रविवार, 12 मई को मदर्स डे (Mothers Day 2024) मनाया जा रहा है. वैसे तो हर दिन मां का होता है, लेकिन मदर्स डे एक ऐसा दिन होता है, जो मां के लिए पूर्ण रूप से समर्पित होता है. कहते हैं कि मां के बिना एक बच्चे की जिंदगी और उसकी दुनिया पूरी तरह से अधूरी है. मां है तो जहान है. बच्चा छोटा हो या बड़ा, उसकी पहली दोस्त मां ही होती है. सबसे पहले हम सभी अपना हर सुख-दुख अपनी मां से ही बयां करते हैं.
मां ममता का सागर है
'मां' को शब्दों में बांध पाना असंभव है. वो ममता का सागर है, जिसमें भावनाएं हिलोरे रहती हैं. इसलिए तो कहा गया है कि अगर ईश्वर को देखना है तो मां को देख लेना चाहिए. शायर मुनव्वर राना से लेकर निदा फाजली तक अपने कलम से एक से बढ़कर एक शेर मां के लिए लिखे गए हैं.
ऐसे में अगर आप मदर्स डे पर मां के प्रति असीम प्यार दिखाना चाहते हैं, तो हम आपके लिए कुछ चुनिंदा शायरी लेकर आए हैं.
मशहूर शायर मुनव्वर राना (Munawwar Rana) ने मां पर लिखे अपने बेहतरीन अशआर ने न सिर्फ उन्होंने नौजवान नस्ल को मां (Maa) का मतलब समझाया, बल्कि ये भी बताया कि जीवन में मां की क्या अहमियत है.
मुनव्वर राना ने मां पर लिखे थे- ''मेरी ख्वाहिश है कि फिर से मैं फरिश्ता हो जाऊं, मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं… कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की खातिर, ऐसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं…''
मुनव्वर राना ने अपने कलम से मां पर लिखा था- 'हालात बुरे थे मगर अमीर बनाकर रखती थी. हम गरीब थे, ये बस हमारी मां जानती थी…'
चलती फिरती हुई आंखों से अजा देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है…
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है...
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है.
अभी जिंदा है मां मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा.
मैं घर से जब निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
मां ने आंखें खोल दी घर में उजाला हो गया
लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक मां है जो मुझसे खफ़ा नहीं होती
‘मुनव्वर‘ मां के आगे यूं कभी खुलकर नहीं रोना
जहां बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती.
कल अपने-आप को देखा था मां की आंखों में, ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है.....
शायर सिराज फैसल खान ने मां पर लिखा था- 'किताबों से निकल कर तितलियां गजलें सुनाती हैं, टिफिन रखती है मेरी मां तो बस्ता मुस्कुराता है...'
अख़्तर नज़्मी ने लिखा- 'भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए, जब मेरी चिंता बढ़े मां सपने में आए...'
निदा फाजली ने लिखा था- 'मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार, दुख ने दुख से बातें की बिन चिट्ठी बिन तार..'
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