आसान बनी गांव के किसानों की जिंदगी ! महुआ के पेड़ से ऐसे हो रही मोटी कमाई

Earning Source for Village Farmers : छत्तीसगढ़ के MCB जिले के किसानों की जिंदगी अब आसान बनती नज़र आ रही है. यही नहीं, अब यहां के किसान तमाम ज़िलों के किसानों के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं. महुआ के पेड़ के ज़रिए किसान अपनी जरूरतों का खर्चा निकाल पा रहे हैं.

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Chhattisgarh News in Hindi : छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के आदिवासी इलाके MCB जिले के लोगों के लिए महुआ का पेड़ दूसरी कमाई जरिया बना हुआ है. यह एक ऐसा पेड़ है जिसके फल, पत्ती, फूल सब उपयोगी है. महुआ के पेड़ के फल को डोरी कहा जाता है. बारिश के साथ जब महुआ का सीजन खत्म हो जाता है तो कुछ दिन के बाद डोरी का फल प्रचुर मात्रा में फलने लगता है. डोरी के फल को चुनने के बाद गांव के लोग उसके बीज को निकालते हैं और धूप में सुखाते हैं. सूखे हुए बीज को उबालने के बाद उसका चूर्ण बना लेते हैं. इससे तेल भी निकाला जाता  हैं.  महुआ का पेड़ ही एक ऐसा पेड़ है जिससे फूल व फल के रूप में दो बार नकदी फसल मिलती है वहीं पेड़ की हर चीज लोगों के काम आती है. इसके पेड़ों के रख-रखाव या रोपण की आवश्यकता नहीं होती.

चुनते हैं महुआ के पेड़ के फल

पेड़ से गिरे बीजों से खुद ही किसानों के खेतों व जंगलों में इसके पौधे उगते हैं. इससे ग्रामीणों को बिना मेहनत के ही दो बार कीमती व नकदी फसल मिलती है. इन दिनों गांव के लोग डोरी को उत्साह से चुन रहे हैं. एक महीना पूर्व वे महुआ चुन के हजारों रुपए की कमाई कर चुके हैं. गांव के भरी गर्मी होने के बावजूद परिवार सहित उत्साह से महुआ चुनते हैं.

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एक पेड़ से ₹4 से 8 हजार कमाई

वहीं, लगभग एक महीने बाद इसी पेड़ से डोरी प्राप्त करते हैं जिसे ग्रामीण बेच कर स्कूली बच्चों की पढ़ाई व कृषि जैसे जरूरी काम में आने वाले खर्च को आसानी से पूरा करते हैं. गांव के लोग इस दोहरी फसल देने वाले प्रति पेड़ से 4 से 8 हजार रुपए तक की कमाई कर लेते हैं. अनेक ग्रामीणों के खेतों में दर्जनों पेड़ होते हैं वहीं जंगल के पेड़ों से मजदूर वर्ग के लोग इसका लाभ हासिल करते हैं.

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इसमें नहीं लगती ज़्यादा मेहनत

सबसे अच्छी बात यह है कि अन्य फसलों के उत्पादन में मेहनत करने की तरह इसमें मेहनत करने की आवश्यकता नहीं होती. न तो निंदाई-गुड़ाई करना पड़ता है और न तोड़ने की आवश्यकता होती है. बल्कि परिपक्व होते ही पेड़ से अपने आप फल गिरने लगते हैं. जिसे ग्रामीण चुनकर घर लाते हैं. जहां महुआ को सुखाने व डोरी का छिलका निकालने के बाद बिक्री करते हैं.

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तेल और पत्तल में भी इस्तेमाल

आपको बता दें कि महुआ पेड़ से फूल के रूप में महुआ एवं फल के नाम से डोरी मिलती है. महुआ को ग्रामीण पकवान के रूप में प्रयोग करते हैं. कई ग्रामीण डोरी से तेल निकालते हैं. जिससे इनका साल भर के लिए घर में खर्च होने वाले तेल की पूर्ति हो जाती है. इतना ही नहीं इस पेड़ का हर अंग उपयोगी है. इसके पत्ते से जहां लोग दोना-पत्तल बनाते हैं.

दातुन करने में भी बड़ा कारगर

वहीं, इस पेड़ से इमारती लकड़ी भी हासिल करते हैं. आयुर्वेद में भी इसका खास महत्व है. खाज-खुजली सहित अनेक चर्म रोगों में भी इसके छिलके को पानी को इलाज के रूप में इस्तेमाल करते हैं. महुआ पेड़ का दातुन निरंतर करने से दांत मजबूत होते हैं. इसके अन्य आयुर्वेदिक लाभ भी है.

बिक्री कर कमा सकते हैं पैसे

ग्रामीण महिला लक्ष्मी सिंह का कहना कि डोरी को तोड़कर उसमें से दाल निकालते हैं. तेल को खाने में उपयोग करते हैं और पैसे की कमी होती है तो इसको बेचकर पैसे कमाते है. गरीबी में इसको बेच देते हैं. इसका बहुत उपयोग होता है. महुआ से भी पैसा बनाते हैं. महुआ पेड़ से में बहुत लाभ मिलता है.

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चल रहा घर का खर्चा-पानी

ग्रामीण महिला उर्मिला बतातीं हैं कि डोरी को धोते हैं, फोड़ते हैं फिर तेल बनाते हैं, इसकी सब्जी बनाकर भी खाते हैं. हमारे लिए महुआ का पेड़ बहुत उपयोगी होता है. सरपंच विजय सिंह का कहना है कि ग्रामीण डोरी, सरई, बीन कर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. स्कूल की जो फीस होती है उसे भी निकाल पाते हैं. इससे ही उनका खर्चा पानी चलता है.

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