मध्यप्रदेश के मालवांचल में हर तरह का फ्लेवर मौजूद है. यहां तेज रफ्तार से भागता और चकाचौंध करता शहर इंदौर है तो धार्मिक नगरी उज्जैन भी है. इस अंचल में एक शहर, एक जिला झाबुआ भी है, जो आज भी अपनी पुराने फ्लेवर को संजो कर रखने में कामयाब रहा है. इस शहर का अपना एक रोचक इतिहास तो है ही. लेकिन इसे दुनियाभर में पहचान मिली एक मुर्गे के नाम पर. मुर्गों की इस प्रजाति को कड़कनाथ कहते हैं, जिसका स्वाद और टेक्शचर खाने के शौकीनों को अट्रेक्ट करता रहा है. कड़कनाथ के अलावा बांस से बने उत्पाद भी झाबुआ के कई घरों में आज भी जीवन यापन का जरिया बने हुए हैं.
झाबुआ का इतिहास
कड़कनाथ से मिली पहचान
कड़कनाथ मुर्गे का नाम लें तो झाबुआ का नाम सबसे पहले याद आता है. काले मांस और गाढ़े रंग के खून वाला ये मुर्गा खाने में बेहद लजीज होता है. जिसके स्वाद के मुरीद देश से लेकर विदेश तक हैं. ज्यादा मांग की वजह से कड़कनाथ की प्रजाति धीरे धीरे कम हो रही थी. लेकिन इसे जीआई टैग मिलने के बाद कड़कनाथ के संरक्षण पर तेजी से काम शुरू हुआ. और , अब स्थिति पहले से काफी बेहतर है.
बांस के खिलौनों ने दी मजबूती
देश के ढाई सौ सबसे पिछड़े जिलों में शामिल झाबुआ में बांस की कलाकृत्तियां भी खूब बनाई जाती हैं. महिलाएं बांस से गुड़िया, गहने और कई अन्य तरह की कलाकृतियां बनाती हैं. झाबुआ के अधिकांश सेल्फ हेल्प ग्रुप औऱ महिला समूह भी इस काम को बढ़ावा देते हैं, जिससे कई घरों का जीवनयापन होता है.