छत्तीसगढ़ की बेटी ने रचा इतिहास! NEET की असफलता से Army में लेफ्टिनेंट डॉक्टर बनने तक, ऐसी है जोया की कहानी

Success Story: जोया ने कहा कि भिलाई के शिक्षकों ने मेरा मनोबल बनाए रखने में बहुत सहायता की. मेरी दादी और पिता कहा करते थे कि दो महान पेशे हैं - एक डॉक्टर और एक सैनिक. एक डॉक्टर होने के नाते, मैं लोगों की सेवा कर सकती हूं और रक्षा सेवाओं में शामिल होकर, मैं देश की सेवा कर सकती हूं.

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छत्‍तीसगढ़ की बेटी जोया मिर्जा (Zoya Mirza) ने इतिहास रचते हुए भारतीय सेना (Indian Army) में लेफ्टिनेंट डॉक्टर (Lieutenant Doctor) बन गई हैं. दुर्ग जिले (Durg District) की रहने वाली जोया इस पद पर पहुंचने वाली वह छत्‍तीसगढ़ की पहली महिला हैं. जोया मिर्जा ने एएफएमसी (Armed Forces Medical College) में एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारतीय सेना (Indian Army) में कमीशन लेफ्टिनेंट डॉक्टर बनकर इतिहास रच दिया है. रविवार 28 अप्रैल को जम्मू में अपनी ड्यूटी शुरू करने से एक दिन पहले उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान अपने संघर्षों को साझा किए. आइए जानते हैं कैसी जोया की प्रेरणादायी कहानी...

CG News: जोया मिर्जा के जज्बे को सलाम
Photo Credit: Ajay Kumar Patel

दादी की इच्छा हुई पूरी, पर अब वे ही नहीं...

टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए इंटरव्यू में जोया ने बताया कि बचपन से ही पढ़ाई के प्रति मेरा रुझान रहा है. मेरी दादी की इच्छा थी कि मैं डॉक्टर बनूं और लोगों की सेवा करूं. लेकिन एक साल पहले उनका निधन हो गया. अब अफसोस है कि वह मुझे वर्दी पहने हुए नहीं देख सकीं.

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मेरे परिवार को वित्तीय संघर्षों का सामना करना पड़ा था. इसलिए मेरे माता-पिता ने कम फीस के लिए मुझे पास के एक कम प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल में एडमिशन दिलाया था. मैंने तीसरी कक्षा पूरी करने तक वहां पढ़ाई की. उसके बाद, उन्होंने मुझे केपीएस भिलाई में दाखिला दिलाया, जहां मैंने 12वीं तक की अपनी शिक्षा पूरी की.

जीव विज्ञान (बायोजॉली) से 12वीं की पढ़ाई करने वाली जोया ने 12वीं कक्षा के दौरान ही नीट परीक्षा (NEET Exam) की तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन सफल नहीं हो पाई थीं. अपने परिणामों से निराश होकर, उन्होंने अपना ध्यान दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) में स्नातक की पढ़ाई पर केंद्रित किया. इसके बावजूद भी, जोया की दादी और पिता ने उसे एक साल का गैप लेने और NEET की तैयारी के लिए कोटा (Kota) जाने के लिए मनाया.

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पढ़ाई के लिए माता-पिता ने उधार लिए पैसे

जोया बताती है कि उस समय तब तक मेरी मां एक सरकारी स्कूल शिक्षक के रूप में काम करने लगी थी और  पिता छत्तीसगढ़ राज्य क्रिकेट संघ के लिए पिच क्यूरेटर के रूप में काम करने लगे. फिर भी, मेरे माता-पिता को मेरी शिक्षा के लिए पैसे उधार लेने पड़े. जोया ने कहा, जब मैंने अन्य छात्रों को मुझसे बेहतर प्रदर्शन करते देखा तो आत्मविश्वास को झटका लगा. "नीट परीक्षा से पंद्रह से बीस दिन पहले, मुझे अपनी दादी की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के कारण घर लौटना पड़ा. बाद में, मैं अपने दूसरे प्रयास के लिए कोटा लौट आयी. अफसोस की बात है कि मैं सिर्फ एक रैंक से सीट रिजर्व करने से चूक गयी. मेरी रैंक 13वीं थी, सीट आवंटन 12वें पर समाप्त हुआ. उसके बाद मेरी दादी ने मुझे NEET में एक और मौका लेने के लिए प्रोत्साहित किया और मुझे वापस भिलाई बुलाया, जहां मैं एक कोचिंग सेंटर में शामिल हो गई.
 

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जोया ने कहा कि भिलाई के शिक्षकों ने मेरा मनोबल बनाए रखने में बहुत सहायता की. मेरी दादी और पिता कहा करते थे कि दो महान पेशे हैं - एक डॉक्टर और एक सैनिक. एक डॉक्टर होने के नाते, मैं लोगों की सेवा कर सकती हूं और रक्षा सेवाओं में शामिल होकर, मैं देश की सेवा कर सकती हूं. जोया ने कहा कि वह दोनों अवसर पाकर खुद को भाग्यशाली मानती हैं.

ऐसे मिली सफलता

अपने इंटरव्यू में जोया ने बताया कि 2019 में मैंने पहली बार 622 अंकों के साथ राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (National Testing Agency) द्वारा आयोजित NEET परीक्षा को पास किया और AFMC को चुना. AFMC में महिला उम्मीदवारों के लिए कट-ऑफ स्कोर 620 था, जबकि पुरुष उम्मीदवारों के लिए 600 अंक था. एएफएमसी में 4.5 वर्षीय एमबीबीएस पाठ्यक्रम ने मेरे परिवार के सपने को पूरा किया.

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