Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Case : मस्जिद सर्वे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Case : न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश आठ नियम 10 पर 'अस्मा लतीफ' मामले में हाल के फैसले के आलोक में कुछ कानूनी मुद्दे उठे हैं. शीर्ष अदालत की खंडपीठ ने यह भी कहा, “आवेदन ने सर्वव्यापी प्रार्थना की. प्रार्थना भी अस्पष्ट थी और विशिष्ट नहीं थी.”

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Krishna Janmabhoomi Temple and Shahi Idgah Dispute : मथुरा कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के फैसले पर रोक लगा दी है. मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति का फैसला सुनाया गया था. इस आदेश के कार्यान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई है. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ (Bench of Justices Sanjiv Khanna and Dipankar Datta) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 14 दिसंबर के आदेश के खिलाफ मस्जिद कमेटी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया है. इस मामले पर अब सुप्रीम कोर्ट 23 जनवरी को सुनवाई करेगा, अगली सुनवाई तक हाई कोर्ट का आदेश लागू नहीं किया जा सकेगा.

मस्जिद कमेटी की ओर से क्या कहा गया?

लाइव लॉ के मुताबिक मस्जिद कमेटी की ओर से वकील तस्नीम अहमदी (Advocate Tasneem Ahmadi) ने तर्क दिया कि जब पूजा स्थल अधिनियम 1991 (Places of Worship Act 1991) के आदेश VII नियम 11 सीपीसी के तहत (under Order VII Rule 11 CPC) द्वारा वर्जित मुकदमा खारिज करने की मांग करने वाला आवेदन लंबित है तो हाईकोर्ट आदेश पारित नहीं कर सकता. उन्होंने असमा लतीफ बनाम शब्बीर अहमद (Asma Latheef Vs Shabbir Ahmad) के हालिया फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया कि जब किसी मुकदमे की स्थिरता पर सवाल उठाया जाता है तो ट्रायल कोर्ट (Trial Court) को अंतरिम राहत देने से पहले कम से कम प्रथम दृष्टया क्षेत्राधिकार पर निर्णय लेना चाहिए.

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जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता ने क्या कहा?

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने प्रथम दृष्टया कानूनी दलील स्वीकार करते हुए आयोग की अर्जी दाखिल करने के तरीके पर भी आपत्ति जताई. जस्टिस संजीव खन्ना (Justices Sanjiv Khanna) ने कहा कुछ कानूनी मुद्दे उठते हैं. इसके अलावा, स्थानीय आयुक्त के लिए आवेदन बहुत अस्पष्ट है. क्या इस तरह से आवेदन किया जा सकता है? वहीं वादी पक्ष की ओर से सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान (Senior Advocate Shyam Divan) ने आदेश पर रोक लगाने पर आपत्ति जताई और आग्रह किया कि हाईकोर्ट को आयोग सर्वेक्षण के तौर-तरीकों पर काम करने की अनुमति दी जाए.

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जस्टिस खन्ना ने श्याम दीवान से कहा कि "आवेदन के बारे में हमें आपत्ति है. प्रार्थना को देखें. यह बहुत अस्पष्ट है. इसे पढ़ें. आप इस तरह सर्वव्यापी आवेदन नहीं कर सकते. आपको यह स्पष्ट करना होगा कि आप स्थानीय आयुक्त से क्या कराना चाहते हैं." खंडपीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया, जो 23 जनवरी, 2024 को वापस किया जा सकता है.

खंडपीठ के आदेश में क्या है?

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने का आदेश पारित किया. हालांकि खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि इस मामले में उच्च न्यायालय के समक्ष अन्य कार्यवाही जारी रहेगी. उच्च न्यायालय ने 14 दिसंबर 2023 को अधिवक्ता आयुक्तों की अदालत (कोर्ट कमिश्नर) की निगरानी वाली तीन सदस्यीय टीम द्वारा उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह परिसर के प्राथमिक सर्वेक्षण की अनुमति दी थी. इस आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने मस्जिद पक्ष की ओर से एक वकील को सुनने के बाद कहा, “आयोग की नियुक्ति के आदेश पर अमल नहीं किया जाएगा.”

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न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश आठ नियम 10 पर 'अस्मा लतीफ' मामले में हाल के फैसले के आलोक में कुछ कानूनी मुद्दे उठे हैं. शीर्ष अदालत की खंडपीठ ने यह भी कहा, “आवेदन ने सर्वव्यापी प्रार्थना की. प्रार्थना भी अस्पष्ट थी और विशिष्ट नहीं थी.”

शीर्ष अदालत ने हालांकि आदेश पर रोक लगा दी. साथ ही नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह इस मामले में अगली सुनवाई 23 जनवरी 2024 को करेगी. इलाहाबाद उच्च के न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि वह आयुक्त की नियुक्ति और सर्वेक्षण के तौर-तरीकों पर फैसला करेगी.

यह है मामला

उच्च न्यायालय ने हरि शंकर जैन और अन्य के माध्यम से देवता (भगवान श्री कृष्ण विराजमान) की ओर से दायर याचिका पर आदेश पारित किया था. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट औरंगजेब ने भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के एक हिस्से को ध्वस्त करने के बाद किया था. याचिकाकर्ता जैन ने फैसले को ‘ऐतिहासिक' बताते हुए कहा था, “यह हमारी मांग थी कि एक अधिवक्ता आयुक्त द्वारा एक सर्वेक्षण कराया जाए क्योंकि मस्जिद में कई सबूत हैं जो साबित करते हैं कि यह वास्तव में एक हिंदू मंदिर था.” हिन्दू पक्ष ने पूरी 13.37 एकड़ भूमि पर स्वामित्व का दावा किया है, जिस पर संरचनाएं स्थित हैं। उन्होंने शाही ईदगाह मस्जिद समिति और श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के बीच 1968 के समझौते को भी चुनौती दी है, जिसने मस्जिद को उस भूमि का उपयोग करने की अनुमति दी थी जिस पर वह स्थित थी.

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