'लाल आतंक' का अंत ! MP-महाराष्ट्र नक्सल मुक्त; डेडलाइन से पहले ऐसे मिलेगी ऐतिहासिक सफलता

Red Corridor End: देश से लाल आतंक के खात्मे की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. तय समय सीमा से पहले ही, खूंखार माओवादी कमांडर हिडमा को ढेर कर दिया गया है, जबकि मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र नक्सल मुक्त घोषित हो चुके हैं और बचे हुए नक्सली कमांडरों के सामने अब 'या सरेंडर, या एक्शन' की अंतिम रणनीति है.

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Naxal Free India: देश से लाल आतंक के खात्मे की उल्टी गिनती अब सिर्फ तारीखों की बात नहीं रही. जंगलों में दशकों से चल रही माओवादी बंदूकों की गूंज अब थमने लगी है. दरअसल तय समय सीमा से पहले ही देश ने नक्सलवाद के अंत की ओर सबसे बड़ा कदम बढ़ा दिया है. देश के इतिहास में पहली बार, नक्सलवाद के खात्मे की बात सिर्फ राजनीतिक दावा नहीं, बल्कि जमीन पर दिखता सच बन चुकी है.क्योंकि जंगलों में दशकों से चल रही लाल क्रांति की बंदूकें अब एक-एक कर खामोश हो रही हैं.

हिडमा ढेर, नक्सल तंत्र हिला 

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने  NDTV के मंच से ऐलान किया था कि 31 मार्च 2026 तक भारत से लाल आतंक खत्म कर देंगे. जमीन पर चल रही सुरक्षाबलों की निर्णायक कार्रवाई ने इस डेडलाइन को महज़ तारीख नहीं रहने दिया.इस ऐलान का जमीन पर निर्णायक अंजाम तब दिखा, जब सबसे घातक हमलों का मास्टरमाइंड माओवादी कमांडर माडवी हिडमा को तय समय सीमा से 12 दिन पहले ही ढेर कर दिया गया. सुरक्षाबलों की यह कार्रवाई सिर्फ एक एनकाउंटर नहीं थी, बल्कि नक्सल इतिहास का सबसे बड़ा मोड़ था.

बस्तर में बचे गिने-चुने दस्ते

छत्तीसगढ़ में अब भी कुछ चुनौती बची है, लेकिन तस्वीर पहले जैसी नहीं है. एक वक्त था जब 12 हजार से ज्यादा नक्सलियों के हाथों में बंदूकें थीं, आज बस्तर में सिर्फ़ गिने-चुने दस्ते ही बचे हैं और वो भी लगातार दबाव में हैं. अब बचे हुए नक्सली कमांडरों में बटालियन नंबर-1 का इंचार्ज बारसे देवा उर्फ साईनाथ (25 लाख का इनामी) और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के कुछ चेहरे जैसे पापाराव उर्फ चंद्रन्ना ही मुख्य चुनौती हैं. 

इसमें भी सबसे खतरनाक देवा को माना जा रहा है जो बटालियन नंबर-1 का इंचार्ज है. सुकमा का रहने वाला है औऱ 25 लाख का इनामी है. वो हमेशा AK-47 के साथ चलता है. इसकी बटालियन में आज भी 100 से 150 हथियारबंद नक्सली बताए जाते हैं.

इसके अलावा माओवादी सेंट्रल कमेटी, जहां कभी 21 सदस्य होते थे, अब सिर्फ 4 नाम ही सुरक्षाबलों के लिए चुनौती हैं, जिनमें कई बुजुर्ग, बीमार या गुमनामी की ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं.

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MMC ज़ोन साफ: MP-महाराष्ट्र नक्सल मुक्त

डेडलाइन से लगभग 4 महीने पहले ही रेड कॉरिडोर के दो राज्यों ने खुद को नक्सल मुक्त घोषित कर दिया है. वो इलाके, जहां कभी पुलिस कैंप बनाना भी मौत को न्योता देने जैसा था, आज वहां बिना डर विकास की गाड़ियां चल रही हैं. रामधेर और अनंत जैसे बड़े नक्सलियों के सरेंडर के बाद MMC (मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़) के जंक्शन इलाके में सिर्फ़ 6 नक्सली बचे थे. अगले ही दिन, बालाघाट में छोटा दीपक उइके और रोहित ने भी हथियार डाल दिए. पिछले 42 दिनों में इस ज़ोन में 7 करोड़ 75 लाख रुपये के इनामी 42 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, जो कभी जंगलों में समानांतर सरकार चलाते थे.

25 सालों में चुकाई कीमत

लाल आतंक का खात्मा छत्तीसगढ़ के लिए बेहद ज़रूरी है, क्योंकि अपनी स्थापना के 25 सालों में राज्य ने नक्सल हिंसा की गहरी कीमत चुकाई है. 25 सालों में 3,404 मुठभेड़ हुईं. 1,541 नक्सली ढेर किए गए. 1,315 जवान शहीद हुए. 1,817 निर्दोष नागरिकों की मौत हुई. वहीं, 7,826 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया और 13,416 गिरफ्तार हुए हैं.

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अंतिम रणनीति: 'या सरेंडर, या कार्रवाई'

अब सुरक्षाबलों की रणनीति साफ है. आईजी, बस्तर सुंदरराज पी.के मुताबिक, जंगल में बचे कैडर के पास अब सिर्फ एक ही विकल्प है - हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो जाना.अन्यथा,उन्हें सुरक्षाबलों की निर्णायक कार्रवाई का परिणाम भुगतना होगा. लाल गलियारा, जो कभी देश की सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती था, आज इतिहास बनने की कगार पर है. बंदूकें खामोश हैं, कमांडर या तो मारे जा चुके हैं या आत्मसमर्पण कर चुके हैं और जंगल अब डर की नहीं, नए भारत की कहानी सुनाने लगे हैं.
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