Loksabha Election 2024: नक्सलियों का गढ़ रहे इलाके में लोग बोले- जब सरकार हम तक नहीं पहुंच रही है तो हम उसे क्यों चुनें?

पूरे देश में लोकसभा चुनाव को लेकर धुआंधार प्रचार चल रहा है. हर तरफ चुनावी बयानों की शोर है और नेता अपने सियासी हिसाब-किताब सेट करने में जुटे हैं. ऐसे NDTV ने शुरू की है चुनावा यात्रा. जिसके जरिए ये जानने की कोशिश होगी आखिर लोग इस चुनाव में क्या चाहते हैं? लोगों का मूड क्या है? क्या वाकई नेताओं के वादों के मुताबिक संबंधित इलाकों में विकास पहुंचा है? इसी कड़ी में हमारे वरिष्ठ संवाददाता निलेश त्रिपाठी और विकास तिवारी ने ओडिशा सीमा पर बसे छत्तीसगढ़ के अंतिम गांव चांदामेटा गांव का जायजा लिया

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Lok Sabha Elections 2024: बस्तर/रायपुर. लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है.साथ ही शुरू हो चुकी है एनडीटीवी की चुनाव यात्रा (NDTV's election journey). इसी के तहत हम पहुंचे बस्तर जिला (Bastar district) मुख्यालय जगदलपुर(Jagdalpur News) से करीब 60 किलोमीटर दूर बसे चांदामेटा गांव (Chandmeta village). इसकी पहली कड़ी में हमने आपको बताया कि गांव तक हम कैसे पहुंचे और वहां पहला एक्सपीरियंस कैसा रहा? अब जानिए ओडिशा सीमा पर बसे छत्तीसगढ़ के इस अंतिम में लोग कैसे जीवन यापन करते हैं? चुनाव को लेकर वे क्या सोचते हैं और क्या है उनके चुनावी मुद्दे? बता दें कि चांदामेटा गांव पूरे राज्य में तब खूब चर्चा में आया जब विधानसभा चुनाव 2023 में यहां पोलिंग बूथ बनाया गया था. अधिकारियों ने दावा किया कि आजाद भारत के इतिहास में पहली बार इस गांव में मतदान केन्द्र बनाया गया है. कभी नक्सलियों के गढ़ रहे इस इलाके में सरकार विकास कर ग्रामीणों का दिल जीत रही है. पूरे गांव में विकास हो रहा है.

गांव में चिरौंजी 100 रु. किलो, शहर में 700 रु.!

पहली किस्त में हमने आपको गांव में पहुंचने और फिर वहां के ग्रामीणों के जीवन के बारे में बताया.जिसमें हमने जाना क्या है उनकी परंपराएं और वे किन परिस्थितियों में जी रहे हैं. इसी दौरान हमारी मुलाकात ग्रामीण श्याम से हुई. अब उसी श्याम की अगुवाई में पटेलपारा से हम टेंड्रेपारा के लिए निकल गए.

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छिंद पेड़ का रस कुछ यूं निकालते हैं ग्रामीण. गर्मियों में सेहत के लिए यह बहुत अच्छा होता है.

कुछ मीटर आगे बढ़ते ही सड़क छोड़ पगडंडियों के सहारे पहाड़ की चढ़ाई करनी पड़ी. करीब डेढ़ किलोमीटर पहाड़ चढ़ने और करीब 500 मीटर दूसरी ओर उतरने के दौरान छिंद के पेड़ पर बर्तन लटका दिखा. गांव के परदेशी सोरी कहते हैं. हम छिंद पेड़ का रस निकाल रहे हैं, गर्मियों में सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है. 10 रुपये का हम एक गिलास बेचते हैं. 24 घंटे में बर्तन भर जाएगा.

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कुछ दूरी पर एक आंगन में हरे रंग का बेरनुमा फल सूख रहा था. पूछने पर श्याम बताते हैं- ये चार (चिरौंजी) है. इसे सुखाकर इसका बीज निकालकर हम 100 रुपये प्रति किलो में बेचते हैं. मैं हैरान था,क्योंकि चिरौंजी ड्राई फ्रूट है, जिसकी शहरी बाजार में कीमत कम से कम 500 से 700 रुपये प्रति किलो ग्राम है.

श्याम बताते हैं- केला,आम,कटहल,मौसंबी,नींबू और महुआ भी बेचकर हमें कमाई होती है. यही सब हम खाते और बेचते भी हैं. 

गांव में कितनी पहुंची सरकार?

शाम धीरे-धीरे ढलने लगी थी. गांव में सड़क के नाम पर कच्ची पगडंडियां ही थीं. एक मैदान में महिलाएं और बच्चे बर्तन लेकर बैठे नजर आए. करीब पांच फीट गहरा गड्ढा लकड़ियों से ढका था. एक महिला गड्ढे के अंदर ही खड़े होकर पानी निकाल रही थी.

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इस पूरे इलाके में अब भी पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है. लोग गड्ढों से पानी निकालकर इस्तेमाल करते हैं

मैं कुछ पूछना चाहा तो परदेशी सोरी ने कहा कि उनको हिंदी नहीं आती. पानी देख हम हैरान थे. परदेशी कहते हैं- हम,पीने,नहाने और खाना बनाने समेत हर जरूरी काम के लिए इसी पानी का उपयोग करते हैं. इसे पीकर लोग बीमार पड़ रहे हैं, लेकिन क्या करें पूरे पारा में पानी का यही एक स्रोत है. ये भी बंद हो जाएगा तो हम प्यासे मर जाएंगे.चार से पांच साल की उम्र के एक बच्चे की ओर इशारा करते हुए परदेशी कहते हैं- इन बच्चों को स्कूल जाने के लिए पांच-सात किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. छोटे बच्चों को उनकी मां कंधे पर लादकर पहाड़ी चढ़ती हैं, फिर आंगनबाड़ी में छोड़ती हैं. अभी तक टेंड्रेपारा में सिर्फ बिजली का खंभा पहुंचा है. 

सरकार की हर घर नल से जल योजना के बारे में यहां शायद ही किसी ने सुना हो.

चुनाव का विरोध

पानी को दिखाते हुए गुस्से में परदेशी कहते हैं- 'वोट के समय पिछली बार अधिकारी आए थे तो बोले हम सब ठीक कर देंगे, लेकिन उसके बाद कोई झांकने नहीं आया. इस बार हम वोट में भाग नहीं लेंगे. हमारे यहां कोई बीमार पड़ता है तो उसे कंधे पर अस्पताल ले जाना पड़ता है, नहीं तो यहीं झाड़-फूंक करवाते हैं.' वहीं खड़े श्याम कहते हैं- यहां कई समस्याएं हैं. पानी और स्वास्थ्य तो सबसे बड़ी समस्या है. एक-डेढ़ महीने पहले की बात है, एक प्रेग्नेंट महिला को प्रसव के अंतिम समय कुछ दूर पैदल फिर बाइक में चार किलोमीटर ले जाने के बाद एंबुलेंस में बैठाया गया. पारा में पहुंचने के लिए सड़क नहीं है, इसलिए एंबुलेंस नहीं आ पाई. जब प्रसव हुआ तो बच्चा मरा पैदा हुआ,वो पेट में ही खत्म हो गया. यहां ये समस्या आए दिन रहती हैं. बच्चों की अगर जांच हो तो कई कुपोषण के शिकार मिलेंगे. हमने कहा चुनाव का बहिष्कार मत करिए, वोट दीजिए. इसपर परदेशी कहते हैं- 'जब सरकार हम तक नहीं पहुंच रही है तो हम उसे क्यों चुनें. कलेक्टर को आवेदन दिए, थानों में आवेदन दिया, लेकिन कोई नहीं सुन रहा है.' 

गांव की पगडंडिया आपको यहां के विकास का हाल खुद ही बता देगी. ऐसे में प्रग्नेंट महिलाओं के लिए सबसे अधिक समस्या होती है

सरकारी योजनाओं का हाल?

शाम के करीब साढ़े सात बज चुके थे. गांव पूरी तरह से अंधेरे में डूब चूका था. हम पहाड़ी रास्ते से वापस पटेलपारा पहुंचे. यहां चूल्हे पर खाना बना रही रीना को भारत सरकार की उज्ज्वला और राज्य सरकार की महतारी वंदन योजना की भी जानकारी है. लेकिन उन्हें इसका लाभ नहीं मिल रहा है. श्याम बताते हैं कि आवेदन करने की प्रक्रिया ही नहीं पता है. सरकारी अमला इस ओर ध्यान ही नहीं देता. गांव में राशन की दुकान नहीं है. सरकारी राशन के लिए दस किलोमीटर दूर दूसरे गांव जाना पड़ता है. 2 महीने पहले ही गांव में बिजली के खंभे लगे हैं, लेकिन तीन दिन से बिजली कट है. कब आएगी नहीं पता. चांदामेटा में टोंड्रेपारा, पटेलपारा, अंडलपारा, मुड़ियामा पारा, पटनमपारा है, जिसमें सिर्फ अंडलपारा और पटेलपारा में ही बिजली, पानी और पक्की सड़क की सुविधा है, जिसका लाभ गांव के सिर्फ 40-50 लोगों को ही मिल रहा है.

बस्तर के चुनावी समीकरण में चांदामेटा कितना जरूरी?

बता दें कि बस्तर लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभाएं आती है, जिसमें छह जिले हैं.बस्तर लोकसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 14 लाख 66 हजार 337 मतदाता हैं. चांदामेटा गांव की कुल आबादी ही करीब 300 है. चुनाव बहिष्कार की बात कर रहे ग्रामीण पूछने पर कहते हैं- 'कांग्रेस से कवासी लखमा और भाजपा से महेश कश्यप प्रत्याशी है. वे यहां कभी नहीं आए. वोट मांगने के लिए यहीं छोटे नेताओं को भेज देते हैं. चुनाव के बाद तो छोटे नेता भी नहीं दिखते हैं.' छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और क्षेत्र के विधायक किरण सिंहदेव का कहना है कि क्षेत्र में सुविधाएं पहुंचाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है. चुनाव का बहिष्कार करने की बात कह रहे ग्रामीणों को मनाने का प्रयास किया जाएगा.

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