Potacabin: हादसे के बाद भी सबक नहीं, बस्तर में 15 हज़ार से ज्यादा बच्चे जिंदगी दांव पर लगाकर कर रहे हैं पढ़ाई  

Pota Cabin Aagjani: बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले में बांस की चटाइयों से 61 पोटा केबिन बनाकर हज़ारों बच्चों को शिफ्ट किया गया था. इसके बाद से नक्सल इलाके के हज़ारों आदिवासी बच्चे यहां रहकर मुफ्त में पढ़ाई कर रहे हैं. लेकिन बड़ी बात ये है की सरकारें बदल गईं. लेकिन हालात अब भी जस के तस हैं. 

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
बांस के बने पोटा केबिन में पढ़ाई करते हैं बस्तर के हज़ारों आदिवासी बच्चे.

Pota Cabin Aagjani Bijapur: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों के हज़ारों बच्चों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है. जिन आवासीय संस्थाओं (Residential institutions) में रहकर ये बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, वे बांस की चटाइयों के बने हुए हैं. सरकारें बदलीं, शिक्षा के नाम पर करोड़ों फूंके गए, लेकिन बांस की चटाइयों को हटाकर पक्के भवन बनाने की किसी ने नहीं सोची. ज़िंदगी दांव पर लगाकर बांस से बने कमरों में रहकर हज़ारों बच्चे अपना भविष्य गढ़ रहे हैं. 

बीजापुर (Bijapur) जिले में पोटा केबिन में आग लगने से दर्दनाक हादसा हुआ है. इसमें एक मासूम बच्ची ज़िंदा जल गई. हादसा हृदय विदारक और रूह कंपाने वाला है. हादसे की वजह अभी सामने नहीं आई है, लेकिन ये बात जरूर सामने आई है कि चंद मिनटों में आग फैलने की बड़ी वजह बांस का बना ये पोटा केबिन (Pota Cabin) भी है. ऐसी संस्था सिर्फ एक ही नहीं है, बल्कि बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले में बने 61 पोटाकेबिनों में से 40 की हैं, जो अब भी बांस के ही बने हुए हैं. यहां 15000 से ज्यादा बच्चे असुरक्षा के बीच जिंदगी को दांव पर लगाकर अपना भविष्य गढ़ रहे हैं. 

Advertisement

पहले भी हुई है आगजनी की घटना

बता दें कि बांस से बने इन आवासीय संस्थाओं में आग लगने का यह पहला मामला नहीं है. बल्कि, दो साल पहले दंतेवाड़ा जिले के कारली स्थित पोटा केबिन में आगजनी की घटना तब हुई थी, जब बच्चे छुट्टी पर अपने घर गए हुए थे. ऐसे में बड़ा हादसा तो टल गया था, लेकिन सारे दस्तावेज, सामान और पूरे कमरे जलकर राख हो गए थे. इस वक़्त भी बांस को हटाकर पक्के भवन बनाने की मांग उठी थी. इन जिलों में कुछ भवन ज़रूर बने हैं, लेकिन 40 पोटा केबिन अब भी बांस के ही कमरों में संचालित हैं. 

Advertisement

इसलिए पड़ी थी जरूरत 

बता दें कि साल 2005 में नक्सलवाद के खिलाफ सलवा जुडूम शुरू होने के बाद नक्सलियों ने बस्तर में खूब तांडव मचाया था. बस्तर में स्कूल, सरकारी भवन में खूब तोड़फोड़ की थी. इसके बाद बस्तर के कई स्कूलें बंद हो गई थी. साल 2010-11 को तत्कालीन सरकार ने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए शहर के आसपास 500-500 सीटर की टेम्परेरी आवासीय संस्थाएं (पोर्टेबल केबिन) बनाई थी. यहां नक्सल इलाके के हज़ारों बच्चों को लाकर रखा गया था और उनकी पढ़ाई जारी रखी गई थी. बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले में बांस की चटाइयों से 61 पोटा केबिन बनाकर हज़ारों बच्चों को शिफ्ट किया गया था. इसके बाद से नक्सल इलाके के हज़ारों आदिवासी बच्चे यहां रहकर मुफ्त में पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन बड़ी बात ये है की सरकारें बदल गईं. लेकिन हालात अब भी जस के तस हैं.  

Advertisement

ये भी पढ़ें Bijapur: पोटाकेबिन में आग लगने से ज़िंदा जली मासूम बच्ची,  300 छात्राओं को ऐसे रेस्क्यू कर निकाला

इन जिलों में है ऐसी स्थिति

सुकमा जिले में कुल 16 पोटाकेबिन हैं. इनमें 3 बांस के बने हुए हैं. इसमें 1000 से ज्यादा बच्चे रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. दंतेवाड़ा जिले में 14 पोटाकेबिन हैं. इनमें 9 के पक्के भवन बन गए हैं, जबकि  5 पोटाकेबिन बांस के बने हुए हैं. इनमें 2000 से ज्यादा बच्चे रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. जबकि, बीजापुर जिले में 31 पोटा केबिन हैं. सभी बांस के ही हैं. 13000 बच्चे रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. इस संबंध में सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय अध्यक्ष राजा राम तोड़ेम ने कहा कि पोटा केबिन आगजनी और आदिवासी बच्ची की जलकर हुई मौत दुखद और दुर्भाग्यजनक है. हज़ारों आदिवासी बच्चे आज भी बांस के कमरों में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. सालों पुराने ये पोटा केबिन हादसों की वजह बन रहे हैं. हम मांग करते हैं कि पक्के भवन बनाए जाएं.  

ये भी पढ़ें नक्सलवाद पर लगाम लगाने के लिए विष्णु कैबिनेट ने लिया बड़ा फैसला, NIA की तर्ज बनाई जाएगी SIA

Topics mentioned in this article