Gariaband News: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में होली की परंपरा के साथ प्रकृति प्रेम को बढ़ावा देने के लिए पिछले 18 साल से अनोखे अंदाज में होली मनाई जा रही है. यहां के होली समारोह में अतिथि के रूप में कोई नेता या नामचीन शख्स नहीं, बल्कि प्रकृति की रक्षा करने वाले कीट-पतंगें और पेड़-पौधे होते हैं. यहां हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं और हवन के राख से तिलक लगाकर होली (Natural Holi) मनाते हैं. होलिका दहन (Holika Dahan) के ठीक दो दिन पहले से यहां हवन की आग में आहुति दी जाती है. इस साल ये काम गरियाबंद के कांडसर में मौजूद गौशाला के संचालक बाबा उदय नाथ कर रहे हैं. यहां भगवा वस्त्र पहन योग मुद्रा और ध्यान मुद्रा के बीच प्रकृति की सभी खूबसूरत देन का स्मरण किया जाता है.
होलिका के दो दिन पहले से शुरू हो जाते हैं अनुष्ठान
गरियाबंद में होलिका दहन के ठीक दो दिन पहले से ही हवन की आग में आहुति दी जाती है. इसके लिए भी किसी खास व्यक्ति को चुना जाता है. हवन के बाद भगवा वस्त्र पहन कई लोग योग मुद्रा और ध्यान मुद्रा में प्रकृति की दी हुए सभी खूबसूरत चीजों का स्मरण करते हैं. प्रकृति के प्रति आस्था दर्शाने वाले इस आयोजन में अतिथि भी प्रकृति के पहरेदार ही होते हैं.
प्रकृति से जुड़ी चीजें होती हैं मुख्य अतिथि
इस आयोजन में गौ माता मुख्य अतिथि होती हैं. पलास वृक्ष, गुबरेल कीट और चमगादड़ को इस बार विशेष अतिथि का दर्जा मिला है. अतिथियों के आवभगत में कोई कमी नहीं रखी जाती है. उनकी पूजा-अर्चना के साथ ही सैकड़ों कलश सर में सजाए, सफेद कपड़े के कालीन बिछा कर, बाजे-गाजे में झूमते नाचते इन्हें 3 किमी दूर से गौशाला के आयोजन स्थल तक लाया जाता है. फिर होलिका दहन की रात के बाद ब्रह्म मुहूर्त में पूर्णाहुति के बाद बाल भोग और गौ पूजन के साथ हवन की राख से तिलक लगाकर होली खेली जाती है.
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विश्व शांति यज्ञ के रूप में मनाई जाती है होली
बाबा उदय नाथ निराकार ब्रह्म के उपासक हैं. वो इस आयोजन को विश्व शांति यज्ञ के नाम से मनाते हैं. क्षेत्र में मौजूद उनके 7 हजार से ज्यादा अनुयायी शुरू से ही इस आयोजन में शामिल होते हैं. होली के बदलते स्वरूप और प्रकृति के प्रति लोगों के रुझान बढ़ाने के उद्देश्य से उदय नाथ ने इसकी शुरुआत 2005 में की थी. उनके शुभचिंतक इस नेक पहल के लिए सरकारी मदद दिलाने की भी मांग कर रहे हैं.
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