छत्तीसगढ़ में जिसे मिला आदिवासियों का साथ, उसने चखा सत्ता का स्वाद, लुभाने में जुटीं पार्टियां

छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है भाजपा के स्टार प्रचारकों ने राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों का दौरा करना शुरू कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने इस महीने बस्तर क्षेत्र में पार्टी की रैलियों को संबोधित किया.

विज्ञापन
Read Time: 21 mins
छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोटों को साधने में जुटीं पार्टियां

Chhattisgarh Assembly Election : छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं और सरकार बनाने में आदिवासी मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राज्य के राजनीतिक दलों ने आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश शुरू कर दी है. छत्तीसगढ़ में माना जाता है कि लगभग 32 फीसदी जनसंख्या वाले आदिवासी समुदाय के आशीर्वाद के बगैर राज्य में सरकार बनाना मुश्किल है. राज्य में अब तक हुए विधानसभा चुनाव में जिस भी दल को आदिवासियों का साथ मिला है उसे सत्ता मिली है. 2018 के चुनाव में आदिवासी सीटों पर हार का सामना करने वाली भाजपा इस बार के चुनाव में आदिवासियों का समर्थन पाने की कोशिश में है.

चुनाव विशेषज्ञों के मुताबिक, आदिवासी क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा की हालिया रैलियां और आदिवासी इलाकों से पार्टी की दो परिवर्तन यात्राओं की शुरूआत को आदिवासियों को लुभाने के लिए भाजपा के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा में 29 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में से 25 सीटें जीती थीं और सरकार बनाई थी. पार्टी को उम्मीद है कि सरकार की योजनाओं के कारण उसे एक बार फिर आदिवासियों का समर्थन हासिल होगा.

Advertisement

यह भी पढ़ें : CG Election 2023 : BJP ने दशहरे पर चुनावी रंग चढ़ाया, CM को रावण जैसा दिखाया, भूपेश ने कहा-फर्क नहीं पड़ता

Advertisement

आदिवासियों के बीच थी बीजेपी की गहरी पैठ

चुनाव विश्लेषक आर कृष्णा दास कहते हैं, 'आदिवासी मतदाता राज्य में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद 2003 में छत्तीसगढ़ में हुए पहले चुनाव में भाजपा उन आदिवासियों के बीच गहरी पैठ बनाने में कामयाब रही जो कभी कांग्रेस के कट्टर समर्थक माने जाते थे. लेकिन अगले चुनावों में भाजपा उन पर पकड़ खोती गई.' दास ने कहा, 'सत्ता विरोधी लहर के अलावा, भाजपा के शीर्ष आदिवासी नेताओं और उनके क्षेत्र के स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय की कमी तथा लंबे समय से चले आ रहे वामपंथी उग्रवाद के कारण पार्टी को आदिवासी क्षेत्र में परेशानी का सामना करना पड़ा.'

Advertisement
राज्य में वर्ष 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव के दौरान 90 सदस्यीय सदन में 34 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए आरक्षित थीं. भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को हराकर इनमें से 25 सीटें जीती थी. भाजपा को तब 50 सीटें मिली थी.

वहीं कांग्रेस को नौ आदिवासी सीटों पर जीत मिली थी. राज्य में परिसीमन के बाद आदिवासी सीटों की संख्या 29 हो गई. 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 29 में से 19 सीटें जीती और एक बार फिर 50 सीटें जीतकर सरकार बनाई. इस चुनाव में कांग्रेस को 10 आदिवासी सीटों पर जीत मिली थी.

कांग्रेस को मिला आदिवासियों का साथ

बाद में 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट कांग्रेस के पाले में चले गए और कांग्रेस को 29 आदिवासी सीटों में से 18 पर जीत मिली. हालांकि इसके बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी. कांग्रेस की संख्या 39 तक ही सीमित रही और भाजपा ने 11 आदिवासी सीटें जीतकर 49 विधायकों के साथ तीसरी बार सरकार बनाई. 2018 में कांग्रेस ने रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के 15 साल के शासन को समाप्त करते हुए 90 सदस्यीय विधानसभा में 68 सीटें जीतकर शानदार जीत दर्ज की. भाजपा को 15 सीटें, जेसीसी (जे) और बसपा को क्रमशः पांच और दो सीटें मिलीं.

2018 में 29 अजजा सीटों में से कांग्रेस ने 25, भाजपा ने तीन और जेसीसी (जे) ने एक सीट जीतीं. बाद में कांग्रेस ने उपचुनावों में दो और अजजा आरक्षित सीट-दंतेवाड़ा और मरवाही जीत ली. दास ने कहा कि राज्य में सत्ता में वापस आने के लिए भाजपा आदिवासी सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है और इस बार अपने पुराने नेताओं को मैदान में उतारा है. भाजपा ने अब तक 86 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें सभी 29 एसटी सीटें भी शामिल हैं. राज्य के छह पूर्व मंत्री भाजपा के प्रमुख उम्मीदवारों में से हैं जिनमें एक मौजूदा विधायक, दो वर्तमान लोकसभा सांसद- जिनमें एक केंद्रीय मंत्री, एक पूर्व केंद्रीय मंत्री, तीन पूर्व विधायक, एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं जो हाल ही में अपनी सेवा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं.

आदिवासी बहुल इलाकों में बीजेपी का प्रचार

छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है भाजपा के स्टार प्रचारकों ने राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों का दौरा करना शुरू कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने इस महीने बस्तर क्षेत्र में पार्टी की रैलियों को संबोधित किया. वहीं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पिछले महीने आदिवासी बहुल जशपुर में भाजपा की दूसरी परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखाई थी. पार्टी की पहली परिवर्तन यात्रा पिछले महीने आदिवासी बहुल दंतेवाड़ा जिले से निकाली गई थी.

भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने कहा ,

'कांग्रेस ने आदिवासियों के आरक्षण को खत्म करने की कोशिश की और लगभग एक साल तक सरकारी नौकरियों में भर्ती और संस्थानों में प्रवेश बंद रहा. बस्तर और सरगुजा आदिवासी संभागों में सरकारी नौकरियों में भर्ती में आदिवासियों को प्राथमिकता देने का प्रावधान था, लेकिन 2018 के बाद कांग्रेस ने इस प्रावधान को रद्द कर दिया. ये सभी मुद्दे भाजपा द्वारा उठाए जा रहे हैं.'

जब कश्यप से पूछा गया कि पार्टी कितनी आदिवासी सीटों पर जीत हासिल कर सकती है तब उन्होंने कहा, 'आदिवासियों में कांग्रेस सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है. हम बस्तर की सभी 12 सीटें और सरगुजा संभाग की 14 सीटें जीतेंगे. आदिवासियों को समझ आ गया है कि कांग्रेस सरकार ने उन्हें धोखा दिया है.'

कांग्रेस सरकार पर धर्मांतरण का आरोप

आदिवासियों के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 11 बस्तर संभाग में है तथा सरगुजा संभाग में नौ आदिवासी आरक्षित सीटें हैं. कश्यप को बस्तर संभाग में उनकी पारंपरिक नारायणपुर सीट (एसटी) से मैदान में उतारा गया है. चुनावों से पहले भाजपा द्वारा आदिवासी इलाकों में धर्म परिवर्तन के मुद्दे को उछाले जाने के बारे में कश्यप ने कहा, 'यह एक सामाजिक मुद्दा है और हम इस तरह के कृत्य का विरोध करते हैं. हम इस मुद्दे को चुनाव में लाभ के रूप में नहीं देखते हैं.' उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार में धर्मांतरण बढ़ रहा है.

यह भी पढ़ें : CG Election 2023: दशहरा पर भाजपा के पोस्टर पर गरमाई सियासत, बघेल ने बताया पिछड़ों को गाली देने की भाजपाई परंपरा

छत्तीसगढ़ में किस्मत आजमा रही आम आदमी पार्टी

पिछले सप्ताह पीटीआई-भाषा को दिए एक इंटरव्यू में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भरोसा जताया था कि उनकी सरकार ने आदिवासियों के लिए कई योजनाएं चलाई हैं जिसके कारण इस चुनाव में पिछली बार की तुलना में अधिक आदिवासी सीटों पर जीत मिलेगी. सत्ताधारी दल कांग्रेस ने सभी 90 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, मंत्री कवासी लखमा, अनिला भेड़िया और मोहन मरकाम इस चुनाव में कांग्रेस के प्रमुख आदिवासी चेहरों में से हैं. आदिवासी समूहों का एक प्रमुख संगठन सर्व आदिवासी समाज ने 'हमर राज' पार्टी बनाई है जिसने 19 उम्मीदवारों की घोषणा की है. पार्टी ने पहले आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित सभी 29 सीटों सहित 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की थी, लेकिन अब वह 60-70 सीटों पर चुनाव लड़ने पर विचार कर रही है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) भी छत्तीसगढ़ में दूसरी बार अपनी किस्मत आजमा रही है. आप ने अब तक 45 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम जारी कर दिया है. 2018 के विधानसभा चुनावों में आप ने कुल 90 सीटों में से 85 पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन राज्य में अपना खाता खोलने में विफल रही.

राज्य में सात और 17 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा. पहले चरण में 12 आदिवासी सीटों समेत 20 विधानसभा क्षेत्रों के लिए तथा दूसरे चरण में 17 आदिवासी सीटों समेत 70 सीटों के लिए मतदान होगा.