Ram Mandir Pran Pratishtha ceremony: अयोध्या में राम मंदिर बनने का सालों का इंतज़ार आज यानी 22 जनवरी को खत्म हो रहा है. सोमवार को 12 बजकर 29 मिनट के शुभ मुहूर्त में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. 84 सेकंड के सूक्ष्म मुहूर्त में रामलला को विराजमान किया जाएगा. इस मौके पर गर्भगृह में पीएम नरेंद्र मोदी सहित 5 लोग मौजूद रहेंगे.पूजा करीब 40 मिनट तक चलेगी.
गर्भगृह में 40 मिनट का वक़्त लगेगा
अयोध्या के नवनिर्मित मंदिर में सोमवार को रामलला विराजमान हो जाएंगे. इसी के साथ देशवासियों का बरसों का इंतज़ार खत्म हो जाएगा. इस शुभ घड़ी के लिए महज कुछ ही घंटे बचे हैं. रामलला प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देशभर में उत्सव का माहौल है. अयोध्या मंदिर के गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 5 लोगों की मौजूदगी रहेगी. रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर सबसे पहले षोडशोपचार पूजन होगा. पीएम मोदी रामलला का षोडशोपचार पूजन करेंगे, जो लगभग 20 मिनट का होगा. षोडशोपचार पूजन और महापूजन को मिलाकर गर्भगृह में 40 मिनट का वक़्त लगेगा. बताया जा रहा है कि इस पूरे कार्यक्रम में प. लक्ष्मीकांत दीक्षित, प्राण प्रतिष्ठा का सूक्ष्म मुहूर्त निकालने वाले पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़, राम मंदिर ट्रस्ट के सभी ट्रस्टी सहित अन्य लोग मौजूद रहेंगे.
ऐसे होगी महापूजन प्रक्रिया
पूजन प्रक्रिया में सबसे पहले भगवान का ध्यान किया जाएगा.आसन के लिए पुष्प दिया जाएगा. इसके बाद रामलला का चरण धोकर उन को अर्घ्य दिया जाएगा.इसके अलावा महापूजन की तमाम विधि पूरी की जाएगी. प्राण प्रतिष्ठा और महापूजन की पूरी प्रक्रिया में 40 मिनट का वक़्त लगेगा. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 84 सेकंड का अति सूक्ष्म मुहूर्त होगा, जो 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक होगा.है, जिसमें रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. बता दें कि रामलला प्राण प्रतिष्ठा के लिए सूक्ष्म मुहूर्त काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने निकाला है.
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सप्ताह भर से चल रहे हैं कार्यक्रम
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के लिए सप्ताह भर से यहां कार्यक्रम चल रहे हैं. इस प्रतिष्ठा समारोह की शुरुआत 16 जनवरी को विष्णु पूजा एवं गोदान से हुई थी. भगवान गणेश का पूजन, वरुण देव पूजा और वास्तु पूजन, हवन हो चुके हैं. रविवार 21 जनवरी को रामलला की प्रतिमा को 100 से ज्यादा कलशों से स्नान कराया गया. इसके लिए पवित्र नदियों के पवित्र जल का इस्तेमाल किया गया था.
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