Chhattisgarh News: क्या कोई किसी पेड़ को अपनी जिंदगी मान सकता है, क्या कोई किसी पेड़ को देखकर रो सकता है? क्या कोई किसी पेड़ को पकड़कर उससे अपनी बातें शेयर कर सकता है, उसे अपनी भावनाएं बता सकता है? इन सवालों पर आप चौंक सकते हैं...लेकिन आप चले आइए छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में मौजूद पीसेगांव जहां इन सवालों के जवाब आपको हां में मिलेंगे. दरअसल पीसेगांव पर्यावरण संरक्षण (Environment Protection) की मिसाल बन गया है. इस गांव के लोगों ने पेड़ों से रिश्तेदारी कर ली है. यहां पेड़ किसी का पिता,पति,मां तो किसी का हरदिल अजीज दोस्त है. इंसानों से पेड़ों की इस रिश्तेदारी की चर्चा अब खूब हो रही है.पढ़िए हमारे वरिष्ठ संवाददाता नीलेश त्रिपाठी की ग्राउंड रिपोर्ट.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर शिवनाथ नदी के किनारे बसा पीसेगांव जब आप पहुंचेंगे तो गायों के गले में बंधी घंटी की मधुर आवाज, बंदरों की उछल-कूद, नदी के पानी की कल-कल ध्वनि आपका स्वागत करेगी. यहां आप खुद को प्रकृति के बेहद करीब पाएंगे. हालांकि हम यहां उस उपवन की तलाश में आए थे जिसकी चर्चा इन दिनों पूरे प्रदेश में है. यहां नदी के किनारे मुक्तिधाम के पास गांव के लोगों ने एक उपवन बनाया है, जहां पेड़ों से उन्होंने रिश्तेदारी कर ली है.
इस उपवन में हमें मिलीं गांव की बुजुर्ग महिला कुमारी बाई देशमुख. वे उपवन में लगे नीम के पेड़ को अपना पति मानती हैं. वे इस पेड़ से लिपटती हैं...बातें करतीं है, सुख-दुख बांटती हैं. वे कहती हैं कि पति के जाने के बाद इस पेड़ के पास ही आ जाती हैं, इसे देखकर बाते करती हैं. ऐसा करना उन्हें अच्छा लगता है. पति का नाम लेने में संकोच करती कुमारी बाई ने बताया कि उनकी इच्छा थी कि वो अपने बेटे की हर ख्वाहिश पूरी करें, लेकिन नहीं कर पाए. उनके जाने के बाद मैंने बेटे की शादी की, इस बात को आकर मैं बताती हूं कि मैंने शादी अच्छे से की है, कोई कमी नहीं होने दी, बस कमी तुम्हारी ही थी, बात करने के बाद अच्छा लगता है और ऐसा लगता है कि वो सुन रहे हैं.
पौधे के साथ मां का रिश्ता जोड़ा
पीसेगांव में कुमारी बाई अकेली हों,जिनकी पेड़ से रिश्तेदारी हो,ऐसा नहीं है...गांव में कुछ साल पहले ही ब्याह कर आईं मधु ने भी उपवन में एक पौधे लगाया है. इस पौधे को वो अपनी मां मानती हैं. मधु इस पेड़ रुपी मां की देखरेख के लिए रोज उपवन आती हैं और उनसे बातें भी करती हैं. पूछने पर मधु बताती हैं कि मां की बहुत याद आती थी, इसलिए मैंने उनकी याद में ये पौधा लगाया, जब मैं 14 साल की थी तब ही उनकी मृत्यु हो गई थी, यहां शादी होकर आई, उसके बाद उपवन के बारे में पता चला तो यहां एक पौधा लगाई हूं.
कोरोना में दोस्त खोया, अब पेड़ ही दोस्त
यहां एक और दिलचस्प किस्सा हमें सुनने को मिला. दरअसल गांव में समाज सेवा से जुड़े 35 वर्षीय युवक सूर्यकांत गुप्ता कोरोना की दूसरी लहर के दौरान संक्रमण से मौत हो गई.ग्रामीणों को संक्रमण से बचाने के लिए सूर्यकांत खुद मास्क, सैनेटाइजर व अन्य जरूरी वस्तुएं ग्रामीणों को मुफ्त में बांटा करते थे.कोरोना से छिन चुके अपने दोस्त को जिंदा रखने के लिए ग्रामीणों ने उपवन में एक पीपल का पेड़ लगाया है, पीपल को बढ़ता देख, वो मान रहे हैं उनका दोस्त भी बढ़ रहा है.
पेड़ को देखते ही आंसू क्यों आते हैं?
आपने पेड़ों की पूजा और देखरेख की कई तस्वीरें देखी होंगी, लेकिन क्या कोई पेड़ से इतना प्रेम करे कि उसे पकड़ते ही आंखों से आंसू आ जाए. करीब 22 वर्षीय प्रेरणा को देखकर इसका जवाब आसानी से मिल जाता है, पेड़ को पकड़ते ही आंसू निकलने की उनकी अपनी वजह भी है. वो बताती हैं- मैं बहुत छोटी थी, जब इस गांव में आई, इस उपवन में बहुत से बंदर थे, यह पेड़ जब भी थोड़ा बड़ा होता तो बंदर उसे तोड़ देते थे, फिर भी धीरे-धीरे कर वो बढ़ता गया. इस पेड़ को देखकर लगता है कि हर किसी को जीवन में बढ़ने के लिए स्ट्रगल करना पड़ता है, इसलिए जब इसके स्ट्रगल को सोचती हूं तो आंसू आ जाते हैं.
पेड़ों को संवारने की सोच कहां से आई?
दरअसल पीसेगांव के उपवन में लगे हर पेड़ की ग्रामीणों से रिश्तेदारी की अपनी अलग और प्रेरणादायक कहानी है. ऐसे में यह जानना भी जरूरी है कि आखिर इस सोच की प्रेरणा मिली कहां से? इस सवाल का जवाब देते हैं ग्रामीण रमाकांत देशमुख. उनके मुताबिक वे लोग गायत्री परिवार से जुड़े हैं, गायत्री परिवार के प्रमुख आचार्य पंडित श्रीराम शर्मा के जन्म शताब्दी वर्ष 2011 में हमें उनकी याद में पेड़ लगाने का संकल्प दिलाया गया. दरअसल पेड़ लगाना आसान है, लेकिन उसे बचाना मुश्किल है. इसलिए हमने इस तरह की शुरुआत की.
अब तक हजारों पौधे हम लोग लगा चुके हैं. हम किसी के जन्मदिवस और स्मृति दिवस पर लोगों को जागरुक कर उनसे पौधा लगवाते हैं. अब बड़ी संख्या में लोग जागरूक हो रहे हैं.पेड़ों को बचाने के लिए पास ही मौजूद मुक्तिधाम में भी खास संदेश लिखा गया है. इसके साथ ही मुक्तिधाम में अर्थी के साथ लाए गए सामान को फेंकने, जलाने या नदी में बहाने की बजाय उसका उपयोग पेड़ों के संरक्षण के लिए किया जा रहा है.
बाढ़ के खतरे से बच रहा है गांव
ग्रामीणों की इस पहल से ये उपवन अब वन में तब्दील हो रहा है. पेड़ों की वजह से नदी के किनारे से मिट्टी का कटाव कम होने से बाढ़ की आंशका कम हो रही है. लोगों की आस्था बढ़ाने के लिए पीसेगांव के इस उपवन में यज्ञ कुंड और नवग्रह पार्क भी बनाया गया है. पीसेगांव के ग्रामीण इस अभियान का समर्थन करते हुए दूसरों को भी संदेश दे रहे हैं. दरअसल पीसेगांव की कहानी न सिर्फ रोचक है बल्कि भावनाओं को भी छू लेती हैं. ये कहानी उन लोगों को भी सीख देती है जो प्रकृति को अनदेखा करते हैं. पौधों को बचाने की बजाए उन्हें काटते हैं.
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