सुरक्षाबलों के मूवमेंट पर ड्रोन से रखी जाती है नजर, जंगल में ही आधुनिक हथियार बना रहे नक्सली

Naxalism in Chhattisgarh: अबूझमाड़ के वह इलाके जहां दूर-दूर तक बिजली नहीं है. नक्सली वहां हाईटेक सोलर सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं. नक्सली अपने कैंप में लैपटॉप और प्रिंटर का भी इस्तेमाल करते हैं और यह सब सोलर सिस्टम के सहारे चलाया जाता है.

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Naxalites Latest News in HIndi: छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है. सरकार जहां प्रदेश नक्सलवाद को खत्म करने के लिए 31 मार्च 2026 की तारीख तट कर रखी है. वहीं, नक्सली नित्य नए हथकंडे अपना कर खुद को मजबूत करने में लगे हैं. दरअसल, नक्सलियों ने वक्त के साथ खुद को हाईटेक बना लिया है. बताया जाता है कि नक्सली जंगलों में सुरक्षाबलों पर निगरानी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में नक्सली साल 2018 से ऐसा कर रहे हैं. हालांकि, पुलिस को इसकी जानकारी अब लगी है. बरामद ड्रोन की रेंज 3 किमी बताई जा रही है. इसके अलावा भी नक्सली घने जंगलों में भी अपनी सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक तकनीक और हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके अलावा विदेशों से भी हथियार आयात किए जाते हैं. छत्तीसगढ़ में एक सरेंडर नक्सली ने खुलासा किया था कि बर्मा से छत्तीसगढ़ ऑटोमेटिक हथियार और कारतूस सप्लाई होती है.

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लाइट के लिए सोलर सिस्टम का इस्तेमाल

अबूझमाड़ के वह इलाके जहां दूर-दूर तक बिजली नहीं है. नक्सली वहां हाईटेक सोलर सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं. नक्सली अपने कैंप में लैपटॉप और प्रिंटर का भी इस्तेमाल करते हैं और यह सब सोलर सिस्टम के सहारे चलाया जाता है.

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जंगल में हथियार बनाने की फैक्ट्री

एक समय में कर्रेगुट्टा की उंची पहाड़ियों पर जवानों का पहुंचना मुश्किल होता था. वहां, पैदल जाना तो असंभव था. लेकिन नक्सली ऐसे दुर्गम पहाड़ी पर भी हथियारों की 4 फैक्ट्रियां बना रखी थी. इन फैक्ट्रियों में DGL, राइफल, लॉन्चर, 12 बोर और कट्टा जैसे हथियार बनाए जाते थे. आज से 10 साल पहले रायपुर के एक नामी स्क्रैप व्यवसायी समेत दो नक्सली मददगारों और तीन नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया था. उनपर आरोप था कि उन्होंने लेथ मशीन और वेल्डिंग मशीन की सप्लाई की थी.

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पुलिस हुई सतर्क

दंतेवाड़ा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राम रामकुमार बर्मन नहीं बताया कि नक्सलियों द्वारा ड्रोन के इस्तेमाल की खबरें लगातार मिल रही हैं. सुरक्षा पर पूरी तरह से फोकस है. साल 2015 में दंतेवाड़ा में भी एक लेथ मशीन डंप में मिली थी. ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर सुरक्षा बल के जवान सजग हैं और सतर्क भी हैं.

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अब सवाल है कि इतनी ऊंची पहाड़ी पर फैक्ट्री के लिए लेथ मशीन कैसे पहुंचाई गई? एक लेथ मशीन का साइज एक कमरे के बराबर होता है. कर्रे गुट्टा की ऊंची पहाड़ियों पर पैदल अकेले चढ़ना भी बेहद मुश्किल होता है. ऐसे में सवाल है कि लेथ मशीन पहाड़ियों पर कैसे पहुंचा?  

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