छत्तीसगढ़ के दशरथ मांझी ! पहाड़ को काटकर पहुंचाया पानी, अब खूब हो रही तारीफ

Dashrath Manjhi Story : पहली बार जब अपनी मेहनत की कमाई के 20 रुपये मिले, तो 150 मीटर ऊंचा पहाड़ भी छोटा लगने लगा....  ये रुपये उन्हें एक SECLअधिकारी के घर दो डिब्बा पानी पहुंचाने से मिले. यहीं से उसकी जिंदगी में एक मोड़ आया और उसने वह कर दिखाया जो कोई न सोच पाया. 

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Chhattisgarh News : पहली बार जब अपनी मेहनत की कमाई के 20 रुपये मिले, तो 150 मीटर ऊंचा पहाड़ भी छोटा लगने लगा....  ये रुपये उन्हें एक SECLअधिकारी के घर दो डिब्बा पानी पहुंचाने से मिले. यहीं से उसकी जिंदगी में एक मोड़ आया और उसने वह कर दिखाया जो प्रशासन के तमाम अधिकारी भी मिलकर नहीं कर सके. हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के MCB जिले के चिरमिरी बरतुंगा के जमुना प्रसाद पांडेय की, जो आज कॉलरी क्षेत्र के कई घरों में पानी पहुंचाने का काम कर रहे हैं. जमुना का कहना है कि पानी की हर बूंद कितनी कीमती है, यह जानना है तो एक बार उनके साथ 150 फीट नीचे तुर्रा में उतरकर और वहां से पानी लाकर देखें. वे पिछले 24 सालों से यही काम कर रहे हैं. पिछले 7 दशक से चिरमिरी के लोग इसी तुर्रा का पानी पीने के लिए इस्तेमाल में ला रहे हैं.

अपने हौसले से बुझाई लोगों की प्यास

चिरमिरी के बरतुंगा कॉलरी की आबादी लगभग 3 हजार है. मुख्य रूप से यहां पर एसईसीएल कॉलरी कर्मी निवास करते हैं. लंबे समय से स्थानीय नागरिक मांग कर रहे थे कि यहां बरतुंगा के इस तुर्रा में पानी टंकी बनाकर पंप फिट किया जाए और पानी को ऊपर तक लाया जाए. लेकिन आज तक निगम प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने उनकी बात को नहीं सुना. जो काम आज भी स्थानीय प्रशासन को असंभव लगता है, उसे एक अकेले व्यक्ति की सोच ने संभव कर दिखाया है.

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भाई को लगी चोट.... तो लिया फैसला

कुछ समय पहले नीचे से पानी लाते समय जब जमुना के भाई का पैर फिसला और उन्हें चोट आई, तब उन्हें एक तरकीब सूझी. उन्होंने तुर्रा का पानी नीचे से ऊपर लाने के लिए टंकी में एकत्र किया और लगभग 70 मीटर ऊपर सिंटेक्स की एक टंकी रखी. छोटा डीजल जनरेटर लगवाया, जिससे पानी पाइप के माध्यम से ऊपर चढ़ने लगा. इसके बाद पहाड़ के ऊपर एक और टंकी लगाई और फिर पानी मिलना आसान हो गया. इसके बाद आसपास के लोग भी इस पानी को ले जाने लगे.

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अपने हौसले से काट दिया पहाड़

साइकिल से सब को पहुंचाते थे पानी

जमुना पहले साइकिल के माध्यम से पानी घर-घर पहुंचाते थे, लेकिन अब पिछले 5 साल से वह छोटा हाथी मिनी ट्रक से पानी सप्लाई का काम कर रहे हैं. वे लोगों को पानी बचाने के लिए जागरूक कर रहे हैं और कहते हैं कि पानी व्यर्थ न बहे, इसका ख्याल सभी रखें. इस काम में उनके भाई और बहन भी मदद कर रहे हैं. वे बताते हैं कि लोगों के घरों में पानी पहुंचाकर वे हर महीने लगभग 40 हजार रुपये कमा लेते हैं.

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कच्ची सड़क के पार नहीं मिलता पानी

चिरमिरी में कई छोटे-छोटे जल स्त्रोत हैं, जिन्हें तुर्रा (स्प्रिंग्स) कहा जाता है, जो 24 घंटे बहते रहते हैं. इस पानी को रोककर आसपास के क्षेत्र में सप्लाई किया जा सकता है. चिरमिरी का बरतुंगा कॉलरी रिहायशी क्षेत्र है, जहां कॉलरी में कार्यरत लोग रहते हैं. बरतुंगा पहुंचने के लिए लगभग 3 किमी कच्ची सड़क पार करनी पड़ती है. नगर निगम की पेयजल सुविधा यहां उपलब्ध नहीं है.

कई लोगों की बुझ रही प्यास

पहाड़ काटकर रास्ता बनाना बड़ी चुनौती

जमुना ने बताया कि पहाड़ी को काटकर रास्ता बनाना बहुत बड़ी चुनौती थी. लेकिन जब रात में बैठकर हमने, भाई और बहन के साथ, नीचे पहुंचने के लिए रास्ता बनाने की चर्चा की, तो दोनों ने सहयोग करने की बात कही. इससे उनके काम करने का हौसला बढ़ गया. अगले ही दिन वे रास्ता बनाने के लिए चट्टान काटने लगे. लगभग तीन से चार महीने में काफी रास्ता बन गया. इस रास्ते से पानी लाना अब आम लोगों के लिए भी सरल हो गया है. हालांकि पहले लोग अक्सर पानी लेकर ऊपर चढ़ते समय गिर जाते थे, पर अब गिरने का खतरा कम हो गया है. इसके बाद नगर निगम ने यहां सीसी सड़क और सीढ़ियों का निर्माण करवा दिया है.

24 घंटे लगातार बहता रहता है पानी

बरतुंगा के 150 मीटर नीचे स्थित इस प्राकृतिक जल स्त्रोत तुर्रा का पानी 24 घंटे लगातार बहता रहता है. बावजूद इसके बरतुंगा कॉलरी के लोग पिछले 3 दशक से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं क्योंकि इतने नीचे जाकर पानी लाना उनके लिए संभव नहीं है. तुर्रा के पानी की खासियत यह है कि इसका पानी मीठा होता है और इसे फिल्टर करने की जरूरत नहीं होती.

मिलिए छत्तीसगढ़ के दशरथ मांझी से

जानें कौन हैं दशरथ मांझी

दशरथ मांझी बिहार के गया जिले के गहलौर गांव के एक व्यक्ति थे... जिन्हें "माउंटेन मैन" के नाम से भी जाना जाता है. दशरथ मांझी ने 22 सालों तक कड़ी मेहनत करके अपने गांव के पास की पहाड़ी को अकेले ही काटकर एक रास्ता बनाया. यह रास्ता 110 मीटर लंबा, 9.1 मीटर चौड़ा और 7.6 मीटर गहरा था, जिससे उनकेगांव गांव गहलौर और निकटवर्ती वज़ीरगंज के बीच की दूरी 55 किलोमीटर से घटकर केवल 15 किलोमीटर रह गई.

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दशरथ मांझी ने यह कार्य इसलिए किया क्योंकि उनके गांव में चिकित्सा सुविधाओं की कमी के चलते उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी. उनके दृढ़ संकल्प और मेहनत की कहानी आज भी प्रेरणादायक मानी जाती है और उन्हें एक सच्चे नायक के रूप में देखा जाता है.

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