नक्सल कमांडर रुपेश ने कहा- हम सरेंडर नहीं कर रहे, संघर्ष का तरीका बदल रहे; जानिए आगे की रणनीति क्या?

Naxalite Rupesh Interview: चार दशक से भी अधिक समय से प्रतिबंधित माओवाद संगठन से जुड़े रहे रुपेश ने बातचीत में आत्मसमर्पण शब्द पर आपत्ति जताई. रुपेश ने कहा कि हम हथियार जरूर छोड़ रहे हैं, लेकिन समर्पण नहीं कर रहे.

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Naxalite Rupesh News In Hindi: 16 और 17 अक्टूबर 2025 की तारीख छत्तीसगढ़ के बस्तर में माओवाद हिंसा के खिलाफ जारी अभियान में ऐतिहासिक रूप में दर्ज हो गई है. देश में माओवाद संगठन के इतिहास में पहली बार किसी केंद्रीय समिति के सदस्य के नेतृत्व में 158 माओवादी एक साथ हथियार लेकर मुख्य धारा में जुड़ने के लिए आगे बढ़े हैं. चर्चाओं में इसे देश की आंतरिक व्यवस्था में अब तक का सबसे बड़ा आत्म समर्पण बताया जा रहा है. लेकिन हथियार छोड़कर मुख्य धारा में जुड़ने का निर्णय ले चुके ये माओवादी क्या इसे आत्म समर्पण मानते हैं या कुछ और..? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश NDTV की टीम ने की पढ़िए ये रिपोर्ट...

बस्तर संभाग के बीजापुर जिले के भैरमगढ़ ब्लॉक से करीब 12 किलोमीटर दूर इंद्रावती नदी के उसपरी घाट को पार कर कतारबद्ध माओवादियों का एक बड़ा समूह हथियार लेकर धीरे-धीरे आगे बढ़ता नजर आया. इनमें ज्यादातर वर्दीधारी माओवादी हैं. उसपरी घाट से ताडोकोट गांव में कुछ देर के लिए आराम कर रहे सशस्त्र माओवादियों का नेतृत्व कर रहे उनके नेता पार्टी के केंद्रीय समिति के सदस्य रुपेश उर्फ सतीश कोफा से एनडीटीवी के साथी विकास तिवारी ने बातचीत की तो परत दर परत हथियार छोड़ने की वजह सामने आने लगी.

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रुपेश की आत्मसमर्पण शब्द पर आपत्ति 
चार दशक से भी अधिक समय से प्रतिबंधित माओवाद संगठन से जुड़े रहे रुपेश ने बातचीत में आत्मसमर्पण शब्द पर आपत्ति जताई. रुपेश ने कहा कि हम हथियार जरूर छोड़ रहे हैं, लेकिन समर्पण नहीं कर रहे. पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने संगठन के भीतर पहले ही इस बात को रखा था कि अब हथियार के साथ जनता की लड़ाई लड़ना संभव नहीं है. रूपेश ने बातचीत में कहा कि संगठन के पूर्व महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ़ बसवराजू ने भी संगठन के वरिष्ठ नेताओं के बीच में इस बात को रखा था कि अब हमें हथियार छोड़कर आगे की लड़ाई के बारे में नीतिगत फैसला लेना चाहिए. लेकिन संगठन के कई नेताओं ने इसका विरोध किया. इस विरोध का नतीजा यह रहा कि संगठन पूरी तरह से खात्मे की ओर बढ़ने लगा. खुद हमारा महासचिव भी अबूझमाड़ में एक मुठभेड़ में मर गया. 

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'हथियार के साथ सुरक्षा बल का हिस्सा नहीं बनेंगे'
रुपेश ने आगे बताया कि उन्होंने सरकार के जिम्मेदार लोगों से पहले बातचीत की, उनसे कुछ मांगों पर सहमति ली और इसके बाद अब हथियार छोड़ने का निर्णय लिया है. रुपेश के मुताबिक अब उन्होंने हथियार नहीं उठाने का निर्णय लिया है चाहे वह सरकार के लिए ही क्यों ना हो. यानी कि हथियार छोड़कर मुख्य धारा में शामिल होने आए रुपेश और उसके साथी सरकार द्वारा चलाए जा रहे माओवाद हिंसा विरोधी अभियान में हथियार के साथ सुरक्षा बल का हिस्सा नहीं बनेंगे. 

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'हथियार नहीं, संविधानिक तरीके से बनेंगे जनता की आवाज'  
रुपेश ने कहा की जनता के अधिकार की लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ने की प्रक्रिया जारी रहेगी. इसके लिए हम जनता के बीच जाएंगे उनकी समस्याओं को सुनेंगे और उनके हक के लिए संविधानिक तरीके से जो भी निर्णय होगा वो लेंगे. रुपेश ने कहा की जनता के लिए हमारे संघर्ष का तरीका और स्वरूप बदल रहा है. अब हम हथियार नहीं बल्कि संविधानिक तरीके से जनता की आवाज बनने की कोशिश करेंगे. 

रुपेश की साथियों से अपील-अब हथियार छोड़ दो  
रुपेश ने बातचीत में माओवाद संगठन के अपने उन साथियों से भी हथियार छोड़कर मुख्य धारा में जुड़ने की अपील की, जो अभी हथियार के साथ लड़ाई लड़ना चाहते हैं. रुपेश ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में असंवैधानिक तरीके से हथियार पड़कर जनता के हक में संघर्ष नहीं किया जा सकता. हथियार छोड़कर सब लोग मुख्य धारा में जुड़ जाएं और उसके बाद आगे की रणनीति पर काम हो.

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