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This Article is From Aug 26, 2023

खतरे में ऐतिहासिक धरोहर प्राचीन गढ़, संरक्षित स्मारक के बावजूद असमाजिक तत्वों का बना डेरा

ऐतिहासिक धरोहर में से एक बिलासपुर के प्राचीन गढ़ किला का अस्तित्व एक बार फिर संकट में है. संरक्षित स्मारक घोषित होने के बावजूद देखरेख के अभाव में ऐतिहासिक धरोहर का भारी नुकसान हो रहा है. वहीं खुदाई में मिले महल का हिस्सा अब क्षतिग्रस्त हो कर टूट रहा है.

खतरे में ऐतिहासिक धरोहर प्राचीन गढ़, संरक्षित स्मारक के बावजूद असमाजिक तत्वों का बना डेरा
खतरे में ऐतिहासिक धरोहर

बिलासपुर से 30 किलोमिटर दूर देव नागरी मल्हार के प्राचीन गढ़ किला के उत्खनन के दौरान सामने आए हजारों वर्ष पुराने महल नुमा ढांचे को भी पुरातत्व विभाग संरक्षित नहीं पा रहा है. संरक्षित स्मारक घोषित होने के बावजूद देखरेख के अभाव में ऐतिहासिक धरोहर का भारी नुकसान हो रहा है. वहीं खुदाई में मिले महल का हिस्सा अब क्षतिग्रस्त हो कर टूट रहा है.

खुदाई में मिला था महल नुमा ढांचा 

दरअसल, साल 2010 में भारतीय पुरातत्व विभाग के उत्खनन शाखा क्रमांक 1 नागपुर द्वारा मल्हार नगर में स्थित प्राचीन गढ़ के एक हिस्से की खुदाई का काम किया गया था. उत्खनन के दौरान भारी संख्या में प्राचीन अवशेष मिले, जिसमें पुराने जमाने के मिट्टी से बने बर्तन, टेराकोटा की मूर्तियां, भोजन बनाने के काम में आने वाले लोहे के सामान, मृदभांड, कृपाण आदि वस्तुओं के अलावा दो हजार वर्ष पुराने चावल के दाने भी मिले थे. उत्खनन के दौरान सबसे महत्वपूर्ण महल नुमा ढांचा भी सामने आया था. जिसके बाद किले की बारीकी से खुदाई कर पूरे ढांचे को सामने लाया गया था.

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क्षतिग्रस्त हो कर टूट रहा खुदाई में मिले महल का हिस्सा.

 खतरे में है ऐतिहासिक धरोहर

वहीं महल नुमा ढांचा के सामने आने से उत्खनन विभाग की टीम भी काफी उत्साहित हुई थी कि यहां और अधिक स्थलों की खुदाई की जाए तो छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास की सटीक जानकारी मिल जाएगी. हालांकि इसके बाद खुदाई रोक दी गई और इस स्थल को संरक्षित कर आम लोगों के लिए खोल दिया गया. हालांकि अब देखरेख के अभाव में महल नुमा ढांचा की स्थिति खराब हो गई है. बता दें कि इस गढ़ में मवेशी और असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है, किसके कारण ऐतिहासिक धरोहर खतरे में है. गढ़ की ऐसी स्थिति बन गई है कि पर्यटक भी इसे देखने अब नहीं जाते हैं. लिहाजा स्मारक के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.

मिले अवशेष को नागपुर में रखा गया 

विभागीय अधिकारियों के अनुसार, उत्खनन के दौरान किले में पूर्व मौर्य काल, मौर्य काल, शुंग सातवाहन काल, गुप्त वाकाटक काल, और उत्तर गुप्तकाल के दौरान भी लगातार बसाहट के प्रमाण मिले हैं. साथ ही प्रस्तर और इंट से निर्मित संरचनात्मक अवशेष भी मिले, जिनमें दो से अधिक कमरों के साक्ष्य पाए गए.जिसमें सोपान व जल निकासी की संख्या महत्वपूर्ण है. उत्खनन के दौरान मिले प्राचीन अवशेषों को लेकर टीम वापस नागपुर चली गई, बताया जाता है कि मल्हार से मिले अवशेषों को नागपुर में ही रखा गया है.

पुरातत्व के जानकार हरि सिंह का कहना है कि मल्हार में मिले धरोहर को मल्हार में ही रखने के लिए लोगों ने मांग की थी, लेकिन राजनीतिक उदासीनता के कारण हमारी धरोहर भी हाथ से निकल गई और अब इस स्मारक के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है, जो धर्मनगरी, पुरातन नगरी के लिए अच्छा संकेत नहीं है.

शेषनारायण गुप्ता का कहना है कि संरक्षित स्मारक हमारी धरोहर है और इनसे हमारी युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है. संरक्षित करने के बाद उपेक्षित करना लोगों के मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

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पुरातत्व विभाग के उदासीनता से एतिहासिक स्मारक पर मंडरा रहा खतरा.

वहीं पूर्व पर्यटन सदस्य सलाहकार अजय शर्मा का कहना है कि पुरातात्विक दृश्टिकोण से मल्हार बेहद समृद्ध है, इसलिए पुरासम्पदा का संरक्षण जरूरी है. नहीं तो संरक्षण के अभाव में इतिहास ही मिट जायेगा. ये धरोहरे ऐतिहासिक अध्ययन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.

3 सालों में बदल गई स्थल की सूरत

भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन नगर के दोनों गढ़ (किला) के उत्खनन के बाद चारों तरफ से दीवाल खड़ी कर सुरक्षा के लिहाज से सुरक्षित कर दिया गया और कर्मचारियों की नियुक्ति कर स्मारक की देखरेख में लगा दिया. इस बीच खबर आई कि उत्खनन में मिले महल को धूप व पानी से बचाने के लिए शेड लगाया जाएगा, जिससे उसकी वास्तविक स्वरूप बना रहे, लेकिन 13 साल बीत जाने के बाद भी शेड नहीं लग पाया, जिससे यह स्मारक क्षरण होकर खराब होने लगा है. साथ ही रखरखाव नहीं होने से कई जगह मिट्टी भी धंस रही है, जिससे स्मारक के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.

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गढ़ में मवेशी और असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है.

असमाजिक तत्वों ने डाला किला में डेरा

पुरातत्व विभाग ने भले ही गढ़ को संरक्षित कर दिया है, लेकिन सुरक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं होने से उत्पाती व असमाजिक तत्व गढ़ के अंदर आसानी से घुसकर नशाखोरी करते हैं. इसके अलावा बाउंड्रीवाल को भी क्षति पहुचाते हैं. एक साल पहले दीवाल में लगे लोहे के एंगल को भी चोरों ने चुरा लिया, जिसकी पुलिस में भी शिकायत की गई थी. इतना ही नहीं  इसकी शिकायत लोगों ने विभाग के अधिकारियों से भी कई बार की है, लेकिन विभागीय अधिकारियों ने इसपर गंभीरता नहीं दिखाई.

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