NDTV Special: कांकेर में कहीं घोटुल, तो कहीं शिक्षक के घर में ही चल रहे हैं स्कूल! 44 स्कूल के पास खुद का भवन ही नहीं...

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में आज भी कई ऐसे दुरुस्त इलाके हैं, जहां बुनियादी शिक्षा व्यवस्था भी बच्चों को नसीब नहीं हो पा रही है. 

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खस्ता हाल में हैं कांकेर के विद्यालय

Schools in Kanker: मशहूर कवि और लेखक गुलजार ने क्या खूब लिखा है कि “खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं, हवा चले न चले दिन पलटते रहते है”. कविता की यह दो लाइने कांकेर (Kanker) जिले की शिक्षा व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए काफी है, जहां नए शिक्षण सत्र में सब ठीक ठाक चल रहा है. पर बच्चों के पास अपना बताने के लिए स्कूल नहीं है. कभी गोटूल, तो कभी शिक्षक के घर और कभी रसोईया के घर बैठ पढ़ना पड़ता है. यह हाल केवल एक स्कूल का नहीं है, बल्कि जिले के 44 स्कूलों का है. जिनके पास खुद का भवन ही नहीं है... यही नहीं, 146 स्कूल भवन जर्जर हालत में है... बच्चे जान जोखिम में डाल कर पढ़ाई करते है. शासन प्रशासन की अनदेखी और लापरवाही से बच्चों का भविष्य अंधकार में है. 

घोटुल में चल रहे हैं स्कूल

जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान

जिले के नक्सल प्रभावित आमाबेड़ा क्षेत्र के ग्राम ऊपरकामता में प्राथमिक स्कूल भवन ही नहीं है.  यहां लगभग 30 बच्चे पढ़ाई करते है. जो स्कूल भवन था, वह भी 6 साल पहले जर्जर हो चुका है. स्कूल की छतों से मलबा गिर रहा है और छड़ बाहर आ चुकी है. कई बार ग्रामीण और शिक्षकों ने नए स्कूल भवन की मांग की. लेकिन, जिम्मेदारों ने ध्यान नहीं दिया. शिक्षा के प्रति समर्पित स्कूल के शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों से अलग नहीं कर पाई और शिक्षक ने जिम्मेदारी उठाते हुए अपने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. ग्रामीणों ने शिक्षक के कच्चे मकान को देख एक लाड़ी(लकड़ी का स्ट्रक्चर) बनाकर दिया, ताकि बच्चो को शिक्षक पढ़ा सकें. लेकिन, बारिश बाधा बनकर सामने खड़ी हो गई. अब शिक्षक एक कक्ष में पहली से पांचवीं तक के बच्चों का भविष्य गढ़ रहे है.

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जर्जर हालत में हैं विद्यालय

घोटुल में होती है पढ़ाई 

ऊपरकामता गांव से आगे बढ़ते हुए हम 7 किलोमीटर का सफर पगडंडी, पहाड़ी जंगल रास्तो को पार कर हिरनपाल गांव पहुंचे. जिसकी जिला मुख्यालय से लगभग दूरी 55 किलोमीटर होगी. इसे नक्सलियों का मजबूत गढ़ भी कहा जाता है. यहां एक कच्चा और झोपड़ी नुमा मकान है, जिसकी सुरक्षा के लिए लकड़ी का बाउन्ड्रीवॉल बनाया गया है. अंदर पहुंचकर देखा कि इस कच्चे का एक कमरे के भवन में पहली से पांचवी कक्षा तक के बच्चे एक साथ यहां बैठ कर पढ़ाई कर रहे थे. जो कि एक गोटूल भवन है. इसी गोटूल में पिछले 5 सालों से स्कूल संचालित हो रहा है. 2 साल बच्चों को रसोइया के स्कूल लगाकर शिक्षा दी. हैरान करने वाली बात यह हिरानपाल गांव में बिजली नहीं है. बच्चो को अंधेरे में पढ़ाई करनी पड़ती है. 

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अपने घर में स्कूल चला रहे हैं शिक्षक

नए सिरे से किया जाएगा आंकलन-जिला शिक्षा अधिकारी

इस पूरे मामले पर जब हमने जिला शिक्षा अधिकारी अशोक कुमार पटेल से बात की तो उनका कहना है कि नए सिरे से आंकलन कर भवन निर्माण करवाया जायेगा. अन्य स्कूलों से भी जानकारी लेकर उनकी भी व्यवस्था करवाई जाएगी. जो स्कूल विद्युत विहीन है, उनका सर्वे करवाकर क्रेडा विभाग से समन्वय स्थापित कर सोलर लाइट लगाने की कोशिश की जाएगी.

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