Maha Shivratri Special: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले से करीब 18 किलोमीटर दूर ग्राम पर्रेगुड़ा के पास घने जंगल में स्थित भोलापठार अपने आप में अद्भुत और अलौकिक पठार है. जमीन (भूतल)से करीब 400 फीट ऊपर काले पत्थरों का यह पठार त्रेता युग से लेकर महाभारत की कहानियों को अपने अंदर संजोए रखा है. यहां स्थित चट्टानों के बीच कुंड में 12 महीने पानी रहता है. घने जंगलों और चट्टानों के बीच इस भोला पठार की कहानी रामायण और महाभारत काल से है. महाशिवरात्रि हो या सावन का महीना यहां शिव भक्तों की भीड़ लगी रहती है.
ये है मान्यताएं
दरअसल इसकी कहानी त्रेता युग से जुड़ी हुई है त्रेतायुग में जब भगवान शिव और पार्वती धमतरी के पास स्थित सिहावा के श्रृंगी ऋषि पर्वत से वापस कैलाश पर्वत की तरफ जा रहे थे. तब बीच में भोला पठार में वह विश्राम करने के लिए रुके. इसी बीच माता सीता की तलाश में भगवान राम और लक्ष्मण जंगलों में भटकते हुए आ रहे थे. जहां माता पार्वती ने भगवान राम की परीक्षा लेने की ठानी और सीता का रूप धारण कर राम भगवान के सामने प्रकट हो गई. इस बात से नाराज होकर भगवान भोलेनाथ यही धूनी रमा के बैठ गए और इसका नाम भोला पठार पड़ गया.
काले पत्थर और चट्टानों में बसा भोला पठार में लोगों की अपार श्रद्धा है लोग यहां पर आकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान भोलेनाथ को मनाने के लिए तरह-तरह की पूजा पाठ करते हैं.कुछ लोग नारियल को पेड़ों में बांधकर अपनी मन्नतें मांगते हैं. बताया जाता है कि सावन मास हो या महाशिवरात्रि या हजारों की तादाद में लोग आकर भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाते हैं और भोलेनाथ उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं .
इस भोला पठार में सबसे अद्भुत और अलौकिक चीज 400 फीट ऊपर काले चट्टानों और पत्थरों के बीच एक कुंड है इस कुंड में 12 महीना चाहे भीषण गर्मी क्यों ना हो पानी रहता है .कुंड से एक मग पानी निकाले या पूरा एक बाल्टी भरकर पानी निकले. पानी का लेवल यथावत रहता है.इस पानी को अमृत की तरह माना जाता है .इसे पीने से कई तरह के चर्म रोग भी ठीक हो जाते हैं. लोग इस पानी को अपने घरों में बोतलों में भरकर ले जाते हैं .आज तक कोई नहीं जान पाया कि इस कुंड में कहां से पानी आता है यह लोगों के लिए कौतूहल का विषय है
इस भोला पठार में एक और अद्भुत और अलौकिक चीज देखने को मिलती है . काले पत्थरों और चट्टानों में कई तरह से घोड़े, हाथी के पैरों के निशान स्पष्ट नजर आते हैं. कहा जाता है कि महाभारत के समय जब पांडव युद्ध के लिए जा रहे थे. तो इसी रास्ते से गुजरे थे, जहां घोड़े और हाथियों के पैरों के निशान हैं. वही बड़ा पद चिन्ह नजर आता है. कई सालों से मान्यता है कि ये भीम के पैर के निशान हैं. पांडव पुत्र भीम जो काफी बलशाली और शक्तिशाली माने जाते थे .उनका यह पद चिन्ह है जिसे आस्था मानकर पूजा अर्चना करते हैं.
घने जंगलों के बीच जमीन से 400 फीट ऊपर काले चट्टानों और पहाड़ों का यह पठार भोला पठार अपने आप में लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. त्रेता युग से लेकर महाभारत की कहानियों को सहेजे इस भोला पठार में भोला दशहरा भी मनाया जाता है .कई बार इस जगह को पर्यटन स्थल में शामिल करने की मांग भी की गई. लेकिन आज तक वह मांग पूरी नहीं हो पाई.लेकिन इस भोला पठार में लोगों की अपार श्रद्धा देखी जाती है .