुर्घटनाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि आए दिन जानलेवा हादसे हो रहे हैं. कई परिवारों ने अपने कमाने वाले सदस्य खो दिए हैं, कई घरों के चिराग बुझ चुके हैं. इसके बावजूद न तो टोल कंपनी की ओर से सड़क सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए गए और न ही प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया.

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अधूरी जानकारी, उठते सवाल

RTI में यह भी सामने आया कि नेशनल हाईवे के निर्माण में हुए खर्च का पूरा विवरण नहीं दिया गया. मेंटिनेंस कितनी बार और किस गुणवत्ता का हुआ, इसकी जानकारी अधूरी है. फास्टैग वसूली का स्पष्ट लेखा-जोखा नहीं है. इन तथ्यों ने टोल कंपनी की कार्यप्रणाली और अनुबंध विस्तार की वैधता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

चौड़ीकरण की पुरानी मांग

संत समाज, सामाजिक संगठनों और स्थानीय नागरिकों द्वारा लंबे समय से NH-719 को फोर-लेन बनाने की मांग की जा रही है. कई बार आंदोलन, ज्ञापन और जनप्रतिनिधियों से मुलाकात भी हुई, लेकिन टोल अनुबंध के चलते काम आगे नहीं बढ़ सका. कल सोमवार 29 दिसम्बर को भी संत समाज बरेठा टोल प्लाजा पर “नो रोड नो टोल”  के तहत एक दिवसीय आन्दोलन करेगा.

जनता की ये मांग

अब स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों की ये मांग है-

  • टोल अनुबंध विस्तार की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराई जाए.
  • कोविड काल की वसूली और घाटे के दावे का ऑडिट हो.
  • NH-719 का तत्काल फोर-लेन चौड़ीकरण शुरू किया जाए.
  • ब्लैक स्पॉट चिन्हित कर अस्थायी सुरक्षा उपाय तुरंत लागू किए जाएं.

लोगों का कहना है कि मुनाफे के आगे मानव जीवन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यदि समय रहते निर्णय नहीं लिए गए, तो यह हाईवे यूं ही लोगों की जान लेता रहेगा और प्रशासन की संवेदनशीलता पर सवाल उठते रहेंगे.

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