Bastar Dussehra Muria Darbar: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की मुरिया दरबार परंपरा इस बार काफी चर्चा में है. क्योंकि भारत के गृह मंत्री अमित शाह इस बार मुरिया दरबार में शामिल होने के लिए बस्तर पहुंच रहे हैं. अमित शाह 3 अक्टूबर की शाम को रायपुर और इसके बाद 4 अक्टूबर को सुबह करीब 11:00 बजे बस्तर पहुंचेंगे. यहां बस्तर दशहरा के समापन कार्यक्रम की परंपरा के तहत मुरिया दरबार में मुख्य रूप से वे शामिल होंगे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मुरिया दरबार परंपरा में शामिल होने के साथ ही इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि आखिर वह परंपरा क्या है? जिसमें शामिल होने खुद केंद्रीय गृह मंत्री बस्तर पहुंच रहे हैं.
145 साल से जारी है परंपरा
बस्तर दशहरा समिति के पदेन अध्यक्ष व बस्तर सांसद महेश कश्यप बताते हैं- 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा में मुरिया दरबार बस्तर दशहरा के समापन कार्यक्रम की अभिन्न परंपरा है. लगभग 145 साल से जारी इस परंपरा के अनुसार दशहरा कार्यक्रम में शामिल होने आने वाली जनता की समस्याएं सुनी जाती हैं और उनके समाधान को लेकर रणनीति भी तैयार की जाती है.
बता दें कि बस्तर रियासत द्वारा अपने राज्य में परगना स्थापित कर यहाँ के मूल आदिवासियों से मांझी (मुखिया) नियुक्त किया गया था, जो अपने क्षेत्र की हर बात राजा तक पहुंचाया करते थे, वहीं राजाज्ञा से ग्रामीणों को अवगत भी कराते थे. मुरिया दरबार में राजा द्वारा निर्धारित 80 परगना के मांझी ही उन्हें अपने क्षेत्र की समस्याओं से अवगत कराते हैं.
रिसायती दौर से चल रही पहल में आजादी के बाद आया बदलाव
मुरिया दरबार में पहले राजा और रियासत के अधिकारी कर्मचारी मांझियों की बातें सुना करते थे और तत्कालीन प्रशासन से उन्हें हल कराने की पहल होती थी. आज़ादी के बाद मुरिया दरबार का स्वरूप बदल गया. 1947 के बाद राजा के साथ जनप्रतिनिधि भी इसमें शामिल होने लगे.
बस्तर के मुरिया दरबार में अब बस्तर संभाग के निर्वाचित जन-प्रतिनिधि और वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहते हैं. वे ग्रामीणों से आवेदन लेते हैं. मांझी, चालकी और मेंबर-मेंबरीन इनके सामने ही अपनी समस्या रखते हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी 2009 -10 से लगभग हर मुरिया दरबार में शामिल हो रहे हैं. इस साल पहली बार केंद्रीय गृह मंत्री इस परंपरा में हिस्सा लेंगे.
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