Rewa: रीवा में 175 साल पुरानी परंपरा एक बार फिर धूमधाम से निभाई गई, जानिए क्या है इसके पीछे की मान्यता...

Rewa News: यहां के लोगों ने कहा कि इस इलाके में इस साल पिछले साल से बेहतर फसल हो, यह तभी होगा जब हम अपने यहां बोई गई पहली फसल अपने परिवार के मुखिया, यानी महाराज को भेंट करेंगे. रीवा रियासत में यह पुरानी परंपरा रही है.

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Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के रीवा (Rewa) के गोविंदगढ़ किले के परिसर में 175 साल से निभाई जा रही परंपरा एक बार फिर निभाई गई. यहां बड़े ही धूमधाम से कजलियां पर्व मनाया गया. इस मौके पर महाराजा पुष्पराज सिंह सहित तमाम लोग मौजूद रहे. रीवा से 20 किलोमीटर दूर गोविंदगढ़ किला परिसर में डेढ़ सौ साल से निभाई जा रही परंपरा को इस साल भी बड़े ही धूमधाम से निभाया गया. इस मौके पर रीवा महाराजा पुष्पराज सिंह खासतौर से मौजूद रहे. हर साल की तरह इस साल भी गोविंदगढ़ और उसके आसपास के लोगों ने गोविंदगढ़ किला परिसर के पास पहुंचकर महाराजा को कजलियां भेंट की. इस दौरान स्थानीय निवासियों ने जमकर नाच गाना करके, हर साल की तरह इस साल भी उत्साहपूर्वक इस पर्व को मनाया.

इसलिए मनाया जाता है ये पर्व

इस पर यहां के लोगों ने कहा कि इस इलाके में इस साल पिछले साल से बेहतर फसल हो, यह तभी होगा जब हम अपने यहां बोई गई पहली फसल अपने परिवार के मुखिया, यानी महाराज को भेंट करेंगे. रीवा रियासत में यह पुरानी परंपरा रही है. लोगों की ऐसी मान्यता भी थी. जो आज भी चली आ रही है.

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रीवा महाराजा पुष्पराज सिंह की माने तो रक्षाबंधन के दूसरे दिन इस पर्व को मनाया जाता है, लोग अपने घरों में कजलियां लगते हैं. रक्षाबंधन के दूसरे दिन सामूहिक रूप से एकत्र होते हैं, कजलियां को सबसे पहले अपने परिवार के मुखिया को भेंट करते हैं. उसके बाद लोग अपने-अपने इलाके में एक दूसरे से मिलकर कजलियां भेंट करते हैं. और खुशियां मनाते हैं. पिछले साल की तरह इस साल भी अच्छी फसल हो. इस साल भी ऐसा कुछ किया गया.

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काफी पुरानी है ये परंपरा

रीवा रियासत में यह परंपरा पिछले 175 साल से बदस्तूर निभाई जा रही है. महाराजा पुष्पराज सिंह की कई पीढ़ियां इस परंपरा को लगातार जिंदा किए हुए हैं. कजलियां को सबसे पहले महाराजा को भेंट किया जाता है. क्योंकि पुराने जमाने में लोगों की मान्यता थी, उनके घर का मुखिया उनके इलाके का महाराजा होता है. जिसके चलते यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है. यही परंपरा आज भी निभाई गई. गोविंदगढ़ और उसके आसपास के लोगों ने गोविंदगढ़ किला परिसर में पहुंचकर महाराज को कजलियां भेंट की. 

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