Ustad Bismillah Khan: वाह उस्ताद! शहनाई के जादूगर बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर जानिए इनके रोचक किस्से

Ustad Bismillah Khan Jayanti: 21 मार्च को विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां को उनकी जयंती पर याद किया जाता है. 21 मार्च, 1916 को बिहार में संगीतकारों के परिवार में जन्मे उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा अली बख्श 'विलायती' से प्राप्त की थी. आइए जानते उनके जीवन के बारे में.

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Ustad Bismillah Khan Birth Anniversary: प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्‍लाह खां की जयंती

Ustad Bismillah Khan Birth Anniversary: भारत के महानतम संगीतकारों में शुमार किए जाने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान (Ustad Bismillah Khan) की शुक्रवार 21 मार्च को 109वीं जयंती है. बिस्मिल्लाह खान का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव में हुआ था. खान को 2001 में ‘भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था. उनका 21 अगस्त 2006 को निधन हो गया. पहले भारतीय जिन्हें अमेरिका के प्रतिष्ठित लिंकन सेंटर हॉल में शहनाई वादन के लिए आमंत्रित किया गया. भारतीय संगीत जगत के अमूल्य धरोहर बिस्मिल्लाह खान ने शहनाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी.

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कैसा था जीवन?

भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बनारस की शान थे. उन्हें शहनाई का जादूगर कहा जाता था. उनकी शहनाई वादन इतनी बेहतरीन और दिल से निकलती थी कि उनकी आवाज सुनने के लिए दुनियाभर से लोग आया करते थे. उस्ताद राष्ट्रपति भवन में कई कलाकारों के साथ जुगलबंदी कर चुके हैं. उन्हें काशी की मूल संस्कृति का सशक्त प्रतिनिधि भी लोग कहते हैं. उनकी शहनाई के सुरों में काशी की संस्कृति और परंपराओं की महक थी. मुहर्रम के मौके पर उनकी शहनाई की दर्द भरी धुन हो या श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भोलेनाथ के प्रति उनकी श्रद्धा, श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थी.

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 'शहनाई सम्राट' बिस्मिल्लाह खां का जन्म 21 मार्च को बिहार के डुमरांव के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. उस्ताद का नाम कमरुद्दीन खान था. जानकारी के अनुसार, काफी कम उम्र में वह अपने मामू के घर बनारस गए थे और इसके बाद वह बनारस के ही होकर रह गए, वही उनकी कर्मस्थली बन गई.

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अभिनेता जैकी श्राफ ने भारत रत्न और ‘शहनाई के जादूगर' उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर उन्हें याद किया. सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर कर उन्होंने कहा कि उस्ताद हमेशा दिलों में रहेंगे. इंस्टाग्राम के स्टोरीज सेक्शन पर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की शहनाई बजाती एक तस्वीर को शेयर कर जैकी ने कैप्शन में अपने दिल की बात कही. उन्होंने लिखा, “आप हमेशा दिलों में रहेंगे.”

'काशी कबहूं ना छोड़िए, विश्वनाथ के धाम'

खां को काशी से इतना लगाव था कि एक बार जब उन्हें अमेरिका से यहीं पर बस जाने का प्रस्ताव मिला तो उन्होंने सभी प्रकार की सुख-सुविधा मिलने की बात को एक पल में ही नकार दिया था. उस्ताद 'काशी कबहूं ना छोड़िए, विश्वनाथ के धाम' को मानते थे. उनका कहना था कि यहां गंगा है, यहां काशी विश्वनाथ हैं, यहां से जाना मतलब इन सभी से बिछड़ जाना.

उनके मामू और गुरु अली बख्श साहब बालाजी मंदिर में शहनाई बजाते थे और वहीं रियाज भी करते थे. यहीं पर उन्होंने बिस्मिल्लाह खां को शहनाई सिखानी शुरू की थी. बिस्मिल्लाह खां अपने मामू के साथ मंदिर में रियाज के लिए भी जाया करते थे.

उस्ताद को भारत सरकार ने साल 2001 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया था. शहनाई को विश्व पटल पर ले जाने में बिस्मिल्‍लाह खां का अतुलनीय योगदान माना जाता है. उन्हें शहनाई की लय साधने के लिये जाना जाता है. बिस्मिल्‍लाह खां ने सर्वप्रथम वर्ष 1938 में लखनऊ के ऑल इंडिया रेडियो पर शहनाई वादन किया था. बिस्मिल्‍लाह खां को संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों से नवाज़ा गया है. वर्ष 2001 में उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां को राष्‍ट्र का सर्वोच्‍च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न प्रदान किया गया था. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले पर शहनाई वादन के लिये उन्हें आमंत्रित किया गया था. उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय वाराणसी में व्यतीत किया और सात दशकों से अधिक समय तक संगीत की सेवा करने के बाद 21 अगस्त, 2006 को वाराणसी में अंतिम साँस ली.

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