Bhagoria Mela 2024: एमपी में शुरू हुआ भगोरिया उत्सव, कृष्ण और राधा के रूप में नजर आए थे 'शिव'- 'साधना'

Bhagoria Festival 2024: आदीवासी अंचल का सबसे बड़ा पर्व भगोरिया सोमवार से पूरे प्रदेश में शुरू हो गया. पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इसे राजकीय पर्व घोषित किया था. ये पर्व होली से ठीक पहले एक हफ्ते तक चलता है.

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शिवराज अपनी पत्नी के साथ दिखे भगोरिया रंग में सराबोर

Bhagoria Mela: पश्चिमी निमाड़, झाबुआ (Jhabua) और अलीराजपुर  (Alirajpur) में देश-विदेश में प्रसिद्ध लोक संस्कृति का पर्व भगोरिया बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. होली से एक हफ्ते पहले से मनाए जाने वाले इस पर्व में आदिवासी (Tribal) अंचल उत्सव की खुमारी में डूबा रहता है. होली के पहले भगोरिया के सात दिन ग्रामीण खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं. भले देश के किसी भी कोने में ग्रामीण आदिवासी मजदूरी करने गया हो लेकिन, भगोरिया के वक्त वह अपने घर लौट आता है. इस दौरान रोजाना लगने वाले मेलों में वह अपने परिवार के साथ सम्मिलित होता है. इस पर्व को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) ने राजकीय पर्व घोषित किया था.

शौक के लिए करते हैं खरीदारी

भगोरिया मेले को लेकर तैयारियां आदिवासी महीने भर पहले से ही शुरू कर देते हैं. दिवाली के समय जहां शहरी लोग शगुन के रूप में सोने-चांदी के जेवर और अन्य सामान खरीदते हैं, वहीं भगोरिया के सात दिन ग्रामीण अपने मौज-शौक के लिए खरीदारी करते हैं. लिहाजा, व्यापारियों को भगोरिया उत्सव का बेसब्री से इंतजार रहता है. ग्रामीण खरीदारी के दौरान मोलभाव नहीं करते, जिससे व्यापारियों को खासा मुनाफा होता है.

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क्या है मेले से जुड़ी मान्यता?

ऐसी मान्यता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई. उस समय दो भील राजाओं, कासूमार और बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया. धीरे-धीरे आसपास के भील राजाओं ने भी इसका अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहने का चलन बन गया. हालांकि, इस बारे में लोग एकमत नहीं हैं. युवकों की अलग-अलग टोलियां सुबह से ही बांसुरी-ढोल-मांदल बजाते हुए मेले में घूमने लगते हैं.

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शिवराज ने बनाया था राजकीय उत्सव

पिछले साल तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान करते हुए कहा था कि भगोरिया जनजातीय परंपरा का अभिन्न उत्सव है. उन्होंने ऐलान किया था कि भगोरिया को राजकीय पर्व और सांस्कृतिक धरोहर माना जाएगा. उन्होंने कहा था कि हमारे जनजातीय पर्व और लोक कलाएं बनीं रहें, उनका उत्सव और आनंद बना रहे इसके लिए सरकार भी इन पर्वों के आयोजन में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.

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