छत्तीसगढ़ में तेजी से बढ़ा Men Vs Wild संघर्ष, कांकेर जिले में खतरे में आया इकोसिस्टम

Shriking Forest Area of Kanker: कांकेर जिले में जंगली जानवरों के लगातार रिहाइसी इलाकों ने नजर आने से इंसानों की बस्तियों में उनके हमले का खतरा लगातार बना रहता है. इनमें भालू, तेंदुआ समेत अन्य वन्यजीव प्राणी शामिल हैं, जो जंगल और मैदानी इलाकों की ओर बढ़ रहे हैं. यह खतरा लगातार गहरा हो रहा है.

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Worsen Chhattisgarh's Kanker City Ecosystem

Kanker Ecosystem: लगातार सिमटते जंगलों के दायरों से छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में मानव और वन्यप्राणियों के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है. इन दिनों इंसानों की आबादी वाले इलाके में लगातार जंगली जानवर पहुंच रहे है, जिससे जंगली जानवरों के हमले से किसी की जान जा रही है, तो सैकड़ों घायल हो चुके हैं.

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कांकेर जिले में जंगली जानवरों के लगातार रिहाइसी इलाकों ने नजर आने से इंसानों की बस्तियों में उनके हमले का खतरा लगातार बना रहता है. इनमें भालू, तेंदुआ समेत अन्य वन्यजीव प्राणी शामिल हैं, जो जंगल और मैदानी इलाकों की ओर बढ़ रहे हैं. यह खतरा लगातार गहरा हो रहा है.

इंसानों के जान और माल दोनों को नुकसान पहुंचा रहे जंगली भालू

ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कांकेर जिले में लगातार सिमटते जंगल क्षेत्र से जंगली जानवर अब जंगलों से निकल कर रिहायसी इलाकों में पहुंच रहे है और आए दिन लोगों का शिकार कर रहे हैं. यह संघर्ष शहर और ग्रामीण इलाकों में देखा जा रहा है, जहां जंगली भालू, तेंदुआ लोगों के बीच पहुंच रहे है. जो इंसानों के जान और माल दोनों को नुकसान पहुंचा रहे है.

मैदानी इलाके में आए भालू ने डिप्टी रेंजर को उतार मौत के घाट 

गौरतलब है सप्ताह भर पूर्व एक डिप्टी रेंजर जगंल से भटकर मैदानी इलाके में आए एक भालू के हमले में गंभीर रूप से घायल हो गया था, जिसके बाद उसकी मौत हो गई. इसी तरह एक पिता पुत्र को भी जंगली भालू ने शिकार बनाते हुए मौत के घाट उतार दिया. तेंदुए राह चलते लोगो पर हमले कर रहे हैं, जिससे जिले के लोग हलकान हैं.

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पहाड़ी जंगलों से घिरा कांकेर शहर का दायरा पहाड़ों की ओर तेजी से बढ़ा है, जिसे जंगल में जानवरों का दायरा सिमट रहा है. सिमटते जंगल का असर है कि जंगली जानवर खाने-पीने और पानी की तलाश में इंसानी रिहायसी इलाकों में भटकने लगे हैं. इसे उनका इंसानों से सामना बढ़ा है.

भालू और तेंदुए के लिए अनुकूल है पहाड़ी जंगलों से घिरा कांकेर शहर

इंसान और जंगली जानवरों के बीच बढ़ते संघर्ष पर प्रतिक्रिया देते हुए कांकेर वन मंडल के डीएफओ आलोक वाजपेयी का कहना है कि पहाड़ी जंगलों से घिरे कांकेर में भालू और तेंदुए के रहवास के लिए अनुकूल वातावरण है. जिसकी वजह से इनका डेरा इस इलाके में ज्यादा दिखाई देता हैं.

जानवरों के हमले से 70 से अधिक घायल और 11 लोग गंवा चुके हैं जान

कांकेर वन मंडल से मिले एक आंकड़े का अनुसार साल 2022 से 2025 अब तक कुल 11 लोगों ने तेंदुए और भालू के हमले से अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं, साल 2022 से 2025 अब तक 70 से अधिक लोग भालू और तेंदुए के हमले से बुरी तरह घायल हो चुके है. कांकेर में बिगड़ते इकोसिस्टम के चलते लोगों के जीवन खतरे में आ गया है.

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कांकेर वन मंडल से मिले एक आंकड़े का अनुसार साल 2022 से 2025 अब तक कुल 11 लोगों ने तेंदुए और भालू के हमले से अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं, साल 2022 से 2025 अब तक 70 से अधिक लोग भालू और तेंदुए के हमले से बुरी तरह घायल हो चुके है. 

 भालूओं के रहवास के लिए करोड़ों की परियोजना का बुरा हाल

उल्लेखनीय है जंगलों में फलदार वृक्ष के कमी के चलते जंगल में भालूओं के रहवास के लिए साल 2014 -15 में करोड़ों खर्च शुरू की गई जामवंत परियोजना का भी हाल बुरा है. देख-रेख के अभाव में फलदार वृक्ष सूख कर गिर चुके है. वहीं, निर्मित तालाब सूख रहे है, जिसके चलते जंगली जानवर इंसानों की बस्ती में पहुंच रहे है और दहशत का पर्याय बन गए हैं.

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वन विभाग के प्रयास नाकाफी, जंगल में नहीं रूक रहे जानवर 

वन विभाग का कहना है कि बहुत से ग्रामीण इलाकों की बसाहट वन सीमा से सटी हुई है. जिसकी वजह से दोनों के बीच द्वंद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है. ऐसा नहीं है कि जंगलो में खाने-पीने की व्यवस्थाएं नहीं है. पर्याप्त मात्रा में फलदार वृक्ष और पीने के पानी की व्यवस्था है. विभाग इन्हें रोकने लगातार प्रयास कर रही है.

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