Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary 2024: भारत रत्न (Bharat Ratna) से सम्मानित जन नायक अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की आज पुण्यतिथि है. देश के साथ ग्वालियर में भी आज उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है, क्योंकि भारत माता के इस सपूत ने ग्वालियर (Gwalior) के ही शिंदे की छावनी स्थित घर में अपने जीवन का ककहरा सीखा. वे ब्रितानी हुकूमत और राजतंत्र के साये में पले-बढ़े, लेकिन भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े जन नायक बन गए. वे दिल्ली में रहे, लखनऊ से चुनाव जीते लेकिन उनकी देह में जो दिल था न उसमें सिर्फ ग्वालियर का धड़का करता था. वे आज भले ही नहीं हैं फिर भी ग्वालियर की गलियों में किस्सों, कहानियों, संस्मरणों और अपनी आदतों के साथ घूमते मिलते हैं. वे आज भी ग्वालियर के मेले की यादों में बसे हैं, तो कोई लड्डू की दुकान या फुटपाथ पर लगा मंगोड़े का खोमचा आज भी उन्हीं के नाम से जाना जाता है. ग्वालियर में अटल जी का मंदिर भी है यह सरकार या किसी बड़ी संस्था ने नहीं बल्कि नागरिकों ने बनाया है, जहां हर जन्मदिन और पुण्यतिथि पर उनकी पूजा भी की जाती है.
पीएम मोदी ने ऐसे दी थी श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पोस्ट किया कि “अटल जी को उनकी पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि. राष्ट्र निर्माण में उनके अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें असंख्य लोग याद करते हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन यह सुनिश्चित करने के लिए समर्पित कर दिया कि हमारे साथी नागरिक बेहतर गुणवत्ता वाला जीवन जिएं. हम भारत को लेकर उनके विजन को साकार करने की दिशा में काम करते रहेंगे. आज सुबह अन्य प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों के साथ ‘सदैव अटल' पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.”
ग्वालियर से 'अटल' नाता
वैसे तो भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को किसी क्षेत्र या राज्य से बांधकर सीमित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे पूरे देश ऐसे चुनिंदा जननायक थे जिनके दिल में भारत बसता था और जो करोड़ों भारतवासियों के दिलों में बसते हैं. लेकिन ग्वालियर के लिए अटल जी और अटल जी के लिए ग्वालियर का एक ख़ास अर्थ था, है और सदैव रहेगा. वे भले ही सियासत के सिलसिले में कानपुर, लखनऊ से लेकर दिल्ली पहुंचे, लेकिन अपनी मातृभूमि ग्वालियर से जुड़ाव उनका ताउम्र रहा. उन्होंने यहां के खानपान और दोस्तों से भी अपना याराना अंतिम सांस तक कायम रखा. यही कारण है कि देश में ग्वालियर ही है जहां उन्हें सिर्फ नेता की तरह नहीं बल्कि भगवान की तरह याद किया जाता है.
ऐसा था बचपन
देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई का जन्म 25 दिसंबर 1924 को उत्तर प्रदेश के बटेश्वर गांव में हुआ था लेकिन बटेश्वर से उनका रिश्ता बमुश्किल कुछ महीनों के था. उनका बचपन ग्वालियर के कमल सिंह के बाग में गुजरा उन्होंने प्राथमिक और स्नातक की शिक्षा भी ग्वालियर से हासिल की थी. वे यहां जनकगंज शाखा में जाकर RSS के सम्पर्क में आये और फिर अपना जीवन उसी को सौंप दिया. उन्होंने राजनीति का ककहरा भी यहीं सीखा और विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान एमएलबी कॉलेज) में छात्रसंघ पदाधिकारी बने. यहीं से कविता लेखन की शुरुआत की. यहीं की गलियों में अपने सहपाठियों के साथ गिल्ली-डंडा और खो-खो खेला. बाद में वे आगे बढ़ते गए और उनकी बचपन की यादें फ़साने बनकर आज भी कही-सुनी जातीं हैं. इसलिए ग्वालियर से जुड़ी यादें और उनकी कार्यशैली को लोग आज भी बड़ी शिद्दत याद करते हैं.
स्कूल बना स्मारक
अटल बिहारी वाजपेयी की उच्चतर माध्यमिक शिक्षा महाराज बाड़ा स्थित गोरखी स्कूल में हुई. यह स्कूल तब सिंधिया राज परिवार द्वारा संचालित होता था लेकिन स्वतंत्रता के बाद यह स्कूल मध्यप्रदेश सरकार के अधीन हो गया. अटल बिहारी वाजपेई ने जिस स्कूल में पढ़ाई की उस स्कूल के छात्र और शिक्षक अपने आप को गौरवांवित महसूस करते हैं. ग्वालियर में स्थित गोरखी स्कूल का हर कमरा और मैदान अटल जी की यादों से संजोया गया है.
आज भी सुने जाते हैं उनके खानपान के शौक चटखारे
अटल जी खाने के बहुत शौकीन थे. यही वजह है कि ग्वालियर शहर में कई दुकानें आज भी स्थित हैं, जहाँ वे अपने बाल्य काल और अपनी युवा अवस्था में घंटों बिताया करते थे. ग्वालियर में नया बाजार में स्थित बहादुरा स्वीट्स के लड्डू और रसगुल्ले अटल जी को बेहद पसंद थे और कहा जाता है कि जब वह प्रधानमंत्री थे तो लोग बहादुरा के लडडू और रसगुल्ले यहां से ले जाते थे और यही उनका एंट्री पास हुआ करता था. इसके साथ ही शहर में एक पुरानी सड़क किनारे लगने वाली दुकान के गरमागरम मंगोडे भी उन्हें पसंद थे. यहाँ यह मंगोड़े एक अम्मा बनाती थी. एक बार जब पीएम के तौर पर अपना जन्मदिन मनाने ग्वालियर आये तो उन्होंने इन अम्मा को भी मिलने बुलाया था. पहले वे वहीं जाकर मंगोड़े खाते थे, लेकिन जब वे राष्ट्रीय नेता हो गए तब भी उन्होंने इसका स्वाद नहीं भूला. वे जब भी ग्वालियर आते वहां से मंगाकर मंगोड़े अवश्य खाते थे.
मेले के शौक़ीन रहे अटल जी
अटल जी के साथ जनसंघ और भाजपा से जुड़कर काम करते रहे ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण के अध्यक्ष रह चुके राज चड्ढा बताते हैं कि अटल जी को बचपन से ही ग्वालियर मेले को लेकर ख़ास आकर्षण था और यह भी ताउम्र कायम रहा. वे अनेक राष्ट्रीय ओहदों पर होते हुए भी अचानक बिना किसी को पूर्व सूचना दिए मेले में पहुंच जाते थे और अकेले ही घूमते रहते थे जब तक प्रशासन और पार्टी नेताओं को इसकी भनक लगती वे ट्रेन पकड़कर दिल्ली लौट भी जाते थे.
करोड़ों रुपए की लागत से बन रहा है अटल स्मारक
ग्वालियर में सिरोल पहाड़ी पर अटल स्मृति स्मारक भी बनने जा रहा है. इसमें उनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए हॉल, लाइब्रेरी, म्यूजियम के साथ सभागार आदि भी बनाने की योजना है. इनके लिए लगभग 20 करोड़ रुपये राज्य शासन से मिल गया है और अब इसका निर्माण काम भी शुरू हो गया है जो दो साल में बनकर तैयार हो जाएगा.
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