
Skand Shashthi 2025: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि महोत्सव और स्कंद षष्ठी दोनों हैं. इस दिन सूर्य देव कर्क राशि में रहेंगे और चंद्रमा कन्या राशि में रहेंगे. दृक पंचांग के अनुसार अभिजीत मुहूर्त नहीं है और राहुकाल का समय दोपहर के 12 बजकर 27 मिनट से शुरू होकर 2 बजकर 9 मिनट तक रहेगा. कल्कि महोत्सव, भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार भगवान कल्कि के अवतरण को समर्पित है. स्कंद पुराण के अनुसार, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन स्कंद षष्ठी मनाई जाती है. भगवान कार्तिकेय ने आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को तारकासुर नाम के दैत्य का वध किया था, जिसके बाद इस तिथि को स्कंद षष्ठी के नाम से मनाया जाने लगा. इस जीत की खुशी में देवताओं ने स्कंद षष्ठी का उत्सव मनाया था.
ऐसा है धार्मिक महत्व
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि कलयुग के अंत में सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि अवतार में भगवान विष्णु का जन्म होगा. श्रीमद्भागवत पुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक के अनुसार जब गुरु, सूर्य और चंद्रमा एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तब भगवान विष्णु, कल्कि अवतार में जन्म लेंगे.
भगवान कल्कि कलियुग के अंत में तब अवतरित होंगे जब अधर्म, अन्याय और पाप अपने चरम पर होगा. उनका उद्देश्य पृथ्वी से पापियों का नाश करना, धर्म की फिर से स्थापना करना और सतयुग का आरंभ करना होगा. भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की पूजा उनके जन्म के पहले से ही की जा रही है.
इसी के साथ ही इस दिन स्कंद षष्ठी भी है, यह दिन भगवान कार्तिकेय (स्कंद) को समर्पित है. स्कंद पुराण में इस दिन व्रत रखने से संतान प्राप्ति के साथ-साथ सुख, शांति और रोगों से मुक्ति भी मिलती है. इस दिन विशेष विधि से पूजा और व्रत से मनोवांछित लाभ प्राप्त होता है.
पूजा विधि
इस दिन व्रत शुरू करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और पूजा स्थल में आसन पर बैठें, उसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें. इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें और व्रत का संकल्प लेने के बाद कार्तिकेय भगवान के वस्त्र, इत्र, चंपा के फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें. भगवान कार्तिकेय का प्रिय पुष्प चंपा है, इस वजह से इस दिन को स्कंद षष्ठी, कांडा षष्ठी के साथ चंपा षष्ठी भी कहते हैं. भगवान कार्तिकेय की आरती और तीन बार परिक्रमा करने के बाद 'ओम स्कन्द शिवाय नमः' मंत्र का जप करना चाहिए. इसके बाद आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम कर प्रसाद ग्रहण करें.
यह भी पढ़ें : Antibiotic Medicines: एंटीबायोटिक प्रतिरोध का खतरा; 2050 तक मौत के साथ ही इलाज का खर्च भी बढ़ेगा
यह भी पढ़ें : World Snake Day 2025: सांप को लेकर सोच बदलें! दुश्मन नहीं मित्र है सर्प; जानिए भ्रांतियां और सच्चाई
यह भी पढ़ें : Ladli Behna Yojana: लाडली बहनों को 1500 रुपए प्रतिमाह; CM मोहन का शगुन, जानिए कब आएगी 27वीं किस्त?
यह भी पढ़ें : Smart Meter: 100 रुपये की जगह आ रहा ₹5000 का बिल; बिजली उपभोक्ता परेशान, गहने गिरवी रखकर किया भुगतान