MP News: खून में सिर्फ डेढ़ ग्राम हीमोग्लोबिन बचा, फिर भी जिंदा है ये महिला...जानिए दिलचस्प मामला...

Health Department MP: पूरे मामले में स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमलों जिनमे आशा कार्यकर्ता, एएनएम, सीएचओ सहित महिला बाल विकास की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की बड़ी लापरवाही साफ तौर पर निकलकर सामने आई है. क्योंकि स्वास्थ्य विभाग व महिला बाल विकास गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत योजनाएं चला रहे हैं जिसमें न केवल हर गर्भवती महिला की एंट्री होती है बल्कि लगातार टीकाकरण भी कराया जाता है, लेकिन इस महिला की कहीं कोई एंट्री नहीं हुई न ही कोई टीकाकरण ही हुआ.

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Madhya Pradesh News: स्वास्थ्य विभाग (Health Department) मैदानी क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लाख दावें करे लेकिन आए दिन ऐसी घटना हो ही जाती है जिससे उसके इस ख्याली दावों की पोल खुल ही जाती है. स्वास्थ्य विभाग कहता है कि अस्पताल में प्रसव कराने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहें हैं लेकिन उसके ये दावे भी मुंगेरीलाल के हसीन सपने की तरह दिखाई देते हैं. ऐसा ही दिखा अशोकनगर जिले (Ashoknagar) के मुंगावली ब्लॉक की चिरौली गांव में. यहां की रहने वाली 27 साल की महिला प्रीति आदिवासी घर पर प्रसव होने के पांच दिन बाद अपने मासूम बच्चे को लेकर पति के साथ सिविल अस्पताल मुंगावली, गम्भीर स्थिति में पहुंची. महिला की स्थिति देखकर डॉक्टर ने जब इसका हीमोग्लोबिन चेक कराया तो लगभग डेढ़ ग्राम हिमोग्लोबिन ही इस महिला के अंदर निकला. जिसके बाद इसको प्राथमिक उपचार के बाद जिला अस्पताल अशोकनगर रेफर कर दिया.

घर पर ही हो गई डिलीवरी

इस पूरे मामले में स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमलों जिनमे आशा कार्यकर्ता, एएनएम, सीएचओ सहित महिला बाल विकास की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की बड़ी लापरवाही साफ तौर पर सामने आई है. क्योंकि स्वास्थ्य विभाग व महिला बाल विकास गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत योजनाएं चला रहे हैं जिसमें न केवल हर गर्भवती महिला की एंट्री होती है बल्कि लगातार टीकाकरण भी कराया जाता है, लेकिन इस महिला की कहीं कोई एंट्री नहीं हुई साथ ही इसके पति का कहना है कि किसी तरह का कोई टीकाकरण भी इस गर्भधारण के दौरान नहीं किया गया.

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इसके बाद रविवार को घर पर ही इसकी डिलीवरी हो गई तो इसकी जानकारी भी स्वास्थ्य विभाग को एएनएम, आशा व आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा नहीं दी गई और आज ये महिला गंभीर अवस्था में मात्र डेढ़ ग्राम ब्लड होने पर खुद ही पति को लेकर अस्पताल पहुंची जो कहीं न कहीं मैदानी अमले पर कई सवाल खड़ा करता नजर आ रहा है.

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पांचवीं डिलीवरी में तीन की मौत...

आदिवासी क्षेत्र में आज भी इनकी क्या स्थिति है और किस तरह बच्चे छोटी सी उम्र में काल के गाल में समा जाते हैं. इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि इस 27 साल की महिला की ये पांचवी डिलीवरी है. जिसमें से पहला लड़का 3 साल कि उम्र मे खत्म हो गया. उसके बाद दूसरे लड़के की 2 साल में हो गई. वहीं तीसरी लड़की की भी दो साल में मौत हो गई. चौथे लड़का अभी 2 साल का है और अब ये लड़का और उसकी मां मौत से लड़ाई लड़ती नजर आ रहें हैं.

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