
Betul News in Hindi: विकास यात्रा की विजयगाथा के इस दौर में एक ऐसा गांव भी है, जहां ना बिजली है, ना पानी है, ना स्कूल है और ना आंगनबाड़ी केंद्र है... मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) और महाराष्ट्र (Maharashtra) की सीमा पर बसे बैतूल (Betul) जिले के अंतिम पंचायत बानूर का यही हाल है. यहां के तीन गांव के ग्रामीण आज भी आदिम युग में जी रहे हैं. गांव तो मध्य प्रदेश में है, लेकिन देश की आजादी के बाद से आज तक इस गांव के सारे बच्चे पढ़ाई करने महाराष्ट्र जा रहे हैं. तमाम सुविधाओं से दूर, इस गांव के ग्रामीण गेंहू पिसाने से लेकर मोबाइल रिचार्ज करने तक के लिए भी महाराष्ट्र जाते हैं. राशन लेने के लिए 8 किमी दूर और दूसरे सरकारी कामों के लिए 60 किमी दूर जाना इनकी मजबूरी है.

तीन गांवों में पानी की परेशानी
आजादी के बाद से अब तक बिजली नहीं
बिजली, पेयजल, स्कूल, आंगनबाड़ी, राशन दुकान... ये वो मूलभूत सुविधाएं हैं, जो आज के समय में हर गांव-कस्बे में मिल जाती हैं. लेकिन, आजादी के 76 साल बाद भी भैंसदेही जनपद की बानूर पंचायत में आने वाले बुरहानपुर, सरसोदा और धोत्रा गांव में ऐसी कोई सुविधा नहीं है, जिसे विकास की संज्ञा दी जा सके. गांव में लोग आदिम युग सा जीवन जी रहे हैं. यहां सबसे बड़ी और पहली समस्या बिजली की है, जिसकी मांग करते-करते कई पीढ़ियों ने चिमनी और दीये की रोशनी में जिंदगी गुजार दी. लेकिन, बिजली के दर्शन नहीं हो सके.

गांव में मूलभूत सुविधाओं की कमी
ये भी पढ़ें :- Katni CSP Controversy: ख्याति मिश्रा के विवादित मामले को लेकर जांच करने पहुंचे DIG, कहा - दोषियों पर होगी सख्त कार्रवाई
मात्र 10 साल चला स्कूल
इन गांवों के लिए साल 1997 में एक स्कूल खुला था, जो 2008 से बंद है. 2008 और उसके बाद गांव में पानी के लिए हैंडपंप खोदे गए थे, जो खराब पड़े हैं. ग्रामीण पीने के पानी के लिए आज भी पहाड़ी नदी में झिरिया खोदकर पानी पीने को मजबूर है.

मात्र 10 साल ही चल पाई शिक्षा
ये भी पढ़ें :- अरविंद नेताम को RSS ने नागपुर में चीफ गेस्ट बनने का दिया निमंत्रण, बोले-आदिवासियों और संघ के वैचारिक मतभेद को दूर करना जरूरी