Shiv Temple: भोलेनाथ का ऐसा मंदिर जिसे अंग्रेजों ने बनवाया, यहां भक्त की भी होती है पूजा, जानें मंदिर के बारे में

Shiv Temple of Agar Malwa: आगर मालवा के बाबा बैजनाथ शिव मंदिर की कई प्रचलित कहानियां हैं. कहा जाता है कि अंग्रेजों ने मन्नत पूरी होने पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था.

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Baijnath Mahadev Temple Agar Malwa: हमारे देश में शिव भक्तों की आस्था के केंद्र बारह ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga) के अलावा भी कुछ शिव मंदिर (Shiv Temple) ऐसे हैं, जो अपने आप में ऐतिहासिक हैं. हम आपको ऐसे ही एक शिव मंदिर के बारे में बता रहे हैं जो अपने आप में दुर्लभ है. इस मंदिर की गाथाएं बेहद प्रचलित हैं. विश्व प्रसिद्ध महाकाल की नगरी उज्जैन से 67 किमी दूर स्थित आगर मालवा, जो कभी अंग्रेजों की छावनी हुआ करता था. इसी नगर से महज पांच किमी दूर इंदौर-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग (Indore-Kota National Highway) पर बैजनाथ महादेव का मंदिर है. यह मंदिर मनोहर पहाड़ियों और प्राकृतिक संपदा के बीचों-बीच है.

मंदिर के जीर्णोद्धार की ये है कहानी

बाणगंगा नदी के किनारे स्थित बाबा बैजनाथ महादेव मंदिर पुरातात्विक महत्व के साथ प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है. कहा जाता है कि मंदिर के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर बेट बैजनाथ खेड़ा गांव में सन् 1528 में मौन वेश्यों ने इस मंदिर की नींव रखी थी. मंदिर में स्थापित शिवलिंग 13 वीं शताब्दी का माना जाता है. कालांतर में इस मंदिर का जीर्णोद्धार अंग्रेजों के शासन काल में कर्नल मार्टिन ने करवाया था. बताया जाता है कि कर्नल मार्टिन आगर की छावनी स्थित अंग्रेजी फौज की तरफ से सन् 1880 में युद्ध करने काबुल गए थे. महीनों बीत जाने के बाद भी जब कर्नल मार्टिन की कोई खबर नहीं आई तब उनकी पत्नी उनके सकुशल लौटने के लिए यहां मन्नत मांगने आयीं थीं. उन्होंने अपने पति के सकुशल लौट आने पर इस मंदिर का निर्माण कराने की मन्नत मांगी थी.

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मंदिर का जीर्णोद्धार अंग्रेज कर्नल ने करवाया था.

मन्नत मांगने के ग्यारह दिन बाद कर्नल मार्टिन का पत्र आया, जिसमें वह कहते हैं कि कोई अज्ञात व्यक्ति मेरी सहायता करता है, जिसके बड़े बड़े बाल हैं और हाथ में त्रिशुल है. वह बैल पर सवार रहता है. ऐसा माना जाता है कि वो साक्षात बाबा बैजनाथ ही थे. इसके बाद कर्नल जब युद्ध से लौटे तो उनकी पत्नी ने कर्नल से कहकर इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. मंदिर की दीवार पर अंकित कृति से पता चलता है कि इसके निर्माण के लिए कई लोगों ने दानराशि दी थी.

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हजार साल पुराना है मंदिर

मंदिर में विराजे भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के बारे में कोई विशेष तथ्य तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन मंदिर के सामने स्थित सती के ओटले पर मौजूद शिलालेख पर उकरी हुई लिखावट को गौर से देखने पर 1116 लिखा दिखाई देता है. जिससे इस बात का प्रमाण तो मिल जाता है कि यह मंदिर करीब हजार वर्ष पुराना है.

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मंदिर में इन देवताओं की भी मूर्ति

बाबा बैजनाथ महादेव के दर्शन हेतु दूर-दूर से आने वाले भक्तों का दिनभर तांता लगा रहता है. मंदिर के गर्भगृह में शिव-पार्वती की एक दुर्लभ प्रतिमा भी स्थापित है, जिसमें शिव जी की वाम जंघा पर मां पार्वती विराजित हैं. वहीं गर्भगृह में कई दशकों से निरंतर जल रही अखंड ज्योति भी मौजूद है. मंदिर के उत्तरी भाग में गणेश मंदिर है. जिसमें गणेश जी अपनी दोनों पत्नी रिद्धि व सिद्धी के साथ विराजित हैं. गणेश मंदिर के ठीक सामने विष्णु के तीसरे अवतार वराह देवता का मंदिर है, जिसमें वराह देवता की बुद्धकालीन कलापूर्ण मूर्ति बहुत ही आकर्षक लगती है. यह प्रतिमा कहां से आई इसके बारे में यहां कोई तथ्य मौजूद नहीं है. बताया जाता है कि देश में वराह देवता के मात्र तीन मंदिर ही हैं, जिसमें से एक यहां है.

महादेव के भक्त की मूर्ति भी इस मंदिर में विराजित है, जिसकी पूजा की जाती है.

राजा नल से जुड़ी ये है कहानी

मंदिर प्रांगण में सप्तऋषी मंदिर, मंगलनाथ महादेव मंदिर, हनुमान मंदिर, शबरी आश्रम औक भैरव मंदिर सहित कई छोटे-बड़े शिवलिंग स्थापित हैं. मंदिर के बिल्कुल पीछे की ओर कुष्ठ रोगों से मुक्ति के लिए एक विशाल कमल कुंड है, जिसमे बाबा बैजनाथ पर चड़ाया गया जल व अन्य द्रव गौमुखि नाल से होते हुए यहां एकत्र होता है. बताया जाता है कि राजा नल ने कुष्ठ रोग के निदान हेतु इसी कुंड में स्नान किया था. मंदिर के गर्भगृह के बाहर अति प्राचीन नंदी प्रतिमा और विशाल त्रिशूल स्थापित है. सभा मंडप में 145 गांवों की रामायण मंडलियां पिछले 49 वर्षों से अखंड रामायण का पाठ कर रही हैं.

बाबा बैजनाथ के भक्त का किस्सा

नित्यानंद जी के शिष्य जयनारायण बापजी का किस्सा बहुत मशहूर है. किवदंती के मुताबिक, बापजी पेशे से वकील थे. एक दिन पेशी के समय बैजनाथ बाबा की ध्यान साधना में इतने लीन हो गए कि उन्हे पेशी का ध्यान ही नहीं रहा. बापजी की जगह बाबा बैजनाथ कचहरी में खुद पैरवी कर आए और पक्षकार को बरी करा दिया. बाबा के इस परम भक्त की आदम कद मूर्ति भी सभा मंडप में विराजित है, जो आने वाले भक्तों द्वारा पूजी जाती है.

हर साल सावन में निकलती है शाही सवारी

सावन माह के अंतिम सोमवार को प्रतिवर्ष बाबा बैजनाथ की शाही सवारी निकाली जाती है. जिसमें हजारों की संख्या में बाबा के भक्त शामिल होते हैं. साल में एक बार होने वाले बाबा के नगर आगमन को लेकर बड़े स्तर पर प्रशासन और नगर वासियों द्वारा तैयारियां की जाती हैं. मंदिर की लोकप्रियता और आने वाले दान को देखते हुए मंदिर का संचालन शासन द्वारा संरक्षित प्रबंध समिति के द्वारा किया जाता है, जिसके अध्यक्ष व सचिव पदेन एसडीएम और तहसीलदार होते हैं. बाबा बैजनाथ महादेव मंदिर में अपनी सभी तरह की मनोकामनाएं लेकर भक्त बड़ी संख्या मे यहां आते हैं.

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